लोना चमाईन


नागमति विरह वर्णन में जब चेतन राघव दूज के चंद्रमा को आकाश में प्रथमा के दिन उदय करने की बात करता है तो वहां उपस्थित पंडितों का समूह इस बात का विरोध करता है कि प्रथमा तिथि को दूज का चंद्रमा कैसे दिख सकता है पर वे जानते हैं कि राघव जिसका शिष्य है उस गुरु का नाम लोना चमाईन है। लोना को कामख्या की सिद्धि है जिसके बल पर वह कोई भी कार्य कर सकती है। बात यह नही कि दूज का चंद्रमा प्रथमा को निकला या राघव चेतन और बाकी की ऐतिहासिकता क्या, बात यह है कि लोक में एक चमाईन किस तरह देवी के रूप में स्थापित है जिसके आशीर्वाद से पांडित्यकर्म वाले भी अपने को भागमाना समझते हैं। यह तथ्य जाने कितने फर्जी नरेटिव को ध्वस्त करता है जिसके माध्यम से शोषण और वंचना की कहानियां हमें पढ़ने को मिलीं।

लोना की दुहाई महादेव, पार्वती के साथ दी जाती है। लोना के नाम पर साबर मंत्रो का निर्माण किया गया और उनकी सिद्धि के माध्यम से रोग, दोख, टोना दूर  किए जाते रहे हैं। शायद ही कोई वर्ग हो जिसे लोना का मांगल्य ना मिला हो। 

लोना का कोई लिखिए इतिहास तो नही है पर वह लोक कंठ में  उसी तरह बसी है जैसे जनश्रुति परंपराएं। मेरे ख्याल से वह इतनी लावण्यवान होंगी कि लावण्या को लोकभाषा में लोना कहा जाने लगा होगा। जनश्रुति  के अनुसार जब धनवंतरि ने इस दुनिया से प्रयाण किया तो उन्होंने अपने शरीर को अपने पुत्रों को खाने का आदेश दिया। कथा लंबी है पर उनके मांस का एक हिस्सा लोना चमाईन ने भी खाया और वह  आयुर्वेद की ज्ञाता हो गई। कथाएं प्रतिकों में कही सुनी जाती है, उनके डिकोड के अपने तरीके हैं पर मूल बात यह है कि ज्ञान का वाहक कौन है, पात्र कौन है। निश्चित रूप से लोना इस योग्य रही होगी कि धनवंतरि ने उन्हें अपना ज्ञान दिया होगा। कालांतर में मध्यकाल आते आते लोना के गुरु के रूप में इसमाइल जोगी का नाम लिया जाने लगा तहजीब वाला मसला हो सकता है। 

सुल्तानपुर में मरी देवी का मंदिर है। यह मरी देवी लोना चमाईन स्वयं है या उनकी पुत्री हैं। लोना को संजीवनी विद्या आती थी और उसी के चलते उन्होंने लगभग मृत हो चुकी कन्या को जीवन दिया था।उस मंदिर में पुजारिन होती हैं। जैसे इसमाइल जोगी वाला विषय था वैसे ही मरियम के नाम पर भी मरी देवी की कथाएं बनाई हैं, वजह जग जाहिर है।

यह सब  लिखने की वजह क्या है! वजह यह है कि जिन बातों को आधार बनाकर यह कहा जाता है कि समाज का नेतृत्व एक ही वर्ग के पास है उस फाल्स स्टेटमेंट को तोड़ना है। हर तबके से भगत, पुजारी, पुजारिन, पंडित हुए हैं, सबकी भागीदारी से हिंदू समाज हजारों सालों से सजीव बना हुआ है।मरी देवी मंदिर में पुजारिन को पंडिताइन कहा जाता है जबकि वह यादव हैं। 

लोक की जगह लोक है, शास्त्र की जगह शास्त्र है। दिक्कत तब होती है जब दोनो को सुविधानुसार एक दूसरे के सामने शत्रु बनाकर खड़ा कर दिया जाता है।

हिंदू जाति को लगी नजर को लोना माई उतारें कामना है।

दोहाई महादेव, दोहाई गौरा पारवती, दोहाई लोना चमाईन

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