Bhavishya Mahapurana: भविष्यमहापुराण में सतयुग के राजाओं का वर्णन भाग १




नारायण नरोत्तम नर और देवी सरस्वती को ( प्रारंभ) में नमस्कार करके तब जय महाभारत पुराणादि का वर्णन करना चाहिए । 


शौनक -ने कहा विचरण ! भविष्य महाकल्प के ब्रह्मा का आयु सम्बन्धी उतरार्द्ध काल कहा जाता है , उषा काल एवं अटठाईशवे सतयुग में जिसमें पहले वर्ष के तीसरे दिन वैवस्वत नामक मनु उत्पन्न होते हैं , कौन कौन राजा हुए हैं और उनके राज्य काल मुझे बताने की कृपा कीजिए


सूत जी बोले - श्वेतवराह नामक कल्प में ब्रह्मा के पहले वर्ष तीसरे दिन सातवें मुहूर्त में वैवस्वत नामक मनु का जन्म हुआ है उन्होंने सरयू नदी के तट पर दिव्य १०० वर्ष तक घोर तप करने के उपरांत नाक से छींकने के द्वारा इक्ष्वाकु नामक पुत्र उत्पन्न किया था ब्रह्मा के वरदान से उन्हें एक दिव्य तेजोमय (यान ) सवारी भी प्राप्त हुआ था भगवान विष्णु को राज्य निवेदन करके नारायण की पूजा ध्यान में अपने जीवन का समय व्यतीत करते हुए उन्होंने छत्तीस सहस्त्र वर्ष तक राज्य भार संभाला था। पश्चात उनसे विकुक्षि नामक पुत्र उत्पन्न हुआ ,जिनका राज्य काल उनमें सौ वर्ष न्यून था । राज्यभार उनमें अपने पिता से सौ वर्ष कम था । उनके ककुत्स्थ नामक पुत्र हुआ ऐसा कहा गया है । 


उसने भी उनसे सौ वर्ष कम समय तक राज्य किया । पश्चात उसके अंस नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । उसके भी अपने पिता से सौ वर्ष कम राज्य काल के उपरांत पृथु नामक राजा उत्पन्न हुआ । इस प्रकार पृथु के विष्वगश्व ,विष्वगश्व के राजा आर्द्र ,आर्द्र के भद्राश्व के युवनाश्व के श्रवस्थ नामक पुत्र हुआ , जो इस भरत-भूमि में सत्य का प्रथमपाद चरण , बताया गया है । इन सभी राजाओं का राज्य काल उतरोतर सौ सौ वर्ष से  कम है तथा सूर्य उदय होने वाले प्रदेश से लेकर अस्त होने प्रदेश से लेकर उनके अस्त होने वाले प्रदेश तक के मध्यवर्ती इस भूमि का मंडल का उपभोग इन राजाओं ने अत्यंत निपुणता के साथ किया था श्रवस्थ के वृहदश्व उनके कुवलयाश्व और कुवलयाश्व को पुत्र दृढाश्व हुआ । इनका भी राज्य काल उतरोतर सहस्त्र वर्ष कम बताया गया है ।



 पुनः उनके निकुभ्क निंकुभ के संकटाश्व के प्रसेनजित के रवणाश्व रवणाश्व के मंधाता नामक पुत्र हुआ। इन लोगों का राज्य काल उतरोतर सहस्त्र वर्ष कम बताया गया है । मांधाता के पुरूकुत्स तथा उनके त्रिशाद्श्व पुत्र हुए । मांधाता के पुरूकुत्स तथा उनके त्रिशाद्श्व नामक पुत्र हुए । इनका भी राज्य काल सौ वर्ष उतरोतर न्यून बताया गया है । इनके रथ में तीस घोड़े जोते जाते थे इसलिए इनका त्रिशद्श्व नामकरण हुआ था । इनका अनारण्य नामक पुत्र हुआ , जिसने सत्ययुग के द्वितीय चरण में अट्ठाइस सहस्त्र वर्ष समय तक वसुंधरा का उपभोक्ता किया था। उनके पृषदश्व नामक पुत्र हुआ , जिसने छः सहस्त्र वर्ष राज्य करने के उपरांत पितरलोक की प्राप्ति की थी । विष्णु भक्त के कुल हर्यश्व , हर्यश्व वसुमान और वसुमान के त्रिधन्वा नामक पुत्र की उत्पत्ति बताई गई । इन सभी राजाओं का राज्य काल उतरोतर सहस्त्र वर्ष कम बताया गया है । इस प्रकार भारत के इस अवान्तर प्रदेश में सत्ययुग दूसरा चरण समाप्त हुआ ,ऐसा कहा गया है । १४-१२। राजा त्रिधन्वा के त्रपारण्य नामक पुत्र हुआ जिसने उनसे सहस्त्र वर्ष कम समय तक राज्य करके स्वर्गलोक की प्राप्ति की ।


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