कुशा कुशल कुशाग्र


 

यह 'कुश' या 'कुशा' नाम की घास है। 

कुश, कास, सरपत, मूँज इन सबकी फ़ैमिली यानी 'कुल' एक ही है। ये सब पोएसी या ग्रैमिनी फ़ैमिली जिसे सामान्यत घास परिवार कहते हैं, से आते हैं। गन्ना, ज्वार, बाजरा, धान, गेंहू, मक्का, सहित दुनिया के प्रमुख खाद्यान्न और बाँस, दूब घास इत्यादि सब इसी 'घास' या 'तृण' कुल के ही सदस्य हैं।

हिन्दू, जैन और बुद्ध धर्म-दर्शन में कुश को बहुत ही पवित्र और आनुष्ठानिक माना गया है। ऋग वेद में इसको विभिन्न प्रयोजनों के लिए अत्यंत पवित्र बताया गया है, गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने योग-ध्यान के लिए कुश की बनी आसनी को आदर्श बताया है। भगवान बुद्ध ने भी जब ज्ञान प्राप्त किया तो वे इसी की आसनी पर ध्यान लगाए थे।

पौराणिक कथाओं के अनुसार माता सीता के दूसरे पुत्र का जन्म इसी 'कुश' घास से हुआ था, इसलिए 'लव' के दूसरे भाई का नाम 'कुश' कहलाया। 'लव-कुश'

प्राचीनकाल में गुरुकुल-आश्रम व्यवस्था में श्रषि-मुनि-आचार्य पूजा-पाठ, पवित्री/पँहिती/आचमनी, आसनी, पितृपक्ष में तर्पण, मंडप/छप्पर यज्ञ कर्म में इसके विशेष महत्व के कारण और इसके अतिरिक्त भी इत्यादि विभिन्न प्रयोजनों के लिए गुरुकुलवासी बटुकों (आश्रम व्यवस्था में आठ वर्ष से कम उम्र के बालक को 'बटुक' कहा जाता है) से 'कुश/कुशा' लाने जंगल भेजते थे। जो शिष्य जितना अच्छा कुश लाता वो उतना ही "कुशल" माना जाता। यहीं से "कुशल" शब्द आया।कालान्तर में किसी कार्य को दक्षतापूर्वक करने वाले के लिए यही कुशल शब्द रूढ़ हो गया।

कुश का पौधा कास या सरपत से छोटा होता है और इसकी जड़ का अग्र भाग बहुत नुकीला / तेज़ (शार्प) होता है, इसलिए शार्प या तेज़ के लिए 'कुशा का अग्र' या "कुशाग्र" शब्द की उत्पत्ति हुई। किंवदंतियों के अनुसार, कौटिल्य / चाणक्य के पैरों में इसकी जड़ चुभ गई थी, जिसके समूल नाश के लिए उन्होंने इसकी जड़ों को सुखाने के लिए उसमें मट्ठा डालना शुरू कर दिया था।

टिप्पणियाँ