बदायूँ की घटना ने इस्लाम के खूनी चरित्र को फिर से दुनिया के सामने ला दिया है

पिछले चौदह सौ वर्ष से लगातार इस्लाम का के जेहादी चरित्र को देख रहे हैं बदायूँ जैसी घटनाएं हमारे समाज में प्रतिदिन हो रही है, हम समाज के रूप में इस जेहादी मानसिकता का प्रतिकार करने की वजह हम जेहादियों का पक्ष में खड़े होते दिखाई देते कभी कभी कभी हद ही हो जाती है । क्या हमारा शत्रु बोध समाप्त हो गया है? क्या हम शत्रु और मित्र के बीच का अंतर करना भी नहीं जानते हैं ? इस विषय पर समाज के तौर पर हमे मंथन करने की आवश्यकता है उनकी आसमानी किताब में स्पष्ट लिखा जब रमजान का महीना चल रहा , तो 'मुश्रिको' को जहां पाओ कत्ल करो, और पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात लगाकर उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे 'तौबा' कर लें 'नमाज़' समूह बनाएं और, जकात दें तो उनका मार्ग छोड़ें दो। निःसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमादान और दया करने वाला है।” (पा0 10, सूरा. 9, आयत 5,2ख पृ. 368) ।
उत्तर प्रदेश के बदायूँ में घटना को लेकर अभी समाचार पढ़ा तो समाचार पढ़कर पता चला कि वह विनोद के घर उधार पैसे मांगने आया था
विनोद की पत्नी पैसे देने से पहले उसके लिए चाय बना रही थी इसी बीच भाईजान ने अपना मजा'हबी कर्तव्य निभाते हुए तीनों बच्चों के गले पर उस्तरा चला दिया
इन्हें घर में आने देना, उनके साथ किसी तरह का आर्थिक व्यवहार करना अत्यंत जोखिम का काम है
संत विराथु महाराज सही कहते हैं कि *आप कितने भी सहिष्णु हों पर पागल कुत्तों के साथ नहीं रह सकते*
मैं तो कहता हूं साथ रहना तो दूर हम इन्हे अपनी गली से भी नहीं गुजरने दे सकते

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