भारतीय राजाओं और समाज की पराजय के प्रमुख कारण क्या थे जिससे कारण भारत का पतन शुरू हुआ था

१महत्व का प्रश्न
 हम देखते आये है कि किस तरह अरब तुर्क और अफगान आक्रमणकारियों के सामने भारत की प्रान्तीय राज्य एक दूसरे के बाद दूसरे पराजित होते गए यही घटना अगले चार पांच सौ वर्षों तक मुस्लिम आक्रमणकारियो के सामने भारत में घटी भारत के उपर पहले भी विदेशी आक्रमण हुए थे ईरानी यवन शक कुषाण और हूण आदि जातियों ने छठवीं शती ई ० पू० से लेकर पांचवीं शती तक की अवसरों पर भारत के उपर आक्रमण किए परन्तु प्रत्येक अवसर पर भारत शीघ्र संभलकर स्वतंत्र होता गया और उसके बाद भारतीय इतिहास के कई उज्जवल युगो का निर्माण हुआ किन्तु मध्यकालीन आक्रमणो के बाद बहुत लम्बे समय तक भारत ऐसा न कर सका इस घटना को समझना और इसके कारणों को ढूंढ निकलना ऐतिहासिक दृष्टि से बड़े महत्व का है ।

२ तथाकथित कारण 
भारतीय पराजय के कारणों में से कुछ इतिहासकारो ने शारीरिक कारणों का मुख्य स्थान दिया गया है उनका कहना है कि ठण्डे देशों में आने कारण मुसलमान शरीर में हिन्दूओं से अधिक हट्टे कट्टे और बलवान थे दूसरे मुसलामानों की घुड़सवार सेना उनका सैन्य संगठन आक्रमण करने का ढंग युद्ध युद्ध व्यूह रचना हथियारो का हिन्दूओं से अच्छा था इन कारणों से साथ साथ धार्मिक जोश और विदेश जाकर विजय के लिए सारी शक्ति लगा देना की भावना भी कुछ लोग जोड़ देते हैं इन कारणों को अंशत ठीक मानते हुए कहना पड़ता है कि मौलिक कारण न थे हिन्दूओं ने कई मौके मुसलमानों को शारीरिक बल और वीरता में हराया आगे 
 चलकर मराठों जाटों और सिक्खों ने मुस्लिम प्रदेशों पर आक्रमण भी किया सेना और अस्त्र शस्त्र के प्रयोग और मुसलमान में विशेष कोई अन्तर नहीं था देश और धर्म पर बलिदान होने वाले हिन्दूओं की कोई कमी नहीं थी भारत के पतन कारण इनसे अधिक गंभीर थे इन कारणों संक्षिप्त विवेचन नीचे किया जाता है ।

३ वास्तविक कारण  
क) राजनीतिक -- भारतीय राज्यो के पतन का पहला मुख्य कारण राजनीतिक था मुस्लिम आक्रमण के पहले सारा देशो छोटे छोटे टुकड़े में बट गया था भारतीय इतिहास में अक्सर यह देखा गया है कि जब भारत में बड़े साम्राज्य बने और उनकी केन्द्रीय शक्ति सबल रही तब तक विदेशियों को भारत पर आक्रमण करने का साहस नहीं हुआ परन्तु केन्द्रीय केन्द्रीय शक्ति और दुर्बलता के समय उन्होंने भारत पर सफल आक्रमण किया भारत छोटे छोटे प्रान्तीय और वंशगत राज्यों थे वे व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण आपस में लड़ा करते थे उनमें एकता नहीं थी कभी कभी वे संघ भी बनाते थे परन्तु वे दृढ़ और स्थाई नहीं हो पाते थे वंशगत राज्यों के सामने से देश की राजनैतिक एकता और उसकी रक्षा का प्रश्न ओझल हो गया एक एक करके वे आक्रमणकारियों से लड़ते और हार जाते भारतीय राज्य इतने कूप मण्डूक हो गए थे कि न तो सीमान्त नीति का उनको ज्ञान था और न परराष्ट्र नीति का पड़ोस के विदेशों देशो में क्या घटनाएं हो रही थी और भारत पर उनका न तो विदेशी राज्यों के साथ नियमित दौत्य सम्बन्ध था और न सीमा की रक्षा के लिए सुसंगठित सेना ही उनके पास थी ।

भारत की राजनीति में एक और महत्वपूर्ण परिवर्तन हो गया था एकतांत्रिक और निरंकुश राज्यों की स्थापना के बाद राज शासन में और देश के राजनीतिक भविष्य में प्रजा का हाथ और दिलचस्पी नहीं होता थी इसलिए जब देश के उपर बाहरी सेना का आक्रमण होता था तो सारी प्रजा उसके विरोध में नहीं थी राज्य के परिवर्तन से उसके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था यदि कोई विदेशी राजा आ गया तो वे उसको उसी प्रकार कर देते थे जिस प्रकार पुराने राजा को इस परिस्थिति में राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता की भावना लिया विदेशी सत्ता भारत में लम्बी समय तक क्यों टिक सकीं इसका रहस्य यही है ।

(ख) सैनिक -- मुसलमानो के सामने भारतीयो हार का दूसरा सैनिक था प्रान्तीय की सेनाओं का बहुत बड़ा भाग उनके समान्तो और सरदारों के पास अपनी स्थाई सेना कम होती है इस प्रकार से इक्कठी सेना में सबसे बड़ा दोष यह था कि नियम पूर्वक इसकी शिक्षा नहीं होती थी और न तो एक नेतृत्व में इसके लड़ने का अभ्यास होता था कभी कभी तो सेना नायक के चुनाव में ही झगड़ा हो जाता है सैनिक संघो के बनने में भी सबसे बड़ी कठिनाई यही थी इस काल की सेना में मौलिक दोष यह भी था कि केवल राजा के लिए लड़तीं थी देश या राष्ट्र के लिए नहीं इसलिए युद्ध में राजा के मारे जाने अथवा भाग जाने पर सेना तुरंत ही तितर बितर हो जाया करती थी भारतीय सेना में हाथियों का उपयोग कई बार घातक सिद्ध हुआ सिकन्दर के समय तक भारतीयों ने हाथियों के सम्बन्ध में अपने अनुभव से लाभ उठाया मुसलमानों की घुड़सवार सेना भारत की अधिक बहुसंख्यक पैदल सेना से अधिक उपयोगी थी उसमें गति तेजी ओर विध्वंसक शक्ति थी अस्त्र शस्त्र प्रयोग में मुसलमान और हिन्दूओं में कोई विशेष अंतर नहीं था परन्तु चीन की सीमा के पास आने कारण मुर्खो में कुछ आग्नेय आग से जलने वाले अस्त्र प्रयोग में आने शुरू हो गए थे जबकि धार्मिक कारणों से भारत में आग्नेय हथियारो का प्रयोग बन्द हो चुका था ।

( ग ) समाजिक -- राजनैतिक और सैनिक कारणों से अधिक गंभीर और मौलिक कारण हिन्दूओं की हार समाजिक धार्मिक और बौद्धिक थे जिन्होंने भारतीय जीवन को भीतर से खोखला बना दिया था समाज कई जातियों और उपजातियों में बंटता गया उसकी एकता और शक्ति क्षीण हो गई नयी जाति व्यवस्था के राजनैतिक और प्रायः क्षत्रिय होते थे जनता के मन में धीरे धीरे यह बात बैठ गई कि देश की रक्षा का भार केवल राजा उसकी सेना पर है देश की जनता पर नहीं लोगों ने यह भी समझ रखा था राज्य करना और लड़ना केवल क्षत्रिय जाति का काम है प्राचीन काल में जब वर्ण परिवर्तन सम्भव था और अन्तर्जातीय विवाह होते थे तब इस भावना को स्थान नहीं मिलता था मध्यकाल की सामन्त प्रथा और राजाओं वंशागत स्वार्थ ने इस भावना को दृढ़ किया। 

(घ ) धार्मिक --- धर्म ने भी देश और जातियों एक सूत्र में बांधने के बदले उनको अलग अलग संप्रदायो में बांट दिया वैदिक, बौद्ध और जैन सभी धर्मों में संप्रदाय उप - संप्रदाय और उप शाखा के बढ़ाने में होड़ -सी लगी हुई थी । सभी धार्मिक संप्रदायो में भक्ति मार्ग और गुहा अथवा वाम मार्ग की प्रधानता थी भक्ति मार्ग ईश्वर बुद्ध या तीर्थंकर पर अनन्य भक्ति पूर्ण आत्मसमर्पण संसार से वैराग्य और परलोक में विश्वास और उसके महत्व पर जोर देता था साथ ही साथ भक्ति मार्ग ने जीवन की आवश्यकता कठोर भावनाओं क्रोध अन्याय तथा अत्याचार के प्रति असहिष्णुता और घृणा आदि को दबाकर केवल भावों अहिंसा करूणा दया मैत्री प्रेम आदि -- को प्रोत्साहन दिया इसके सिवाय खाने पीने अचार अतिशुद्वि और छुआ छूत के नियमो के कारण जीवन छुई मुई सा हो गया धर्म के नाम पर कई अन्न विश्वास भी जनता में प्रचलित हो गए जैसे कलियुग की हीनता और भाग्यवाद में विश्वास, ज्योतिष में अटूट आस्था ब्राह्मण और गया की शारीरिक रक्षा का महत्व आदि कई युद्वो में ऐसा हुआ कि मुसलमान गाय की पांत के पीछे से उसकी पूछ को झंडे से लगाकर लड़ते थे और हिंदू गाय की पवित्रता का ध्यान रखकर उनपर आक्रमण नहीं कर सकते थे गुहा समाज और वाम- मार्ग से जनता में भ्रष्टाचार और अज्ञान बढ़ते जा रहा था  

(ड़) बौद्धिक जड़ता -- भारत में बौद्धिक जड़ता ने अपना घर कर लिया था जैसा कि पहले लिखा जा चुका है , कि इस युग के लेखकों में आत्मविश्वास का अभाव और दूरदर्शिता की कमी थी वे अब अतीत के सुवर्ण युगो केवल स्वप्न देख सकते थे प्रायः टीका भाष्य संग्रह और निबंध लिखकर वे सन्तोष कर लिया करते थे इसलिए मुस्लिम आक्रमण से उत्पन्न दयनीय स्थिति को समझने और उसका निकलने में असमर्थ थे ७०० इ० से लेकर १२०० ई ० तक की एकाकी स्थिति ने भी भारतीयो को कूप मण्डूक बना दिया साथ - साथ उनमें अभियान आलस्य और असावधानी भी आने लगी। वे समझने लगे कि भारत सैनिक और राजनैतिक दृष्टि से अजेय है इस कारण से बाहर से दौत्य- सम्बन्ध, न सीमा की रक्षा का प्रबंध और न सेना का समुचित प्रबंध ही था एक विचित्र असावधानी और अत्यंत अंधविश्वास बुद्धि विवेक और प्रिया शक्ति को ढक लिया था। अलबेरूनी ने मानव जीवन का सूक्ष्म निरीक्षक था,है हिन्दूओं की इस मनोवृत्ति की शिकायत की है 

भारतीय राज्यो के मौलिक पतन में मौलिक कारणों के लिखने का मतलब यह नहीं है कि जिन गुणो की कमी हिन्दूओं कमी थी, वे सब गुण मुसलमानों में मौजूद थे। इसका अर्थ केवल है कि देश के उपर आक्रमण और कभी -कभी मानवता के उपर बहनेवाले आंधी- पानी को रोकने गुण आवश्यक है उनका हिन्दूओं आभाव हो गया था इसलिए पुरानी और प्रौढ़ सभ्यता तथा लम्बे - चौड़े देश साधन होते हुए भी विदेशियों से देश की रक्षा न कर सके थे । 


सोर्स प्राचीन भारत पुस्तक 

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