Bhavishya Mahapurana: की सनातन धर्म कर्मकांड , इतिहास और राजनीति का एक विशाल कोश क्यो है जानने के लिए पढ़ें पूरा आलेख


प्राचीन भारतीय संस्कृति और इतिहास के मर्मज्ञ भली-भांति जानते हैं कि अष्टादश पुराणों में भविष्यमहापुराण का कितना उच्च स्थान है और उनमें कितनी महत्वपूर्ण सामग्रियो का समावेश हुआ है। हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग ने इस ग्रंथ का अनुवाद जिस वैज्ञानिक पद्धति को अपनाकर और जिस रीति से उसे प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया किया है , वह सभी बहु जिज्ञासुओं एवं पुराणोंज्ञो के लिए बहुत ही उपयोगी है।

 इतिहासपुराणाभ्यां वेदं रामुबृह्ते ।
 विभेत्यल्पश्रुत दवेदो मामयं प्रहरिष्यति ।। 


अर्थात - वेदो के उपबृंहण रूप हो जाने के कारण पुराणों का महत्व स्वंत प्रमाणित है । यह नितांत सत्य है कि पुराण संस्कार को वेदो के रहस्यात्मक म़त्रो को सरल प्रयोग द्वारा जन सामान्य के लिए उपयोगी एवं सम्प्रेषणीय बना दिया है। 


भविष्यमहापुराण सनातन धर्म कर्मकांड , इतिहास और राजनीति का एक विशाल कोश है । इसमें अनेक प्राचीन ज्ञान विज्ञान का सार सगृहीत है। कुछ प्राचीन विशिष्ट ग्रंथ भी इसमें समाहित हो गए हैं । इसकी रमणीयता भी अवर्णनीय है। सूर्यराधना की विशेषताओं व्रतों एवं नियमों प्रमाणिकता के लिए हेमाद्रि अपरार्क स्मृतिचद्रिकाकार देवण्णभट्ट (११२५ -१२२५) आदि निबंधकारों ने भी इसी का आश्रय लिया है । वास्तव में क्रान्तद्रष्टा ऋषियों की मौलिक भाषा सूझबूझ भविष्य पुराण में मिलती है । वैदिक सामग्रियों में सरलतम भाषा में सम्यक विश्लेषण भविष्य पुराण का वर्ण विषय है। आदि को लेकर अन्त तक एकरूपता बनाये रखने का सफल प्रयत्न किया है। 



भविष्यमहापुराण का नाम भारतीय साहित्य - विशेषकर पुराणों अत्यंत प्रसिद्ध है और अनेक कारणों से लोकप्रिय है । इतिहास के जिज्ञासुओं के लिए ऐतिहासिक दृष्टिकोण के लिए तो यह बहुत आवश्यक ग्रंथ है । इसलिए अनेक लोगों ने उर्दू , अंग्रेजी , अरबी फारसी में आदि भाषाओं में लिखे इतिहासों के साथ इसकी तुलना की है । पार्जीटर स्मिथ ने और पंडित भगवददत्त ने बड़ी छानबीन के बाद भविष्य पुराण को ही इतिहास के लिए सर्वाधिक प्राचीन आधार माना है । भविष्यमहापुराण को देखकर एक स्वाभाविक उत्कण्ठा होती है कि आख़िर यह विचित्र रचना है जो प्राचीन काल में लिखी गई और भविष्य की बातों को संजोये हुए हैं। पुराणमाख्वयानम् के द्वारा तो प्राचीन आख्यानो को ही पुराण की संज्ञा दी गई । चूंकि सभी भारतीय आदर्शवादी दृष्टिकोण रखते हैं, इसलिए भविष्य की ओर अधिक दृष्टि लगाए रहते हैं । अपने भविष्य को जानने और दूसरे के भविष्य की इच्छा प्रबलवती होती है। 




पुराणों में अनेकधा व्युत्पत्ति सर्वत्र मिलती है , इसलिए यहां पृथक व्याख्या देने की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है। ऐतरेयब्राह्राणोपक्रम में सायणाचार्य ने अपने भाष्य में लिखा कि वेद के अंतर्गत देवासुर संग्राम युद्ध इत्यादि का वर्णन इतिहास कहलाता है और आगे यह असत् था, अन्यथा कुछ नहीं इत्यादि जगत की प्रारंभिक अवस्था लेकर सृष्टि की प्रक्रिया का वर्णन पुराण कहलाता है । बृहदारण्यकभाष्य में शंकराचार्य का स्पष्ट मत है कि उर्वशी पुरूरवा आदि संवाद स्वरूप ब्राह्मणभाग को इतिहास कहते हैं और पहले असत् इत्यादि सृष्टि प्रकरण और ऐतिहासिक कथाएं इतिहास है। 


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