Dharmayoddha movie : पद्मावती के आगे की कहानी है धर्म योद्धा पतित कार्य करने वाले पूजनीय मेहतरो की कहानी है धर्म योद्धा


धर्म योद्धा फिल्म का टीजर देखकर सहज अनुमान लगाया जा सकता है की बहुत छोटी जगह से बहुत बड़े सब्जेक्ट पर फिल्म बनाने का दुस्साहस किया गया है जिस तरह से फिल्म उद्योग में हजार करोड़ की फिल्में बनने लगी है ऐसे में छोटे बजट में केवल परिवार छात्र गरीबी आदि जैसे सीमित विषयों पर ही फिल्में बनाई जा सकती है मगर धर्म योद्दा के टीजेर में स्पष्ट हो रहा है कि यह फिल्म पद्मावती का भाग दो है क्योंकि पद्मावती में अलाउद्दीन के अत्याचार और रानी के जौहर की कहानी है मगर जिन महापुरुषों ने उसे अत्याचारी से बदला लिया और हिंदुओं का राज्य धर्म आदि वापस किया उसे किसी भी चित्रण में स्थान नहीं मिल पाया जबकि तत्कालीन इतिहास के दस्तावेज इस महत्वपूर्ण घटनाक्रम पर प्रचुर सूचनाओं उपलब्ध कराते हैं अगर हम इतिहास में 1312 से 1320 के बीच में देखें तो उसे समय दिल्ली राज्य के महत्वपूर्ण घटनाक्रम में देवल देवी खुसरो शाह के पराक्रम को देखा जा सकता है इनके द्वारा किए गए सारे अभियान में एक रोमांचक कथा के सारे तत्व मौजूद है फिर भी इस पर कभी भी कोई काम नहीं हुआ
फिल्म धर्मयोद्धा मध्यकालीन इतिहास के शोध पर आधारित है। भारतीय जीवन पद्धति में कहीं पर भी घर के अंदर पाख़ाना जाने की व्यवस्था नहीं थी, तो पाख़ाना साफ़ करने वाली जाति कहाँ से पैदा हो गई ? कौन हैं ये लोग जो आज तक इस दर्द को झेल रहे हैं। अलाउद्दीन खिलजी ने अपने अत्याचार प्रशासनिक कौशल युद्ध अभियानों से संपूर्ण भारत को कँपा दिया और 10 वर्ष के अंदर उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक सभी राजाओं को नेस्तनाबूद कर दिया, लेकिन खिलजी के संपूर्ण राज्य को समाप्त कर और केवल 5 वर्षों के अंदर हिंदुओं ने अपना गौरव वापस पा लिया और तुगलक सत्ता केवल दिल्ली में 2 किलोमीटर के दायरे में सिमट गई। हिंदू राज्य को वापस दिलाने में जिन महानायकों ने काम किया, उसमें प्रमुख बघेल राजकुमारी देवल देवी और हिंदू से मुसलमान बने खुसरो शाह थे, जो 6 माह तक दिल्ली के सुलतान रहे और भारतीय मुस्लिम कैसे होने चाहिए, ये आदर्श प्रस्तुत किया। भ्रष्ट किए गए हिंदुओं को शुद्धि का अवसर दिया, जिसमे देवल स्मृति के श्लोक आते हैं हिन्दुओं के राज्य वापस किए, कई मामलों में देवल देवी का त्याग कूटनीति बलिदान पद्मावती से बड़कर है जहां उद्देश्य के लिए जीना उद्देश्य के लिए मरने से ज्यादा बड़ा सिद्ध होता है लेकिन यह सफल गौरव गाथा का वर्तमान इतिहास में ज़िक्र नहीं है, क्योंकि इस कथा के प्रकाश में आते ही हिंदुओं में अपनी हारी लड़ाई जीतने के अनेक सूत्र हाथ में आते हैं जबकि अलाउद्दीन के तत्कालीन इतिहासकार इब्नबतूता एवम बरनी ने इस सफल विद्रोह का विस्तृत वर्णन किया है। भंगियों की दशा पर "पतित प्रभाकर", " मैं नाचूँ बहुत गोपाल" जैसी रचनाओं से संदर्भ लिए गए हैं। भारत भूमि पर हिंदू ध्वज के लिए बलिदान करने वाले भंगी खटीक जैसी वीर जातियों ने सूअर पालकर समाज को बचाया इन महानायकों को यह रचना एक आदरांजलि है। फिल्म 

उद्योग पूरी तरह से राष्ट्रवादी और वामपंथी घड़े में विभक्त हो चुका है राष्ट्रवादी विचार इतना सशक्त हो चुका है कि उत्तर भारत के बड़े स्टार्स को भी अब दक्षिण भारत के निर्देशक और अभिनेत्री के सहारे अपना वजूद बचाना है जवान एनिमल उसके उदाहरण है एनिमल के द्वारा संदीप रेड्डी ने जिहादी धड़े को सीधी चुनौती दिया है राष्ट्रवादी तत्वों ने ग़दर 2 को व्यापक सफलता दिलाई है ऐसे में धर्म योद्धा का आना एक नए तरह के विमर्श को जन्म देगा
फिल्म का निर्देशन ऋतिक रोशन अभिनीत काबिल के लेखक विजय कुमार मिश्रा ने किया है अभिनय में ज्यादातर कलाकार ड्रामा स्कूल के पूर्व छात्र हैं
टीजर के डिस्क्रिप्शन से कथा के सूत्र का अंदाजा लगाया जा सकता है जो काफ़ी साहसिक है मगर फिल्म निर्माण में कई तत्व महत्वपूर्ण हो जाते हैं इसलिए आशा है यह प्रयास बड़ी ऊंचाइयों को प्राप्त होगा 
टीजर में फिल्म के कथानक के अलावा बैक ग्राउंड म्यूजिक सिनेमेटोग्राफी डायलॉग लोकेशन अच्छे दिख रहे हैं अगर राष्ट्रवादी फिल्म कारो का यह प्रोजेक्ट सफल हुआ तो वामपंथियों के नरेटिव के आखिरी किले को ढहना तय हो जायेगा

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