Raghuvansham part 2 : दिलीप एवं नन्दिनी के संवाद का वर्णन कीजिए।

गुरू वशिष्ठ की गाय नन्दिनी की सेवा राजा दिलीप ने पत्नी सहित बड़े ही निष्ठा निर्भीकतापूर्वक रक्षा करते हुए । वन की गुफा में प्रवेश हुई नन्दिनी को जब मायावी सिंह दबा दिया था और नन्दिनी गाय नकली ने आर्त्तनाद किया तब राजा दिलीप किकर्त्तव्य विमूढ़ हुए तरकस से बाण निकालकर मायावी सिंह को मारने को उद्यत हो गए परन्तु वैसा न कर जाने की स्थिति से बड़े दुखी व क्षुब्ध थे राजा ने सिंह से नन्दिनी को मुक्त कर उसका राजा भक्षण कर क्षुधा शान्त करने का निवेदन किया और शरीर सिंह के सामने पेश कर दिया राजा की सेवा से प्रसन्न होकर नन्दिनी ने अपने सम्मुख प्राणोत्सर्ग करने के लिए झुके हुए दिलीप को कहा है पुत्र उठो ऐसे नन्दिनी के मुंह से निकले हुए अमृतमय वचन को सुनकर उठते ने सामने टपकते हुए दूध वाली नन्दिनी गौ को अपनी माता के समान देखा। नन्दिनी ने राजा से कहा मैंने माया की रचना कर तेरी परीक्षा ली है । वशिष्ठ के प्रभाव से यमराज भी मुझ पर प्रसन्न हूं। पुत्र ! वर मांगो ‌। मुझे निरी दूध देने वाली गाय समझो । मुझे सभी प्रकार के मनोरथ पूर्ण करने वाली जानो ‌ । तब अतिथियों को सम्मान करने वाले , अपने बाहुबल से वीर शब्द वाले राजा दिलीप ने सुदक्षिणा के गर्भ में वंश का चलाने वाले , यशस्वी पुत्र होने की याचना की । उस नन्दिनी गौ ने पुत्र चाहने वाले दिलीप से वैसा ही होगा इस वरदान की प्रतिज्ञा करके कहा हे माता ! मेरे दूध को पत्ते के दोने में दुहकर पी जाओ ऐसा आज्ञा दी । इस पर राजा ने कहा हे माता बछड़े वत्स के पीने से और गुरु वशिष्ठ के होमादि करने के पश्चात बचे हुए तुम्हारे दूध को गुरु वशिष्ठ की आज्ञा पाकर ही पृथ्वी के छठे के समान पीना चाहता हूं । इस प्रकार नन्दिनी राजा पर अधिक प्रसन्न हुई। 

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