Bhavishya Mahapurana: भविष्यमहापुराण में सतयुग के राजाओं का वर्णन भाग २

नारायण नरोत्तम नर और देवी सरस्वती को ( प्रारंभ) में नमस्कार करके तब जय महाभारत पुराणादि का वर्णन करना चाहिए । 

राजा त्रिधन्वा के त्रपारण्य नामक पुत्र हुआ जिसने उनसे सहस्त्र वर्ष कम समय तक राज्य करके स्वर्गलोक की प्राप्ति की । पुनः उनके त्रपारण्य के त्रिशंकु उत्पन्न हुए, जिसने सहस्त्र वर्ष तक राज्य किया । पश्चात त्रिशंकु के हरिश्चंद्र नामक पुत्र हुआ ,जो 
विश्वामित्र को अपना सर्वश्वदान दे देने से लक्ष्मीहीन दरिद्र हो गया था । उनका रोहित नामक पुत्र हुआ , जिसने तीस सहस्त्र वर्ष तक राज्य किया । रोहित से हारीत चंचभूप , चंचभूप के विजय, विजय के रूरुक,रूरुक के सागर पुत्र हुए, वाहुसेन तक राजाओं वैष्णव होना बताया गया है । इन राजाओं ने अपने पिता के समयकाल को उपभोग किया है। वैवस्वत मनु आदि राजाओं के समय का समय मान विस्तृत मणियों तथा सुवर्ण से समृद्धि , अधिक अन्न की उपज और दूध की नदियां सी बहती थी ।

 मुने! इस प्रकार से भूमण्डल में पूर्णरुप से विद्यमान था । २२-२८ ।सतयुग के तीसरे मध्यकाल में सगर नामक पुत्र उत्पन्न हुए था । वे परम शिवभक्त एवं सदाचारपराण थे । उनके साठ सहस्त्र पुत्र उत्पन्न हुए थे ,जिनका राज्य काल मुनियों ने तीस सहस्त्र वर्ष का बताया है । इन पुत्रो के नष्ट हो जाने पर सागर पुत्र असमञ्जस ने उनसे  सौ वर्ष से कम समय तक राज्य किया  था । इस प्रकार असमञ्जस के अंशुमान के दिलीप ,दिलीप के भागीरथ के श्रुतसेन , श्रुतसेन नाभाग और नाभाग के अम्बरीष पुत्र हुए । इन राजाओं ने उतरोतर सौ सो वर्ष कम समय तक राज्य किया था । इनमें श्रुतसेन तक सभी राजा शैव शिव के उपासक और राजा नाभाग विष्णु उपासक बताये जाते हैं । इस प्रकार भारत भूमि में सत्ययुग तीसरे चरण का समाप्त होना कहा गया । २९ -३५ ।


सतयुग के चौथे चरण में भारत की कर्म-क्षेत्र भूमि में राजा अम्बरीष का अट्टारह सहस्त्र वर्ष तक राज्य भार निभाना बहुत सुखदायक बताया जाता है। राजा अम्बरीष के सिन्धुद्वीप नामक पुत्र हुए , जिन्होंने उनसे उनसे उन्तीस तीस सौ वर्ष कम राज्य किया था । सिन्धुद्वीप के अयुताश्वा अयुताश्वा के ऋतुपर्ण , ऋतुपर्ण के सर्वकाम के कल्मषपाद के सौदस की स्त्री मदयन्ती में वशिष्ठ द्वारा राजा अश्मक तथा इनके हरिवर्मा नामक पुत्र हुए । इन लोगों का भी अपने उतरोतर क्रमशः राज्य काल सौ सौ वर्ष कम बताया गया है । इनके क्रमबद्ध राजा सुदास तक , जो गणना में सात राजा होते हैं, विष्णु के उपासक कहे गये है ।सुदास के पुत्र अश्मक ने अपने गुरु वशिष्ठ द्वारा प्राप्त शाप के कारण अपना राज्य उन्हें अर्पित कर दिया था । राजा अश्मक शिव गोकर्ण नामक लिंग के परम भक्त थे । अतः उन्हें महान शैव होना कहा गया है । उनके पुत्र हरिवर्मा भी वैश्यों की भांति अत्यंत साधु सेवी थे । उन्नीस सहस्त्र सात सौ वर्ष तक राज्य निभाने के उपरांत दशरथ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । इस राजा ने अपने पिता के समान काल तक राज्यभार वाहन किया है। पश्चात दिल्लीवय नामक पुत्र हुआ और उनके राजा विश्वासाह हुए यद्यपि इस राजा ने सहस्त्र वर्ष तक राज्य उपभोग किया, किन्तु अपनी मुर्खता एवं उदण्डता के कारण कभी यज्ञ अनुष्ठान नहीं कर सका । इस घोर अधर्म के कारण सौ वर्ष जल वृष्टि नहीं हुई , जिसके परिणामस्वरूप समस्त राज्य का नाश हो गया । ३६-४६ ।

 पश्चात रानी के अनुनय विनय करने पर वशिष्ठ जी ने यज्ञ द्वारा खट्रांग नामक पुत्र हुआ उत्पन्न किया खट्रांग अस्त्र धारण करके इंद्र की सहायता से तीस सहस्त्र वर्ष तक राज्य का उपभोग किया तदपरूपंत देवताओं द्वारा वरदान प्राप्त का मुक्ति प्राप्त की। खट्रांग के दीर्घबाहु नामक पुत्र हुए , जिन्होंने ने बीस सहस्त्र वर्ष तक राज्य किया है । दीर्घबाहु के सुदर्शन नामक पुत्र हुए जो देवी के परम उपासक थे ‌ । हरिवर्मा, दशरथ दिलीप नामक ये तीनों बालशाली राजा परम विख्यात वैष्णव हो चुकें हैं। राजा खट्रांग और दीर्घबाहु भी विष्णु के उपासक थे महाबुद्धिमान राजा सुदर्शन देवी अनुकंपावश काशीराज की कन्या के साथ पाणिग्रहण करके युद्धस्थल में राजाओं पर विजय प्राप्त किया , पश्चात भरतखण्ड का यह समस्त राज्य अपने अधिकार में करके पांच सहस्त्र वर्ष तक इसका उपभोग किया तदपरूपंत भगवती महाकाली ने स्वप्न में उस राजा से कहा वत्स महामते ! तू अपनी धर्मपत्नी एवं वशिष्ठादि महर्षियों के साथ हिमालय पर्वत पर जाकर निवास करो , क्योंकि महावायु के प्रभाव से भरतखण्ड भारतवर्ष का विनाश उपस्थित हैं क्योंकि समुद्रद्वीप और हिमालय के उत्तरीय समुद्र द्वीप , जिसे सगर वंशजों ने खोदकर निरस्त किया था विनष्ट हो चुके हैं । इस प्रकार सभी रूयाति प्राप्त द्वीपों के समूल विलीन होने के उपरांत यह भारतवर्ष भी इस वर्ष दिन इस प्रलय के समुद्री बाढ़ में सभी जीव समेत विलीन हो जाएगा । अतः तुम अपने जीवन की रक्षा करो । भगवती के इस आज्ञा को शिरोधार्य उस राजा ने अपने नृपगण वैश्यों एवं ब्राह्मणो समेत हिमालय में अपना आवासस्थान बनाया । पश्चात पांच पांच वर्ष तक क्रमश वायु की ,तेज और जल द्वारा समस्त पार्थिव तत्व का नाश प्रारंभ हुआ। उसमें समस्त पृथ्वी का शक्कर की भांति कण हो गया जिसमें सभी जीव नष्ट हो गए पुनः पांच वर्ष तक अनवरत पृथ्वी पर जल वृष्टि होती रही ,पश्रात शांत होकर वायु ने सभी जल को सुखा दिया । इस भांति दस वर्ष के अनन्तर यह भारतीय भूमि केवल स्थल की भांति दिखाई देने लगी । ४७-६१। 


      श्रीभविष्यमहापुरण के प्रति सर्ग पर्व के कृतयुग के।                 राजाओं वर्णन नामक पहला अध्याय।१। 

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