Israel-Palestine : संदूक की हैरान कर देने वाली कहानी क्या है ?


 

'क़ुरआन' के 'सूरह बकरह' की 248 वीं 'आयत' में "ताबूत-ए-सकीना' वर्णन आया है; इसमें एक संदूक का उल्लेख है। इस संदूक में उन चीजों के होने का वर्णन है जो 'मूसा' और 'हारुन' और उनके बाद के नबियों के थे। परंतु मुस्लिमों के बीच ये कथा प्रचलित है कि यह संदूक 'शमशाद की लकड़ी' का बना हुआ था जिसे 'हज़रत आदम' जन्नत से लेकर आये थे और फिर उसके बाद विरासत रूप में ये संदूक यहूदी लोगों के अलग-अलग नबियों के पास रहा। 

मुस्लिम इस ताबूत को ही 'ताबूत-ए-सकीना' कहते हैं। इसके बारे में मुस्लिमों की मान्यता है कि इसमें 'हज़रत मूसा' की चमत्कारिक लाठी, उनके जूते (जो उन्होंने 'सिनाई' पर्वत के नीचे उतारा था), उनके भाई 'हारून' का 'अमामा' और दस आज्ञा वाली 'तौरात' की पट्टी के साथ 'सलवा और मन्न' (आहार) तथा 'हज़रत सुलेमान' की अंगूठी मौजूद है। 'मुसलमान' ये मानते हैं कि जब तक ये 'संदूक' यहूदियों के पास रहा वो सौभाग्यशाली रहे पर उन्होंने उसे खो दिया और अब वो संदूक उनको कभी नहीं मिलेगी।

इस संदूक का उल्लेख पहले 'बाईबल' में आया है और कई जगहों पर आया है। 'बाईबल' में इसे 'वाचा का संदूक' बताया गया है और कहा गया है कि इस संदूक को बनाने का हुक्म 'येहोवा' ने 'सिनाई पर्वत' पर 'मूसा' को दिया था ताकि इसमें वो तौरात की दस आज्ञाओं की दो पट्टियों को सुरक्षित रख सकें। 'बाईबल' में ये संदूक किस लकड़ी से बना है, कितनी लम्बाई-चौड़ाई और ऊँचाई का है, इसे किसने बनाया आदि सब विस्तार से वर्णित है। 

ये 'संदूक' इतना पवित्र माना जाता था कि बड़े-बड़े 'रब्बी' (यहूदी धर्मगुरु) भी इसे सीधा नहीं छूते थे बल्कि इसे डंडों के सहारे टांग कर कहीं ले जाया जाता था और युद्ध के खेमे में 'यहूदी' इसे 'विजय का आश्वासन' मानकर ले जाते थे और वापस आकर इसे पुन: पवित्र तम्बुओं में रख दिया जाता था। 

'यहूदी' ये मानते थे कि जो भी इसकी बेअदबी करेगा वो बर्बाद हो जायेगा और ये जब तक हमारे पास है 'सौभाग्य' और 'येहोवा' की कृपा हमारे साथ रहेगी। एक बार 'शमूयेल' के समय जब ये संदूक 'शीलो' नाम के तम्बू में रखा हुआ था, 'पलिश्ती' लोग इसे उठाकर ले गए और इसे 'कूड़ा-घर' में फेंक दिया लेकिन उसके बाद पलिस्तियों के अंदर भयंकर बीमारी फ़ैल गई और 7 महीने तक एक भी आदमी ठीक न हुआ तो वो लोग डर से इसे वापस एक बैलगाड़ी पर लाद कर बैलों को 'बनी इसराईल' की बस्तियों की तरफ हांक दिया और फिर से ये संदूक यहूदियों के पास वापस आ गया। 

जब 'डेविड' 'इजरायल' के राजा बने, तो उन्होंने इस संदूक को अपना 'शासन चिन्ह' घोषित किया और फिर जब उनके बेटे 'सुलेमान' राजा बने तो उन्होंने सोचा कि हम तो महलों में रहें और ये 'संदूक' वेदी में धूल फाँकती फिरे और इसी सोच में उन्होंने 'येरूशलेम' में एक 'विशाल मंदिर' बनाने की योजना बनाई और जब मंदिर बनकर पूरा हुआ तो इस संदूक को उस मंदिर में स्थापित कर दिया गया। 

ईस्वी पूर्व 587 में जब बेबिलोनियों ने इस मंदिर को नष्ट किया तो उन लोगों ने इस संदूक को दुबारा वहां से लूट लिया और उसके बाद से संदूक अब तक लापता है। 

आश्चर्यजनक रूप से इस संदूक को नष्ट करने वाले 'बेबीलोन' के बादशाह की हुकूमत कुछ वर्ष बाद ही बर्बाद हो गई, यहूदी ये मानते हैं कि संदूक को चोरी करने की सजा येहोवा ने उसे दी। वहां बाद में यहूदियों का "सेकेण्ड टेम्पल" बना भी और नष्ट भी हो गया पर आज तक वो संदूक नहीं मिल सका है। 

'यहूदी' दुनिया के सबसे अधिक पढ़े-लिखे और वैज्ञानिक सोच के माने जाते हैं पर आप यकीन नहीं करेंगे कि हर 'यहूदी' इस संदूक की कथा को अक्षरश: सत्य मानता है और इजरायल की कई सारी एजेंसियाँ दिन-रात इस lost संदूक को खोजने में लगी हुई है। उनका अंदेशा है कि "हैकल सुलेमानी" (जिसका अभी केवल "वेस्टर्न वाल" वाला हिस्सा ही बचा है) के क्षेत्र में ही कहीं न कहीं ये "संदूक" दबा हुआ है पर आज उस स्थान पर 'टेम्पल डोम', 'मस्जिद-अक्सा', 'मस्जिद-उमर', 'मस्जिद-बुर्राक' समेत कई सारी इमारतें हैं, जिससे इजरायल को उस "संदूक" की तलाश में दिक्कत आ रही है पर "मुस्लिम जगत" लगातार ये शिकायत कर रहा है कि 'यहूदी' लोग संदूक तलाशने की आड़ लेकर हमारे मस्जिदों के नीचे खुदाई कर रहे हैं ताकि मस्जिदों की बुनियाद खोखली हो जाए और वो अपने-आप ढह जाए।

'यहूदी' 'ओल्ड येरुशेलम' के उस पूरे "विवादित परिसर" पर 'थर्ड टेम्पल' बनाने के लिए कृत-संकल्पित हैं और उस मंदिर की शोभा 'वाचा' वाले उस 'संदूक' से होनी है, इसलिए यहूदी रात-दिन एक कर उस #संदूक की तलाश कर रहे हैं। 

उन तीन संकल्पों में दो तो ये है और तीसरा है 'ग्रेटर इजरायल' का जिसके बारे में 'यहूदी' मानते हैं कि इस संकल्प को पूरा करेगा उन्हें अजेय बनाने वाला वो 'संदूक' जो खोया हुआ है। जिस दिन ये संदूक मिल गया उसी दिन उनका "मसीहा" भी आ जायेगा।

यूं समझिये तो ये 'संदूक' यहूदियों के लिए एक तरह से धरती पर 'जेहोवा' का प्रतिनिधित्व करता है उस 'यहोवा' का जिसे "यहूदी" तब भी नहीं भूले थे जब यहूदियों को "यहूदियत" न छोड़ने के कारण जिंदा जलाया जा रहा था।



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