पूंजीवाद ना केवल जैव विवधता बल्कि दैव विवधता को कैसे समाप्त कर रहा है


पूंजीवाद ना केवल जैव विवधता बल्कि दैव विवधता को समाप्त कर रहा है पहले हर एक ग्राम के ग्राम देवता ,स्थान देवता होते थे लेकिन पूंजीवाद के चलते urbanization होने लगा जिससे गांव के देवता अकेले रह गए उनकी सुध लेने वाले अब दिल्ली के पिंजरों को विकास समझ कर रहने लगे । ग्राम देवता, स्थान देवता ,कुल देवता अब अनाथ हो गए हैं । कंतारा फिल्म में ग्राम देवता कैसे पूरे गांव की रक्षा करते हैं इसको दिखाया गया है । वनवासी क्षेत्रों के देवताओं को ईसाई मशीनरी निगल गए और गांव के देवता को पूंजीवादी विकास

अगर पूंजीवाद यूंही चलता रहा तो भाषा की विविधता भी समाप्त ही समझो । पिछले एक दशक में सैकड़ों बोलियां लुप्त हो गई क्योंकि पूंजीवादी दैत्यों के लाभ के लिए विवधता खतरनाक है इसलिए जो भाषा , पर्व,संस्कार ,विद्या इनको suit नहीं करती वह कुछ ही समय में काल कलवित हो जाती है । 

Diversity, culture , ग्राम देवता , स्थान देवता , बोलियों को बचना है तो localization पर जोर देना होगा । South के कई प्रदेश हिंदी को अपनी भाषा के लिए दुश्मन मानते हैं जबकि पूंजीवाद ही उनका असली दुश्मन है । पूंजीवादी ने south की मार्केट के लिए अंग्रेजी को पिच पर उतार दिया है और किसी को पता ही नहीं चला ।

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