👉 अपनों से अपनी बात :
----------------------------------------
👉" कर्मवाद " और " भाग्यवाद "
एक ही सिक्के के दो पहलू हैं
और सामान्य दृष्टिकोण से देखने पर दो विपरीत ध्रुव पर आभाषित होते हैं , पर विशेष दृष्टिकोण से देखने पर इन्हीं दोनों ध्रुवों के बीच जीवन की घटनाएं पुष्पित और पल्लवित होती हैं और अंततः निर्वाण को प्राप्त होती हैं । वास्तव में ये विचारधाराएं एक - दूसरे का पूरक हैं ।
👉चूंकि सनातन संस्कृति इस जन्म से पहले और इस जन्म के बाद भी जीवन की सच्ची परिकल्पनों पर आधारित है , अतः घटनाएं इस जन्म से पहले भी घट चुकी हैं और निश्चय ही इस जन्म के पश्चात भी घटेंगी अर्थात जीवन और जीवन की घटनाएं मोक्ष ( निर्वाण ) प्राप्ति तक चक्रीय रूप से घटित होती रहेंगी ।
👉लोगों को आपस में भ्रम होता है और एक - दूसरे पर अपने - अपने वादों ( कर्मवाद और भाग्यवाद ) को लेकर प्रायः वैचारिक टकराव करते रहते हैं ।
👉पर किसी का भाग्य किसी दूसरे के लिए कर्म और किसी का कर्म किसी दूसरे के लिए भाग्य बन जाता है ।
👉और अन्त में .....
👉चाहे कर्मवाद को मानने वाले हों या भाग्यवाद को मानने वाले हों या मिश्रितवाद ( कर्मवाद+ भाग्यवाद ) को मानने वाले हों,
इसका अन्तिम घोष यही है कि
" अंतिम जीत सत्य की ही होती है "।
👉" रामायण " और " गीता " इसके जीते - जागते प्रमाण हैं ।
👉अंतिम जीत निश्चय ही सत्य के पक्ष में होगी ।
आपसबों का शुभेच्छु -----
---------------------- नीरज ।🙏
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें