हरित क्रांति कोई क्रांति नहीं बल्कि एक भ्रांति है।


 आजादी के समय 50 करोड़ बैल थे जिनको हम घी तक पिलाते थे। हर बैल को चना, ग्वार, मेथी बाजरा आदि खिलाया जाता था। उन पचास करोड़ बैलों की डाईट आज के 140 करोड़ लोगों से अधिक थी। यही डाइट भैंस गाय आदि को भी दी जाती थी। आजकल की तरह कार नहीं थी पर तांगे अवश्य थे। घोड़े चणे खाते व दौड़ लगाते थे। हरित भ्रांति आने से पहले सुबह उठते ही छत पर दाना डाला जाता था। भिखारी मंगते दिनभर गाँव में आते रहते थे। उन्हें भी अपने हाथ से पीसा आटा अवश्य दिया जाता था। मंदिरों के भंडारों में कितना दिया जाता था। शाम को चीटियों व मकोड़ों का भी कीड़नाल सींचा जाता था। भूखा कौन सोता था पता नहीं, यह तो पढेलिखे भ्रमित लोग ही बता सकते हैं🙂

युद्ध के समय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने यो उपवास के लिए बोला था उसका मतलब भी यह नहीं था कि देश भूखा मर रहा था। उसका आशय प्रार्थना उपासना से था, उनकी कि विजय के लिए कामना करना था। हमारे एक समय या एक दिन भोजन ना करने से ऐसा तो कोई तंत्र आज भी विकसित नहीं है कि वह भोजन तुरन्त युद्ध लड़ती सेना के पास पहुंच जाये।

आज हरित भ्रांति के दुष्प्रभाव हमारे सामने हैं। अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमें हमारे मूल अन्न की तरफ लौटना पड़ रहा है। हरित भ्रांति के जहर से केवल मानव ही नहीं हर जीव जंतु, पेड़ पौधे तक संकट में हैं। हमारे देश की अनेक दिव्य औषधिय पौधे व जड़ीबूटी लुप्तप्राय हो चुकी हैं। बैल, ऊँट, गधे, घोड़े सब गायब हो चुके हैं। पटबिजणे, तितली, मधुमक्खी, चिड़िया, बाज, गिद्ध आदि गायब हो चुके हैं। बचे खुचे ये जीव ड्रोनों की भेंट चढ़ने वाले हैं।



टिप्पणियाँ