एक समय था जब आग को घर में हमेशा जिंदा रखा जाता था मतलब हर समय घर में आग अंगार के रूप में मौजूद होती थी।

एक समय था जब आग को घर में हमेशा जिंदा रखा जाता था मतलब हर समय घर में आग अंगार के रूप में मौजूद होती थी। 

हर घर में मिट्टी की बनी एक हारी रहती थी जो हारे से थोड़ी छोटी रहती थी। इसका मुख्य काम आग को ही जिंदा रखना होता था। 😇

जब घर में बच्चे का आगमन होता था तब प्रसूतिकक्ष के दरवाजे पर ये हारी रखी जाती थी जिसमें रखी आग से पैर सेंक कर ही कोई जच्चा-बच्चा के पास जाता था। 

हमारे बुजुर्ग कहते थे कि होली से पहले अग्नि माता अपनी ससुराल रहती हैं और होली के दिन मायके आती हैं और जब तक मायके रहती हैं तब तक वो निश्चिंत होकर उन्मुक्त रहती हैं। इसलिए आग के मामले में बहुत सावधानी बरतनी पड़ती थी जरा सी लापरवाही होते ही आग लगने का खतरा हो जाता था। 🙂

हरी में रखी आग को बरकत की निशानी माना जाता था। मेरी नानी कहती थी कि घर में आग हमेशा जिंदा रखना गृहलक्ष्मी की निशानी है। जो स्त्री रोज रोज दूसरों के घर आग मांगने जाती है वो फूहड़ होती है।

हरी में आग को एक उपले (गोसे) के कोने पर रखकर उपले में आग पकड़ा दी जाती थी फिर उसे हरी में रखकर उपर से धान का छिलका यानी भूसी रख दिया जाता था। आग बुझने न पाए इसलिए गर्म राख में नया उपला दबा दिया जाता था।

अब ना आग जलाने के लिए चूल्हे रह गए हैं न ही आग के ये अंगार घर में रखे जाते हैं। इस अग्नि की क़ीमत और अग्नि को माता समझने वाले न वो बुजुर्ग रह गए हैं।

अब तो घर-घर गैस चूल्हा आ गया है जिसे लाइटर की एक चिंगारी जला देती है बल्कि ये कहें कि अब तो नए मॉडल के गैस चूल्हे में लाइटर की भी जरूरत नहीं पड़ती है। 🤷‍♂️

समय बहुत बदल गया है बहुत सी सुविधा हो गयी है परन्तु कोई पुरानी चीजें नजर के सामने आ जाती है तो उससे जुड़ी बाते अवश्य याद आ जाती हैं। 
साभार..

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