बिहार भाजपा के निकम्मेपन का रिपोर्ट कार्ड है

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अच्छी खबर ये है कि भारत में सेमीकंडक्टर का पहला फेब्रिकेशन प्लांट धोलेरा, गुजरात में 91000 करोड़ की लगत से टाटा लगा रही है। असम में टाटा सेमीकंडक्टर के पैकेजिंग का प्लांट 27000 करोड़ की लागत से बना रही है। इसके अलावा सानंद, गुजरात म ही सीजी पॉवर प्लांट 7600 करोड़ की लागत से बन रहा है। गौर करने लायक क्या है? गौर करने लायक ये है कि अकेले बिहार से भाजपा को 39 सांसद मिले हुए हैं। गुजरात और असम एक साथ मिला दें, तो भी इतने सांसद नहीं होते, 35 होंगे। इसके बाद भी सारा काम कहाँ जा रहा है? असम-गुजरात!

बिहार के मुख्यमंत्री कहते हैं कि बिहार लैंड-लॉक्ड स्टेट यानि चारों ओर से जमीन से घिरा हुआ है, समुद्र से जुड़ा नहीं है, इसलिए बिहार में प्लांट नहीं लगते। असम की सीमाएं कौन से समुद्रों से मिलती हैं ये हम नक़्शे में ढूंढ नहीं पाए। कम शिक्षित श्रमिकों की तो बात ही छोड़िये, लाखों की संख्या में बिहार से जो इंजिनियर बनेंगे, उन्हें पढ़ाई के समय ही कोचिंग के लिए पहले कोटा जाना होगा। वहाँ से फिर वो इंजीनियरिंग कॉलेज में कहीं बंगलौर या दक्षिणी भारत के राज्यों में जायेंगे। उसके बाद नौकरी करने जायेंगे गुजरात और असम! कोटा सभी नहीं जायेंगे का तर्क मत दीजियेगा। एक भाजपा नेता कोरोना काल में लॉक-डाउन के दौरान जब बिहार में बिहारियों को वापस नहीं आने दिया जा रहा था, उस समय ले आये थे जिसपर खूब बवाल मचा था। 

कोरोना के दूसरे लॉक-डाउन में चंपारण में शीर्षत कपिल डीएम थे और उनकी जमकर तारीफ केवल इसलिए हुई थी क्योंकि जिस पहली ट्रेन से वो प्रवासियों को वापस लाये थे वो और कहीं से नहीं, कोटा से छात्र-छात्राओं को ही लेकर आई थी।कोटा के भाजपा विधायक कोटा का "संस्कारी माहौल" बिगाड़ने के लिए बिहारी छात्र-छात्राओं को जिम्मेदार बता चुके हैं। ढूंढ लीजिये, एक गूगल सर्च में मिल जायेगा। बिहार के चाय बगान मजदूरों को चुन-चुनकर मारने के लिए असम की उल्फा कुख्यात रही है। बिहारी मजदूरों का सबसे बड़ा नरसंहार पूर्वोत्तर राज्यों में ही हुआ था, ये भी गूगल सर्च में मिल जायेगा। सिर्फ 35 सांसदों के बल बूते पर अगर इतना निवेश गुजरात-असम में आ रहा है तो बिहार के 39 सांसद क्या पांव में मेहँदी लगा के संसद में बैठे थे? निवेशकों से मिलने की भाग दौड़ करते समय क्या नानी याद आने लगी थी?

जिस मामले में देख लिया जाए उसी में BJP Bihar के सांसदों का निकम्मापन, उनकी काहिली, उनकी कामचोरी नजर आती है। रविशंकर प्रसाद जैसे नेताओं के पास अपने क्षेत्र का दिखाने को कुछ नहीं होता तो वो गुजरात में बन रहे पुल का फोटो अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं। पूरे राज्य में आपके चालीस सांसदों और इतने विधायकों से क्या ऐसा कुछ नहीं हो पाया है दस वर्षों में जिसकी फोटो तक दिखाई जा सके? आरटीआई के जवाब में सांसदों ने जो प्रधानमंत्री की अनुशंषा पर गाँव गोद लिए थे, उनका हाल पूछा था। एक काम नहीं है जो गिनवाया जा सके। एक आंगनवाड़ी केंद्र, एक स्कूल, एक सामुदायिक भवन तक ऐसा नहीं बनवाया है भजपैयों ने जिसे दिखाकर कहा जा सके देखो ये मेरे क्षेत्र का काम है।

बिहार भाजपा के बुड्ढे हो चले नेताओं में इतना भी दम नहीं कि वो तेजस्वी यादव जैसे लौंडों के सामने टिक पायें। जी हाँ, "मोदी नाम केवलम्" का जाप छोड़कर कुछ करने की स्थिति में होते तो नीतीश बाबु की गोद में बगलबच्चा बने तो नहीं ही बैठना पड़ता। दूसरे राज्यों के विकास का झुनझुना बिहारियों को पकड़ाकर कबतक वोट मांगेंगे पता नहीं। बाकी सांसदी के चुनावों के तुरंत बाद ही विधानसभा चुनाव भी आ ही रहे हैं। विकास-रोजगार-शिक्षा जैसे ही मुद्दों पर इस बार राजद से टकराने की तैयारी कीजियेगा!

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