MP Election 2023 : मध्यप्रदेश की तुलना कर्नाटक से नहीं क्यो नही हो सकती क्या कहते समीकरण ?

मध्यप्रदेश की तुलना कर्नाटक से करने वाले लोग यह भूल जाते हैं। मध्यप्रदेश में भाजपा की पहली सरकार 1990 में बनी थी। विवादित ढांचा के विध्वंस के बाद भाजपा की सरकार तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश समेत भाजपा दो और राज्यों की सरकार को बर्खास्त कर दिया था उसके बाद के चुनाव में मध्यप्रदेश की जनता ने समर्थन नहीं किया और भाजपा को 1992 से लेकर 2002 राजनैतिक वनवास में जाना पड़ा उसके बाद जब 2003 में भाजपा ने दोबारा वापसी की थी तो भाजपा ने 173 सीट जीती थी । उसके बाद 2008 के चुनाव में भाजपा को 143 सीट मिली थी 2013 में भाजपा ने 165 सीट जीती थी । 2018 में एससी एसटी एक्ट शिवराज सिंह चौहान के माई लाल वाले बयान कारण और सवर्णों की नाराज़गी के कारण सपाक्स अजाक्स नोटा और वनवासी क्षेत्रों में जयस के कारण भाजपा को 2 से 3% वोट का नुक़सान हुआ था , 2018 में भाजपा को कांग्रेस को 40.89%वोट मिले थे और भाजपा को कांग्रेस से एक फीसदी ज्यादा 41.02 % जो कांग्रेस एक फीसदी ज्यादा है फिर कांग्रेस 114 सीट मिली और भाजपा 109 सीट मिली थी । फिर भी कांग्रेस को मध्यप्रदेश में बहुमत नहीं मिला था । कांग्रेस ने मुख्यमंत्री का चेहरा ज्योतिरादित्य सिंधिया को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया था । चुनाव के बाद कांग्रेस ने दुल्हा ही बदल दिया और कमलनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया उसके बाद कांग्रेस के दो बड़े नेता दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ज्योतिरादित्य सिंधिया को रास्ते से हटाने के लिए और अपने बेटों को आगे बढ़ाने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपमानित करने लगे अंत में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने 25 विधायकों के साथ भाजपा में आ गए और 15 माह में कमलनाथ की सरकार गिर गई ।  भाजपा की सरकार मध्यप्रदेश में फिर बन गई उसके बाद उपचुनाव हुए भाजपा ने 19 सीट जीती और कांग्रेस ने 6 सीट जीती । उसके बाद कांग्रेसी आरोप लगाते हैं की भाजपा ने उनकी सरकार धोखे से गिरा दी यह आरोप लगाते हुए कांग्रेसी यह भूल जाते हैं चुनाव तो सिंधिया जी नेतृत्व में लड़ा था चुनाव के बाद सिंधिया जी को कांग्रेस वरिष्ठ नेताओं ने रास्ते से हटाने का प्रयास क्यों किया था ? इसी प्रकार की हरकत कांग्रेस ने राजस्थान में भी की थी चुनाव में चेहरा सचिन पायलट थे चुनाव के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को बना दिया पांच साल सचिन पायलट को अपमानित करते रहे सचिन पायलट सिंधिया जैसा साहस नहीं दिखा पाए अपमान घूंट पीते रहे । जो लोग मध्यप्रदेश में धोखे सरकार गिराने का आरोप लगाते हैं वो लोग यह भूल जाते हैं विवादित ढांचा के विध्वंश के बाद जनता द्वारा चुनी गई भाजपा की चार राज्यों की सरकारें  असंवैधानिक तरीके से बर्खास्त करने पर चुप्पी क्यों साध लेते हैं ? पहले खुद कांग्रेसी अपने सर्वोच्च नेता को अपमानित करते हैं जब वह नेता अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए कांग्रेस को छोड़ देता है तो विपक्षी पार्टी पर खरीद फरोख्त करके सरकार गिराने का आरोप लगाने लगते हैं ‌। इतना दोहरापन कांग्रेसी कहा से लाते हैं ?  कमलनाथ के साथ बीजेपी ने गलत किया तो लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई चार राज्यों की सरकार बर्खास्त करने पाप कांग्रेस ने 1992 मे क्यों किया था ? तब नैतिकता और नैतिक मूल्य कांग्रेस के कहा चले गए थे पहले मध्यप्रदेश की जनता को कांग्रेसी बताए और 1992 में कांग्रेस ने जो पाप किया था उसके लिए कांग्रेस पहले मध्यप्रदेश की जनता से माफी कब मांग रही है? कांग्रेस ने 1953 से लेकर 2009 तक जनता जनता द्कवारा चुनी गई 41 सरकारों को बर्खास्त किया है । भाजपा ने  अभी तक एक भी सरकार को बर्खास्त नहीं किया है । कांग्रेस जब भाजपा पर अनैतिक होने खरीद फरोख्त आरोप लगाती है तो ऐसा लगता नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली ।  

कमलनाथ की सरकार गिरने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने अपनी गलतियों सुधारने के लिए बहुत सारे प्रयास किए और ताबड़तोड़ एक्शन भी लिए उत्तर प्रदेश के तर्ज़ पर मध्यप्रदेश में बुलडोजर कार्यवाही की और जन कल्याणकारी योजनाओं के को लागू किया और केंद्र की योजनाओं को तेजी से लागू किया आवास योजना मुफ्त राशन की योजना हो या आयुष्मान योजना हो या प्रधानमंत्री सम्मान निधि का छः हजार मुख्यमंत्री सम्मान निधि योजना का 4 हजार मिलाकर किसानों को 10 हजार साल में मिलते हैं जल जीवन मिशन योजना के तहत मध्यप्रदेश ज्यादातर गांव में पानी पहुंच गया है। शिवराज सिंह चौहान के 20 साल के शासन में बिजली पानी सड़क के क्षेत्र में बहुत बेहतरीन काम हुआ लाड़ली बहना योजना के बाद महिलाओं के बड़े वर्ग भाजपा के प्रति विश्वास भी बढ़ा है ।   इसलिए 2018 से 2023 के बीच मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी में पानी बहुत बह चुका है । 

भाजपा पिछले चार-पांच चुनावों अपने पक्ष में माहौल बनाने विफल क्यो हो रही है ?

पिछले चार-पांच चुनावों का विश्लेषण करने के बाद मैं पाया हूं भाजपा अपने पक्ष में माहौल बनाने में विफल हो रही है ऐसा क्यों रहा इस पर भाजपा के संगठन को आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है ? चुनाव प्रबंधन में भाजपा का कोई सानी नहीं था फिर ऐसा कैसे हो रहा है ? जबकि कांग्रेस समेत विपक्षी दल अपने पिद्दी मिडिया के माध्यम से माहौल बनाने में सफल हों जाते हैं उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में बीजेपी 350 सीट जीतने के स्थिति में थी स्वामी प्रसाद मौर्य प्रकरण कारण नॉन परफॉर्मिंग विधायकों का टिकट काटने जोखिम नहीं उठा पाई जिसका भाजपा को नुक्सान हुआ भाजपा की टैली 275 पर अटक सपा को लाभ हुआ । यही स्थिति बिहार में 2010 के चुनाव में देखने को मिली थी । कर्नाटक में भाजपा कभी बहुमत नहीं पाई कर्नाटक में भाजपा लोकल लीडरशिप के संकट से जूझ रही थी कांग्रेस के पास पांच छः मजबूत नेता कर्नाटक में थे । हिमाचल भाजपा गुटबाजी के कारण हारी थी ।  

मध्यप्रदेश में भाजपा को रणनीतिक रूप से बढ़त क्यो है ? 

मध्यप्रदेश को लेकर अभी तक जितने ओपनियन पोल आए कुछ ने कांग्रेस को बढ़त दिलाई है और कुछ ने भाजपा को बढ़त दिखाई दी है । फिर भी मध्यप्रदेश को लेकर ज्यादातर सर्वे भाजपा की ताकत और शक्ति को इग्नोर कर रहे हैं क्योंकि मध्यप्रदेश सही मायने संघ हिन्दुत्व विचार की प्रयोगशाला है क्योंकि मध्यप्रदेश में हर चौथा व्यक्ति संघ या संघ के अनुसांगिक संगठनों से संबंध रखता है और मध्यप्रदेश भाजपा का 40% वैचारिक आधार वाला मतदाता भी है जो किसी परिस्थिति कांग्रेस जैसे दल को वोट नहीं कर सकता है । इस 40% के साथ 3 से 4 % स्विंग वोटर जुड़ गया तो क्लोज फाइट वाले चुनाव को पलटने की क्षमता रखता है । मैं ने उपर एक बात कही थी मध्यप्रदेश भाजपा की पहली सरकार 1990 में बनी थी विवादित ढांचा ढहने के बाद भाजपा की सरकार बर्खास्त कर दी गई थी । मध्यप्रदेश में संगठन कितना मजबूत इसकी गवाही 2018 के चुनाव परिणाम दे रहे थे जब एससी एसटी एक्ट शिवराज सिंह चौहान के माई लाल वाले बयान के कारण भाजपा के साथ 1990 के दशक जुड़ा कोर वोटर भाजपा से नाराज़ हो गया था भाजपा को सबक सिखाने की बात कर रहा था उस स्थिति में भाजपा ने सवर्ण बहुल 27 सीटों में परचम लहराया था और भाजपा ने उस कठिन परिस्थिति में भाजपा ने 109 सीट जीती थी। कांग्रेस पास 2018 में सुनहरा मौका था उस वक्त कांग्रेस चूक गई थी इस बार 2018 जैसी स्थिति नहीं है । इसके अलावा भाजपा कर्नाटक और हिमाचल की गलती सिखते हुए मध्यप्रदेश के चुनाव को स्थानीय स्तर पर लड़ने का प्रयास कर रही है । मध्यप्रदेश में एक वर्ग शिवराज सिंह चौहान के चेहरे लोग उब चुके हैं इसलिए भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को चेहरा नहीं बनाया है और भाजपा नरेंद्र मोदी जी के चेहरे पर में चुनाव लड़ रही है । भाजपा का चुनावी स्लोगन भी एमपी के मन में मोदी है । मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को 20 वर्ष से देखते हुए शिवराज सिंह चौहान से उब चुका है टिकट वितरण में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने एक प्रयोग किया और भाजपा ने अलग-अलग क्षेत्रों में मजबूत जनाधार वाले नेताओं को चुनाव में उतार दिया है जैसे मालवा निमाड़ क्षेत्र में कैलाश विजयवर्गीय चंबल रीजन में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और महाकौशल क्षेत्र में प्रहलाद सिंह पटेल को उतारा और विंध्य में सतना के सांसद गणेश सिंह और सीधी की सांसद रिती पाठक को उतारा है । इसके माध्यम बदलाव की बात करने वाले मतदाता को अलग अलग क्षेत्र में विकल्प दिया है । इन नेताओं के उपर भी दबाव बन गया अपने क्षेत्र से सबसे अधिक सीट जीतकर लाएंगे तो मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं। इसलिए पहले ये नेता अपने क्षेत्र में खाली होते थे भाजपा को हराने का प्रयास करते थे । इस बार इन नेताओं को अपने साबित करने की चुनौती है । 

मध्यप्रदेश में वर्तमान दोनों दलो की क्या स्थिति है ? 

मध्यप्रदेश का चुनाव बहुत रोचक और दिलचस्प हो चुका है । आम जनता में चुनाव को लेकर कोई उत्साह नहीं है बहुत नीरस चुनाव हो चुका है । दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता सहमे हुए हैं । मध्यप्रदेश का चुनाव बदलाव बनाम महिला पर टिका हुआ है । युवा बदलाव चाहते हैं महिला साइलेंट है । कांग्रेस 18 साल के सत्ता विरोधी लहर और के नांव पर सवार को नैया पार करने में लगी हुई है और भाजपा अपने 18 वर्ष के काम और जन कल्याणकारी योजनाओं से नये जुड़े मतदाता समूह के भरोसे नैया पार करना चाहती है । इसके अलावा 20 से 30 सीट बसपा भी बहुत मज़बूती से लड़ रही है जो दोनों पार्टियों के लिए सिरदर्द बनी हुई है । इस स्थिति में मध्यप्रदेश को लेकर कुछ कहना अभी  बेमानी होगा मध्यप्रदेश का चुनाव किस करवट लेगा 5 से 6 दिन में तय हो जाएगा । क्योंकि मध्यप्रदेश का इस बार चुनाव प्रत्याशी और लोकल मुद्दो पर हो रहा है जो पार्टी अपने मतदाता को बूथ तक ले जाने में सफल हो जाएगी वही मध्यप्रदेश में सरकार बनाने जा रही है या सबसे बड़ी पार्टी बनने जा रही है । जो लोग मध्यप्रदेश की तुलना कर्नाटक से कर रहे उन्हें मध्यप्रदेश के संदर्भ में कुछ जानकारी नहीं है । मध्यप्रदेश और कर्नाटक में कोई समानता नहीं है क्योंकि कर्नाटक में भाजपा ने कभी बहुमत प्राप्त नहीं किया भाजपा कर्नाटक की विधानसभा की 225 सीट में 64 से 75 ऐसी सीट जहां भाजपा कभी नहीं जीती है भाजपा कर्नाटक में 150 सीटों पर सही तरीके से लड़ती है । और मध्यप्रदेश में भाजपा ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2002 में किया तब 173 सीट जीती थी और 2013 में भाजपा 165 सीट जीती थी । इसीलिए मध्यप्रदेश के समीकरण कर्नाटक से किसी प्रकार से नहीं मिलते हैं इसलिए कर्नाटक से मध्यप्रदेश की तुलना नहीं की जा सकती हैं। 

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