क्या सिख भी श्राद्ध करते हैं ?

हमारे घर पर जो दूध डालने आता है वह जट्ट सिख परिवार से है ,आज पितृपक्ष की अमावस्या है श्राद्ध के बारे में पूछने पर उसने बताया कि उन्होंने तो कल ही श्राद्ध किया था । 
इससे पहले जो जट्ट सिख बंधु दूध डालने आता था उसको एक दिन पूछा कि गुरपर्व कब है तो उसने बताया कि हमें तो शिवरात्रि का पता होता है जी हम तो दोहला जाते हैं । दोहाला में प्राचीन शिव मंदिर है । 

एक बार नैना देवी माता के दर्शन करने गए थे वहां पर भी बड़ी संख्या में सिख परिवार आए हुए थे । हमारे साथ जो महिला गई थी वह निरंकारी जट्ट थी उसने रास्ते में आ रहे गुरुद्वारे में जाने से इनकार कर दिया क्योंकि निरंकारी गुरुद्वारे में नहीं जाते जबकि माता नैना देवी के मंदिर में उसने इतने भाव से माथा टेका कि उसकी आंखों में आसूं आ गए । हमारे क्षेत्र के अधिकतर जट्ट सिख कलर कोट के दुर्गा माता मंदिर को मानते हैं । मैसेरखाना मंदिर में भी हजारों सिख आते हैं । हर शनिवार काली माता के मंदिर में भारी संख्या में सिख बंधु आते हैं । हमारे नगर में विष्णु महायज्ञ का आयोजन होता है जिसमें ट्रॉली भर भर के गांव से लोग आते हैं । 

पंजाब में सिख और हिंदू इतने रलगड़ हैं कि कई परिवारों में शादी में फेरे होते हैं और अंतिम भोग गुरुद्वारे में पड़ता है और अस्थियां हरिद्वार में विसर्जित की जाती हैं कई परिवारों को बता नहीं सकते कि यह हिंदू हैं या सिख । 
यह सब सोशल मीडिया में इतनी नफरत ,लोकतंत्र द्वारा हिंदू सिखों में आपस में बांटने के बावजूद है । लोकतंत्र जब तक रहेगा तब तक समाज में भेदभाव नफरत बढ़ती रहेगी । जब तक धार्मिक राजतंत्र नहीं आता धर्म का ह्रास जारी रहेगा । तब तक पंचनद की धरती को सनातन क्रांति की नितांत आवश्कता है जो प्रेमानंद जी जैसे साधु संतों के द्वारा शुरू कर दी गई है । वह दिन दूर नहीं जब सनातन धर्म और संस्कृति का अग्रदूत पंचनंद की धरती बनेगी और इसमें पाकिस्तानी पंजाब जिसको पछमी पंचनंद कहा जाता है वह सम्मलित है ।


साभार
राजीव कुमार 

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