यहूदी पैगंबरों में एक हज़रत ख़िज़्र थे। एक धार्मिक जंग में उन्हें सिपाही बनाकर भेजा गया। गर्मी का महीना था; एक तरफ दुश्मन के चुंगल में फंसे थे और दूसरी तरफ़ सूरज आसमान से आग बरसा रहे थे।

यहूदी पैगंबरों में एक हज़रत ख़िज़्र थे। एक धार्मिक जंग में उन्हें सिपाही बनाकर भेजा गया। गर्मी का महीना था; एक तरफ दुश्मन के चुंगल में फंसे थे और दूसरी तरफ़ सूरज आसमान से आग बरसा रहे थे।

धीरे-धीरे खिज्र के खेमे के पास संग्रहित पानी ख़त्म होने लगा। उनमें से ही किसी बुजुर्ग ने उन सबको बताया कि आपमें से कोई जाये तो कुछ दूरी पर पानी मिल तो जायेगा पर वहां सब नहीं जा सकते बल्कि तुममें से कोई एक ही वहां जा सकता है और तो और वहां जाना भी संकट को न्योता देना है, क्योंकि जो जाएगा, संभावना है कि वो उस पानी के रक्षकों के हाथों मारा जाए।

उस फ़ौजी खेमे का हर सिपाही यही सोचने लगा कि काश उनमें से कोई जाए और सबके लिए पानी लेकर आये, इसी चक्कर में वक़्त बीतता जा रहा था और कोई भी जाने को तैयार न था। सबकी ज़िंदगी खतरे में थी क्योंकि सब प्यास से हलकान थे।

इधर जब सब किसी और के जाने का इंतज़ार कर रहे थे, हज़रत ख़िज़्र उस जलस्रोत की ओर निकल चुके थे और चलते हुए पानी के सोते के पास पहुँच गए।

जब खिज्र वहां पहुँचे तो उस तालाब पर तैनात रक्षकों के सरदार ने उनसे कहा - क्या तुम्हें किसी ने नहीं बताया कि यहाँ आने की हिमाक़त करने वाले को अपनी जान देनी पड़ती है?

ख़िज़्र ने कहा - जी! बताया था मुझे किसी ने।

सरदार ने उसने पूछा :- ये जानते हुए भी तुम यहाँ आये? क्यों??

ख़िज़्र :- इसलिए कि हममें से हरेक संकट के वक़्त किसी और की बाट जोहता है कि वो आये और उसे इस संकट से निकाल ले पर कोई भी उस संकट के भँवर से ख़ुद सबको बाहर निकालने वाला नहीं बनता। आज मेरे लश्कर के सब लोग संकट के बीच खुद कुछ न कर किसी मसीहा की प्रतीक्षा कर रहे थे और कि कोई मसीहा आये और उनके लिए कष्ट सहे और पानी ले आये। दूसरे के आसरे अपनी बेहतरी की कामना चाहना ही किसी कौम के पतन का कारण है।

सोते पर तैनात रक्षकों के सरदार ने उससे कहा- तो यही बात तो तुम भी अपने लिए सोच सकते थे तो तुमने ये क्यों नहीं सोचा?

ख़िज़्र :- मैं भी यही सोच सकता था पर मैंने ये सोचा कि अगर मेरी फ़ौज़ इसी मानसिकता में मुब्तला रही तो मसीहा के बाट जोहने की ये कर्मज़र्फ़ी एक दिन हमारा वजूद ही मिटा देगी तो किसी मसीहा की प्रतीक्षा करने की बजाए मैंने ये सोचा कि मैं ही अपनी फ़ौज़ के लिए वो मसीहा हूँ और मैं यहाँ आ गया।

सोते पर तैनात रक्षकों का सरदार ये सुनकर ख़िज़्र के प्रति नतमस्तक हो गया और उससे कहा- मैं तुम्हें तुम्हारे फ़ौज़ के लिए पानी ले जाने दूँगा और तुमको एक खुशखबरी भी दूँगा कि इस सोते से पानी लेने आने की हिम्मत करने वाले पहले बहादुर इंसान के लिए यह सोता "आब-ए-हयात" यानि अमृत बन जायेगा।

यहूदी दंत कथाओं में ख़िज़्र को आज भी जिंदा नबी माना जाता है।

ये कथा ऐतिहासिक है कि नहीं इससे अधिक महत्व की बात है इसका संदेश।

और वो संदेश ये है कि हम सब अपने जीवन के संकटों के बीच मसीहा की तलाश करते रहते हैं, पर हम ये नहीं सोचते कि जिस मसीहा की तलाश हम कर रहे हैं उसकी बजाए क्यों न हम ही उन लोगों के लिए मसीहा बन जाएं जो मसीहा की तलाश में हैं।

कोई अर्जुन आयेंगे और हमें संकटों से निकालेंगे, इसे सोचने की बजाए हमें सोचना है कि हम ही वो अर्जुन क्यों नहीं बने, जिसके इंतज़ार में लोग बैठे हैं।

अपने लिए किसी ख़िज़्र को खोजने की बजाए स्वयं ख़िज़्र बनिये, उनके लिए जो ख़िज़्र की तलाश में हैं। एक बार आप ख़िज़्र बन गये तो फिर आपके लोगों को संकट से निज़ात मिलेगी और आपको मिलेगा "आबे-हयात" यानि आत्म-संतुष्टि। 

भारत के सामने भी आज यही पाथेय है, जिसे भगवान श्री कृष्ण बहुत पहले दे गए थे, ये कहते हुए कि मैं नहीं लडूंगा, अपनी लड़ाई तो तुमको ही लड़नी पड़ेगी पर हां! अगर तुम लड़ने को तैयार हुए तो फिर तुम्हारा सारथी बनकर तुम्हारा पथ प्रदर्शन करूंगा।

अफ़सोस यहूदियों ने खिज्र की शिक्षाओं को आत्मसात कर लिया और हम कृष्ण की शिक्षाओं को भूल गए।

Abhijeet Singh

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