कभी एक मित्र का कमेंट था कि ज्योतिष की किताबों में फैक्चुअल errors है।


मैं उनकी बात से अंशत: सहमत हूं और इसकी वजहें भी है। जैसे ज्योतिष के आर्ष ग्रंथों का संरक्षण नहीं हुआ, हुआ भी तो कई बार उसकी भाषाई क्लिष्टता ने उसके सही अर्थ पकड़ने नहीं दिए (इसके उदाहरण बाद में दूंगा) कई बार जैमिनी, पराशर या दूसरी पद्धतियों के आपस में गड्ढ-मड्ड हो जाने ने भ्रम स्थापित किया तो कई बार योगों के संदर्भ में अपवादों के सूत्र की अनदेखी के चलते ऐसा हुआ। ज्योतिष सूत्रों की काल सापेक्ष व्याख्या न होना भी इसकी वजहें हैं।

पर मूल प्रश्न तब भी यथावत है कि नौ ग्रह, बारह राशि और 27 नक्षत्र के कॉम्बिनेशन से अगर कुछ कुंडलियों में सौ फीसद सत्यता सटीकता से बैठती है तो क्यों बैठती है?

मैं इस विधा में अभ्यासक छात्र मात्र हूं और ये आत्म प्रशंसा की पोस्ट भी नहीं है पर इस बात का मुझे और जो मुझसे संपर्कित रहे उन्हें इसका प्रत्यक्ष अनुभव है कि कुंडली में एक नहीं ऐसे हज़ारों योग हैं जो शत प्रतिशत सत्य घटित होता है। 

एक लड़के की कुंडली में समलैंगिक होने का योग था, उसकी कुंडली में दिखी (तब मैं विद्यार्थी जीवन में था) तो उत्साहवश पूछ बैठा क्योंकि तब मुझमें ये बोध विकसित नहीं हुआ था कि कुंडली में दिख रहे कुछ योगों को पूछना वर्जित होता है)। हालांकि उसने योग के सत्यता की पुष्टि की।

एक व्यक्ति की कुंडली में एक योग था कि उसे बिस्तर पर चढ़ कर सांप काटेगा। उनसे पूछा तो हैरत से उनका मुंह खुला रह गया क्योंकि उनको एक बार बिस्तर पर चढ़कर सांप काटा था। 

एक प्रोफेसर साहब (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े) की कुंडली में ससुराल और घर से लड़कर प्रेम विवाह का योग था। वरिष्ठ प्रोफेसर थे तो ये योग देखकर डरते हुए उनसे इसके बारे में पूछा तो वो कौतूहल में सोफे से उछल पड़े और जोर से आवाज लगाकर पत्नी को बुलवाया। दोनों ने मेरे बात की तस्दीक की (उनका प्रेम विवाह होना आश्चर्यजनक नहीं था पर बिहार में 70 के दशक में ऐसे विवाह न के बराबर होते थे तो इसे कोई तुक्का लगाकर नहीं कह सकता)

दिल्ली "हिंदू महासभा भवन" में सौभाग्य दीप के कार्यक्रम में सम्मानित किये जाने हेतु आमंत्रित था तो वहां एक लड़की की कुंडली देखी। केवल उसकी पत्रिका देखकर मैंने कहा कि आपकी और आपके माता जी दोनों का प्रेम विवाह हुआ है और आपका वैवाहिक जीवन सुखी नहीं चल रहा है। उसकी माता जी ये विश्लेषण देखकर ज्योतिष शास्त्र की महिमा पूरे हॉल में घूम- घूम कर गाने लगी।

पर क्या ये मेरी कुशलता थी?

बिलकुल नहीं ..... ज्योतिष के ग्रंथों में ऐसे सूत्र हैं जो ऋषियों ने लिख रखे हैं और मुझे या किसी भी ज्योतिष शास्त्र को जानने वाले को केवल उन सूत्रों में से केवल कुछ को कुंडली से तलाशने आता है। ज्योतिष जानने वाले मात्र वैसे ही है जैसे किसी बहुत इंटेलीजेंट पर्सन या उसकी टीम ने माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल डेवलप किया होगा तो जाहिर तौर पर वो उस इंसान से असीमित गुणा बेहतर होगा जो एक्सेल पर काम करना जानता है। 

हम लोग ज्योतिष वाले एक्सेल शीट पर बस काम कर रहे हैं इसलिए ये कोई मिरेकल नहीं है पर जिसने इस शास्त्र में सूत्र रचे वो अवश्य ईश्वरीय रहे होंगे। 

हम लोग ज्योतिष के अतुल ज्योतिष स्वर्ण भंडार से कुछ ग्राम सोना निकाल लेने वाले मजदूर हैं बस। इस स्वर्ण भंडार से सारे स्वर्ण निकाल सकने की हमारी सीमित योग्यता ज्योतिष शास्त्र के सीमित हो जाने का प्रमाण नहीं है।

बेशक उसके कुछ सूत्र डिकोड नहीं होते या किसी कतिपय कारण से कुछ कुंडलियों पर सटीक नहीं बैठते पर ऐसा तो मेडिकल साइंस में भी होता है जब कई सारे पेसेंट्स पर चिकित्सा शास्त्र के सिद्धांत काम नहीं करते पर इससे इस विधा की सार्थकता कम तो नहीं हो जाती बल्कि चिकित्सा जगत इसे अपने लिए एक चुनौती रूप में लेकर आगे अनुसंधानरत हो जाता है, यही ज्योतिष शास्त्र का भी सच है।

✍️ Abhijeet Singh

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