G-20 और भारत : आज का युग युद्ध का नहीं

26 दिसंबर 1991 को यूएसएसआर का आंतरिक विघटन होने से शीत युद्ध का अन्त हो गया। विश्व में एक ध्रुव(यूएसए) का वर्चस्व स्थापित हुआ। अब भू-राजनीति के बजाए भू-अर्थ को प्राथमिकता देना प्रारम्भ किया गया। इसी बीच कई क्षेत्रीय एवं आर्थिक समूहों का उदय हुआ) इधर भारत में भी एलपीजी लागू हो चुका था जिसमें विश्व बैंक एवं अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने सहायता एवं हस्तक्षेप किया।क्षेत्रीय एवं आर्थिक समूहों में G-7 (पहले G7+1),ईयू, आसियान, सार्क जैसे संगठन प्रभावी होने लगे। इसी बीच 1998 एशिया में आर्थिक संकट आया और G-7 जो कि विकसित देश थे इनकी सहायता से विकसित एवं विकासशील देशों के द्वारा G-20 की स्थापना 1999 में हुई जहां पर आर्थिक एवं वित्तीय मुद्दों पर वार्ता एवं सहयोग हो सके।

G-20 एक मंत्रिस्तरीय मंच तैयार किया गया जिसमें सदस्य देशों के वित्त मंत्री एवं केंद्रीय बैंकों के गवर्नर तथा अन्य प्रतिनिधि शामिल हुए। G-20 के सदस्य देशों में यूएस, कनाडा,मैक्सिको, ब्राजील,अर्जेन्टीना,यूके, फ्रांस, इटली, यूरोपीय संघ,जर्मनी,रुस, तुर्की, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, भारत, चीन, जापान, इण्डोनेशिया, दक्षिण कोरिया एवं आस्ट्रेलिया शामिल है। इसके साथ ही बैठक में विश्व बैंक एवं आईएमएफ तथा अन्य आर्थिक संगठनों के प्रतिनिधि एवं अतिथि देश भी शामिल होते हैं।2008 के आर्थिक मंदी के खतरे के दौरान G-20 की प्रथम बैठक 2008 में वाशिंगटन (अमेरिका) में हुई जिसमें कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल हुए। यहां से इसके कार्यों एवं उद्देश्यों में बढ़ोत्तरी होने लगी।धीरे-धीरे सतत् विकास, ऊर्जा, कृषि, पर्यावरण, जलवायु, स्वास्थ्य, भ्रष्टाचार एवं आतंकवाद जैसे मुद्दे शामिल होते गए। 2010 में G-20 आर्थिक एवं वित्तीय दृष्टि से विश्व का सबसे महत्वपूर्ण मंच बन गया। 

G-20 के अध्यक्ष (मेजबान) का निर्णय ट्रोइक (तीन) से होता है जिसमें निवर्तमान, वर्तमान एवं भविष्य के अध्यक्ष शामिल होते हैं। अध्यक्ष देश द्वारा बैठक की रूपरेखा एवं एजेण्डा को पेश किया जाता है। G-20 दो समानान्तर ट्रैक पर कार्य करता है। पहला वित्तीय (फाइनेंस) ट्रैक जिसमें वित्तमंत्री एवं केंद्रीय बैंक के गवर्नर काम करते हैं, दूसरा शेरपा (प्रतिनिधि) ट्रैक। ये G-20 के कार्यों का समन्वय करते हैं। शेरपा में उच्च अधिकारी एवं कूटनीतिज्ञ शामिल होते हैं तथा ये सम्मेलन की योजना में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। फाइनेंस ट्रैक के पदाधिकारियों का साल में दो बार सम्मेलन होता है। अध्यक्ष रोटेशन के आधार पर 19 देशों को 5 समूह के विभाजित कर किसी एक समूह द्वारा किसी एक देश को घोषित किया जाता है।वर्तमान में G-20 विश्व की 67% आबादी, 80% से ज्यादे की जीडीपी, 80% के लगभग निवेश तथा इतने के लगभग ही वैश्विक बाजार का प्रतिनिधित्व करता है। वर्तमान में G-20 के कार्यों एवं नीति निर्माण में वित्तीय स्थायी बोर्ड, विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग और विकास संगठन, विश्व व्यापार संगठन एवं संयुक्त राष्ट्र संघ का सहयोग मिलता है।

ट्रोइका द्वारा [निवर्तमान (इण्डोनेशिया), वर्तमान(भारत) एवं भविष्य (ब्राजील)] द्वारा 18 वें G-20 सम्मेलन की अध्यक्षता भारत को मिली है जिसके अध्यक्ष भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं।1 दिसंबर 2022 को भारत को अध्यक्षता मिली है। इसका थीम (ध्येय वाक्य)
'वसुधैव कुटुम्बकम्' अर्थात एक धरती, एक परिवार,एक भविष्य है। इस बैठक में G-20 के सदस्य, 9 आमंत्रित देश और 14 अन्तर्राष्ट्रीय संगठन शामिल हो रहे हैं। भारत में अब तक 28 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के सहयोग से लगभग 50 शहरों में बैठक सम्पन्न हो चुकी है। बैठक की शुरुआत राजस्थान के उदयपुर शहर से हुई जिसमें अन्तर्राष्ट्रीय शेरपाओं, उनके प्रतिनिधि मण्डल एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए। इस बैठक के वार्ता की शुरुआत भारत के G-20 शेरपा श्री अमिताभ कांत ने शुरू की तथा ग्लोबल साउथ के आवाज के रूप में भारत के कर्तव्य पर प्रकाश डाला। इस बैठक में कर्ज सम्बन्धी मुद्दों, विकास सहयोग खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा, आतंकवाद का मुकाबला, नए एवं उभरते खतरों, वैश्विक कौशल मैपिंग और आपदा जोखिम में कमी लाने पर सहमति बनी। फाइनेंस ट्रैक के पहली बैठक की शुरुआत बेंगलुरू शहर में हुई जिसमें भारत की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण एवं आरबीआई के गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास ने संयुक्त रूप से अध्यक्षता किया। इस बैठक में बहुपक्षीय विकास बैंक को मजबूत करना, लचीला वित्त पोषण, समावेशी और टिकाऊ भविष्य के शहर, वित्तीय समावेशन और उत्पादकता लाभ के उन्नत करने सम्बन्धी बिन्दुओं पर सहमति बनी। इसमें यूक्रेन युद्ध के पैराग्राफ का जिक्र हुआ जिसका रूस एवं चीन ने विरोध किया।


G-20 के गुवाहाटी बैठक में G-20 कार्य समूह (युवा) के पांच विषयों पर श्वेत पत्र जारी किए गए। उद्योग 4.0, नवाचार, जलवायु, युद्धरहित युग की शुरुआत तथा लोकतंत्र एवं शासन में युवा सम्बन्धी मुद्दों पर शोध पत्र प्रस्तुत किए गए।चेन्नई में आयोजित बैठक में मुख्य विषय जलवायु एवं पर्यावरण रहा जिसमें यह सहमति बनी कि हम एक एक स्थायी और लचीला भविष्य बनाने में एकजुट हैं। कोलकाता में आयोजित बैठक का मुख्य विषय भ्रष्टाचार, भगोड़े आर्थिक अपराधियों का प्रत्यर्पण इत्यादि रहा।कच्छ के रण और गोवा में पर्यटन कार्य समूह की बैठक सम्पन्न हुई जिसमें सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वाहक के रूप में पर्यटन के लिए मंत्रिस्तरीय परिपत्र और गोवा रोडमैप जारी हुए। इसमें हरित पर्यटन, डिजीटलीकरण, कौशल विकास, पर्यटन 7 सूक्ष्म,मध्यम एवं लघु उद्योग और गन्तव्य प्रबंधन जैसे मुद्दे शामिल रहे।भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने श्रीनगर में भी G-20 बैठक को सफलतापूर्वक आयोजित किया।इसका निष्कर्ष गोवा रोडमैप में वर्णित है।

वाराणसी में संस्कृति मंत्रियों की बैठक हुई।इसमें पीएम मोदी ने 'विकास भी विरासत भी' का जिक्र किया। इस बैठक के परिणाम को काशी संस्कृति मार्ग दिया गया।लखनऊ में आयोजित बैठक में डिजिटल अर्थव्यवस्था, अवसंरचना, साइबर सुरक्षा, एवं कौशलता वाले क्षेत्रों पर गहन चर्चा हुई। इंदौर में G-20 बैठक में सभी श्रमिकों के लिए सभ्य काम और श्रम कल्याण सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता जाहिर की गयी। इसमें वैश्विक स्तर पर कौशल कमियों को दूर करने की रणनीतियों, गिग और प्लेटफार्म, श्रमिकों के लिए स्थायी सामाजिक सुरक्षा के स्थायी वित्त पोषण पर परिणाम दस्तावेज अपनाए गए।
9 और 10 सितम्बर को नई दिल्ली में G-20 के नेताओं का शिखर सम्मेलन आयोजित हो रहा है। पूरे वर्ष भर चले मंत्रियों, नागरिक समाजों एवं अधिकारियों के बीच बैठक का समापन होने जा रहा है। भारत के प्रमुख छ: एजेण्डा हरितविकास; जलवायु ; त्वरित, समावेशी और लचीला विकास; सतत विकास; तकनीकी; डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना,एवं महिलाओं की भागीदारी है। ऋण व्यवस्था में सुधार, जलवायु परिवर्तन, क्रिप्टोकरेंसी विनियमन,भ्रष्टाचार,आतंकवाद,अपराधी प्रत्यर्पण जैसे विषय भी संरेखित है। 
चीन और रूस के राष्ट्राध्यक्ष बैठक में शामिल नहीं हो रहे है। चीन इन देशों के वरिष्ठ मंत्री शामिल हो रहे हैं। चीन G-20 के मंच पर सिर्फ आर्थिक और वित्तीय मुद्दों पर सहज रहता है। चीन ने श्रीनगर बैठक का भी विरोध किया था तथा भारत के G-20 थीम "वसुधैव कुटुम्बकम्" पर भी विरोध जताया था वहीं रूस G-20 में पश्चिमी देशों के वर्चस्व एवं यूक्रेन युद्ध के पैराग्राफ में होने की वजह से नाराज है। G20 देशों और रूस के बीच रूस-यूक्रेन संघर्ष पर गंभीर मतभेद चल रहे हैं।इन सबके बावजूद भारत इस शिखर सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए प्रयास कर रहा है तथा G-20 देशों के साझा बयान पर सभी पक्षों के सहमति का प्रयास कर रहा है।एक के बाद एक द्विपक्षीय मंत्रिस्तरीय वार्ताएं भी चल रही है क्योंकि यह एक मजबूत देशों का संगठन है और यहां लिए गए निर्णयों से भविष्य की घटनाओं पर भी प्रभाव देखन को मिलेगा।भारत का उभार एक महाशक्ति के रूप में हो रहा है जिससे चीन का वर्चस्व प्रभावित हो रहा है। वहीं भारत लगातार साफ्ट पावर जैसे योगा, सांस्कृतिक पर्यटन, जलवायु सम्बन्धी मुद्दों पर लीड कर रहा है तथा इससे यह स्पष्ट हो रहा है कि भारत वैश्विक नेतृत्व करने में सक्षम है। भारत खुद को वैश्विक मंचों पर और भी अच्छी स्थिति में कूटनीति के जरिए पहुंच रहा है इसका कारण भारत का बड़ा आर्थिक बाजार आकर्षण का केंद्र है। 2022 के G-20 बाली शिखर सम्मेलन में भारत ने यह संदेश भी दिया था कि आज का युग युद्ध का नहीं है। भारत G-20 के माध्यम अपनी अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन का लक्ष्य हासिल करने का भी प्रयास कर रहा है।भारत अपनी कूटनीति में प्रेग्मैटिक नीति का प्रयोग कर रहा है और वर्तमान विश्व व्यवस्था में समुचित योगदान भी दे रहा है इसीलिए सभी देश चाहेंगे कि साझे बयान पर आम सहमति बन सके।


लेखक 
आशुतोष द्विवेदी 

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