sanaatan dharm : राजनैतिक चेतना के बिना धार्मिक सांस्कृतिक चेतना मृतप्राय क्यों होती जानने के लिए पढ़ें पूरा आलेख

राजनैतिक चेतना के बिना धार्मिक सांस्कृतिक चेतना मृतप्राय होती है क्योंकि बिना शासनतंत्र के सहयोग के धार्मिक-सांस्कृतिक चेतना का लागू होना (enforcement) सम्भव ही नहीं है। 

शासनतंत्र के अभाव में धार्मिक चेतना केवल व्यक्तिगत आत्मिक विकास तक ही सीमित रह जाती है।
इतिहास साक्षी है कि शासनतंत्र के अभाव और दुर्बलता के कारण पूर्व से पश्चिम तक तथा उत्तर से दक्षिण तक के लाखों मंदिर-मठ रूपी धार्मिक-सांस्कृतिक केंद्र ध्वस्त हो गये और करोड़ों धर्मावलंबियों का न केवल वध हुआ बल्कि उनकी स्त्रियों के साथ बलात्कार हुआ, धर्मांतरण हुआ और उनकी आने वाली संततियों को सैकड़ों वर्षों तक गुलामी का जीवन जीना पड़ा। 
शासनतंत्र अपना न होने पर धर्म की स्थापना के लिए धार्मिक चेतना को सैकड़ों वर्षों तक ही नहीं बल्कि युगों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है, ऐसा मैं नहीं कह रहा ऐसा हमारे धर्मशास्त्रों में ईश्वर के अवतारों की कथाओं में ही वर्णित है। 
त्रेता में रावण के नेतृत्व में राक्षसों के आतंक से पूरा विश्व पीड़ित था। वशिष्ठ, अगत्स्य और विश्वामित्र जैसे ब्रह्मतेजस्वी, शस्त्रों के प्रणेता और ज्ञाता को भी भगवान श्री राम के आगमन की प्रतीक्षा करनी पड़ी और उनके आगमन के बाद ही धर्म की स्थापना हो पाई। 
द्वापरयुग में तो धर्मपीठ ( द्रोणाचार्य और कृपाचार्य) भी अधर्म के साथ खड़ी थी। धर्म स्थापना के लिए भगवान श्री कृष्ण ने इस तथाकथित धर्मपीठ को भी नष्ट करवा दिया। जब द्वापर युग में धर्मपीठ अधर्मी हो गई तो कलयुग में कोई पीठ या उसका पीठासीन अधिकारी दूषित या भ्रष्ट नहीं होगा इसकी क्या गारंटी है? केवल धर्मपीठ है इसलिए आंख-कान मूद के लोग आपका अंधानुकरण करने लगें? 
आप भूल गये कि सनातन विरोधी शासनतंत्र ने सन 2004 में श्रृंगेरी पीठ के निर्दोष शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती जी और 2015 में यूपी की अखिलेश यादव की सरकार ने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी और उनके निर्दोष बटुक शिष्यों का क्या हाल किया था? 
1000 वर्ष के बाद भारत और हिंदुओं के सौभाग्य से आज शासन तंत्र सनातनी है, धर्म का पक्षधर है। ऐसे शासनतंत्र का सहयोग और मार्गदर्शन करने के स्थान पर उसे उखाड़ फेंकने और विप्लव कराने की धमकी दे रहे हैं आप? यदि यही 2014 के पहले वाली सनातन विरोधी सरकार होती तो ऐसी धमकी देने पर आपका क्या हश्र करती ?देवराज इंद्र की धौंस तो बहुत दूर की बात है, रासुका हटवाने में ही नाकों चने चबाने पड़ते। इसलिए रामकाज में अपने दम्भ और अहंकार से विघ्न उत्पन्न मत करिए।

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