Mahatma Gandhi : महात्मा गाँधी की गलती यह थी कि वह आज के समय के नेता नहीं थे। लेकिन उनकी सबसे अच्छी बात यह थी कि वह अपने समय के नेता थे।

महात्मा गाँधी की गलती यह थी कि वह आज के समय के नेता नहीं थे। लेकिन उनकी सबसे अच्छी बात यह थी कि वह अपने समय के नेता थे।
नेता जी सुभाष, महान क्रांतिकारी वीरों, वीर सावरकर, अंबेडकर आदि की गलती यह थी कि वह अपने समय के नेता नहीं थे। इन सबकी सबसे बड़ी अच्छाई यह थी कि यह सब अपने अपने विषय में अपने समय से सौ साल आगे की सोच रखते थे। 

भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे लोग भी गाँधी जी के आंदोलन से ही प्रभावित होकर आज़ादी की लड़ाई में जुड़े लेकिन ये लोग महात्मा गाँधी की तरह कायरों के नेता नहीं थे, वीरों के नेता थे, पर देश का दुर्भाग्य यह था कि महात्मा गाँधी को भी यह सत्य स्वीकार करना पड़ा था कि एक औसत हिंदू कायर होता है, जबकि एक औसत मुसलमान गुंडा। इसलिए इन क्रांतिकारियों के सर्वस्व बलिदान के बाद भी लोग इनसे नहीं जुड़े, बल्कि लोग गाँधी से ही जुड़े। गाँधी उस समय के बहुसंख्य कायर समाज के सबसे श्रेष्ठ नेता थे। गांधी की समय और राजनीति पर पकड़ अचूक थी।

गाँधी को अंग्रेजों का एजेंट कहा जाता है। ऐसा ही सावरकर और अंबेडकर को भी अलग अलग धड़े के लोग कहते हैं। यह तीनों नेता इस दृष्टिकोण से महान हैं कि इनको सही समय पर समझ आ गया था कि हमारे वास्तविक दुश्मन अंग्रेज नहीं हैं, हमारे वास्तविक दुश्मन मुसलमानों के भीतर छिपी भारतीय सत्ता को पाने की लालसा है। और वह उसके लिये किसी भी हद तक जाएँगे जिसमें जातियों में बटे हिंदुओं का नरसंहार भी शामिल है। यह तीनों इस बात को ठीक समय पर समझ चुके थे कि अंग्रेज वास्तव में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच की दीवार हैं, जिनके जाते ही मुसलमान, हिंदुओं को निगल जाएँगे। इसलिए इन तीनों ने एक साथ विभाजित हिंदुओं को जोड़ने का काम शुरू किया। लोग इन तीनों को एक दूसरे का दुश्मन बताते हैं जबकि मुझे यह तीनों एक दूसरे के पूरक नज़र आते हैं। सन् 1935 के बाद नेता जी के अतिरिक्त एक भी ऐसा बड़ा व्यक्ति नहीं था जो यह चाहता था कि अंग्रेज यहाँ से जल्दी भागे। अंग्रेज जब तक रहते, वह ग्रेस पीरियड था हिंदू समाज को एकीकृत करने के लिए। 

इन तीनों को अंग्रेजों का एजेंट कहने वाला अलग अलग धड़ा है लेकिन मेरा मानना है कि यदि इसमें से कोई अप्रत्यक्ष तौर पर अंग्रेजों का एजेंट रहा भी होगा तो इसमें रत्ती भर बुराई नहीं है। यह एक समझदार व्यक्ति की निशानी है कि एक बड़े लक्ष्य के लिए छोटे लक्ष्यों को क़ुर्बान किया जाय। अपने इमेज बिल्डिंग में बड़े लक्ष्यों को छोड़ना भी एक प्रकार का स्वार्थ ही है। महात्मा गांधी इस मामले में महत्वपूर्ण रहे कि वह अंग्रेजों को यह समझाने में भी पूरी तरह सफल रहे कि मेरे बिना आपका भी गुजारा नहीं हो सकता, इसलिए अंग्रेज उनके ऊपर एक सीमा से अधिक कार्यवायी करने की हिम्मत नहीं रखते थे। 

महात्मा गांधी ने दूसरा महत्वपूर्ण कार्य यह किया कि वह एक मुसलमान से भी अधिक मुसलमानों का चिंतक बनने का दावा पेश करते रहे। इसलिए कांग्रेस में कभी कोई मुसलमान लीडरशिप नहीं पनपने पाया। मुसलमानो को कांग्रेस और आज़ादी के आंदोलन में अलग से नेतृत्व पाने के लिए यह साबित करना अनिवार्य था कि उनकी कांग्रेस में सुनवाई नहीं है अथवा कांग्रेस के सुप्रीम लीडर मुसलमानों के बारे में बुरा विचार रखते हैं। 

बाक़ी विचारों कि बात की जाय तो महात्मा गाँधी ने जातिय छुआछूत पर बड़ा उदाहरण अपने दैनिक व्यवहार से स्थापित किया जो हिंदुत्व की बड़ी सेवा थी। आदर्श राज्य की कल्पना में उन्होंने रामराज्य को ही मान्यता दी। गोरक्षा के प्रबल समर्थक थे। भारत अखंड होना चाहिए, उनकी स्पष्ट मान्यता थी। शरणार्थियों के नागरिकता के सम्बंध में जो वर्तमान क़ानून अमित शाह जी ने लागू किया उसकी भूमिका भी उन्होंने महात्मा गाँधी के ही विचार से रखी। ईसाई मिशनरियों को राइस बैग संज्ञा सबसे पहले उनके द्वारा ही दिया गया। लालच देकर धर्मांतरण को उन्होंने बड़ा पाप बताया। स्वदेशी की उनकी अवधारणा हम सब जानते और मानते हैं। इसी प्रकार स्वच्छता के प्रति उनके आग्रह, प्रयास और जागरूकता को आज सब स्वीकार कर रहे हैं। 

भारत का प्रत्येक हिंदुवादी वैचारिक रूप से महात्मा गांधी के उपरोक्त सभी विचारों का कट्टर समर्थक है। बाक़ी गांधी के व्यक्तिगत जीवन में न कोई मेरी बहुत रुचि है और न ही उसका कोई सामाजिक महत्व। 

महात्मा गाँधी उस वक्त कायरों के नेता बने जब देश का अधिकांश हिंदू समाज कायर था। उन्होंने कायरों से कहा कि मुझे मालूम है कि तुम्हारे अंदर अत्याचारियों को मारने की न हिम्मत है और न ताक़त। यदि प्रतिकार नहीं कर सकते तो कम से इतना तो कहो कि आप मेरे साथ ग़लत कर रहे हैं, अधिक से अधिक क्या होगा? वह तुम्हारे ऊपर अत्याचार करेंगे, तुम उसको सह लेना, पर दोहराते रहना कि आप ग़लत हैं।
इससे कुछ हो, न हो, कम से कम इतना तो अपने आत्मा को शांति होगी कि हमने अपने हिस्से का विरोध दर्ज करा दिया। हमने तो सत्य का आग्रह किया। 

बाक़ी आप के पास शिकायत बहुत है। पर गाँधी को गाँधी की दृष्टि से समझने का प्रयास करिए। अपने दुराग्रह के चश्मे से गाँधी आपको कभी समझ नहीं आयेंगे। गाँधी जब ज़िंदा थे तब भी एक ब्रांड थे और जब मारे गए तब भी एक ब्रांड हैं। पूरी दुनिया में गाँधी और भारत को आप कभी अलग नहीं कर पायेंगे। 

नाथूराम का समर्थन करते समय ज़रा ध्यान से अपने विचारधारा को देखिए, कहीं आप भी तो वास्तव में गाँधी के ही विचार वाले तो नहीं हैं? और शायद आपको पता भी नहीं है।

डॉ भूपेन्द्र सिंह 
लोकसंस्कृति विज्ञानी

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