फाइनेंस कंपनीयां बिना सिक्यूरिटी के फाइनेंस क्यूँ कर देती हैं ?


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2015 में एक बडी फाइनेंस कम्पनी ने बैंकों से 18000 करोड़ रूपए कर्ज़ लिया था । इस फाइनेंस कम्पनी में प्रमोटर्स का अपना पैसा केवल 50 करोड़ लगा हुआ था । 2019 में बैंकों से इस फाइनेंस कम्पनी ने 86000 करोड़ रूपए लोन लिया था और प्रमोटर्स का अपना पैसा लगा हुआ था केवल 115 करोड़ रुपये | यानि कि आप बैंकों की मदद से 115 करोड़ खर्च कर 86000 करोड़ के मालिक बन बैठे । अब हर गली नुक्कड़ और ऑनलाइन पोर्टल्स पर जो इलेक्ट्रॉनिक गुड्स का फाइनेंस यह कम्पनी कर रही है ,वह पैसा क्या प्रमोटर्स के घर से आ रहा है। तो उसका उत्तर है नहीं,यह तो आपका ही पैसा है ,जो बैंकों में सेविंग एफडी आदि में आम आदमी ने निवेश किया हुआ है । यह लोन बैंक फाइनेंस कंपनी को शेयर गिरवीं रख कर दे देतें हैं ।जिससे बड़ी-बड़ी कंपनियों की सेल को बढ़ावा दिया जा रहा है । अगर blue star कोई कूलर बनाती है तो उसको यह कंपनी फाइनेंस कर देगी । अगर कोई छोटी फैक्ट्री cooler बनाती है तो यह फाइनेंस कंपनी कोई फाइनेंस नही करेगी । अगर कल को पैसे मरते हैं तो आपके मरेंगे ।अब सवाल यह उठता है कि फाइनेंस कंपनी को क्या पड़ी है ,कि वह बिना सिक्योरिटी के कंप्यूटर ,mobile आदि consumer goods इतनी आसानी से फाइनेंस कर देती है। तो इसका उत्तर यह है कि बड़ी-बड़ी पूंजीपति कंपनियां इन फाइनेंस कंपनियों के मालिकों को मोटी रकम देती हैं ,बदले में यह फाइनेंस कंपनियां इन बड़ी पूंजीवादी कंपनियों की बिक्री को बढ़ाती हैं । अब अगर कल को यह फाइनेंस कंपनी बैंक का लोन चुकाने में असमर्थ होती है ।तो इन फाइनेंस कम्पनी के मालिक को कुछ भी नही होगा।क्योंकि इन कंपनियों के पीछे लिमिटेड लिखा होता है ,जिसका अर्थ यह है कि, अगर कल को कंपनी दिवालिया घोषित होती है, तो इन कंपनियों के मालिकों की निजी ज़ायदाद को सरकार या अदालत स्पर्श भी नहीं कर सकती। इसको कंपनी कानून की भाषा में limited liabilty concept कहा जाता है। तभी बड़ी बड़ी कंपनियों के पीछे limited या private limited लिखा होता है। इस तरह बाकायदा कानून बनाकर आपके पैसे की लूट करने के लिए ही इस पूंजीवादी व्यवस्था को डिज़ाइन किया गया है ।
 अंत में हम चर्चा करेंगे कि सरकार की क्या मजबूरी है कि वह इन पूंजीपति कंपनियों और बैंको पर लगाम नहीं लगा सकती ।तो इसका उत्तर है कि अगर सरकार consumer फाइनेंस पर रोक लगाती है। तो जीडीपी के आंकड़े गिर जाते हैं ।शेयर मार्केट क्रैश हो जाती है। और यह बड़े बड़े पूंजीपति लोग जीडीपी का हो हल्ला मचा कर सरकार को मजबूर कर देते हैं। कि सरकार इनको राहत पैकेज दे ।इन राहत पैकेज में ऋण माफी ,टैक्स दरों में छूट देना शामिल है । यह हो हल्ला पूंजीवादी मीडिया जैसे कि समाचार पत्र, न्यूज़ चैनल द्वारा मचाया जाता है। जिससे आम लोग प्रभावित हो जाते हैं। जबकि जीडीपी का आम लोगों से कुछ लेना-देना नहीं है। यह पूंजीवादी बैंकिंग सिस्टम औऱ कम्पनी law अंग्रेजो की देन हैं,जिनके हम मानसिक रूप से गुलाम हैं । 

सुझाव
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1. limited liablity concept को समाप्त किया जाए ।
2. बैंको से एक सीमा से अधिक जो भी लोन मिले । वह पूर्णतयः किसी अचल संपत्ति से secure हो । शेयर आदि गिरवीं रख कर बैंकों से कोई भी लोन ना मिले ,क्योकि शेयरों की कीमत आर्टिफिशली बढ़ाई जा सकती है।

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