एक ही रामबाण उपाय- प्रत्याचार! प्रत्याक्रमण। भाग १

एक ही रामबाण उपाय- प्रत्याचार! प्रत्याक्रमण। भाग १

मुसलामानों ने लगातार आक्रमण कर हिंदू धर्म का कितना विनाश किया ; लाखों हिन्दू -स्त्री पुरषों को भ्रष्ट कर , मुसलमान बनाकर हिन्दुओं के संख्याबल की कितनी हानि की और उस हानि को पूरा करने में जातिभेद शुद्विबंदी, सद्गुण विकृति आदि दुर्बल , धर्मभीरु और राष्ट्रघातक आचारों के कारण हिंदू समाज किस प्रकार असमर्थ रहा - इसका विवरण पिछले प्रकरणों में दिया गया है । दुर्भाग्य से हिन्दुओं का संख्याबल घटानेवाली शुद्विबंदी सद्गुण विकृति आदि आत्मघात रुढ़ियों का ही तात्कालीन हिंदू समाज ' प्रत्यक्ष धर्म समझता था और इनकी शिक्षा देनेवाले पोथी -पुराणो को अपने धर्मग्रंथ मानकर सम्मान देता था । इन पोथी पुराणों का जंजाल का उच्छेद करने का धैर्य जिनमें थोड़ा बहुत था , ऐसे दूरदर्शी सुधारक , राजनीतिज्ञ , उस अंधे युग में आदि उत्पन्न न होते और अपने प्रभाव से राष्ट्र को धर्मरक्षण का पराक्रमी मार्ग न दिखाते तथा उन म्लेच्छो का शत्रुओं का धर्मयुद्ध में मात नहीं देते तो हिंदुओं की संख्या का और फलस्वरूप हिंदू राष्ट्र का संपूर्ण ह्रास हुए बिना नहीं रहता। 

     

महर्षि देवल और भाष्यकार मेधातिथि - उपलब्ध जानकारी के अनुसार अपनी तेजस्विता से हमारी दृष्टि अचूक आकर्षित करनेवाले उस काल के दो वीर विचारक थे - महर्षि देवल और मनुस्मृति के भाष्यकार मेधातिथि । उनके जो ग्रंथ आज उपलब्ध है, उनमें स्पष्ट रूप से सिद्ध होता है कि मुसलमानो द्वारा सिंध पर किए गए प्रथम आक्रमण और धार्मिक अत्याचारों का काल, जब मुसलमानो ने पंजाब तक हिन्दू राज्यों को जीत लिया था, वह काल तथा इसके मध्यांतर के काल में ये दोनों ग्रंथ हिंदू राष्ट्र को उन प्रसंगों में पराक्रमी और विजिगीषु नए अचार, नए शास्त्र और नए शस्त्र देने के लिए उपलब्ध कराने के लिए रचे गए थे । 

मुसलामानों ने सिंध पर आक्रमण कर तलवार के बल हिंदुओं को भ्रष्ट कर मुसलमान बनाने का घोर अत्याचार प्रारंभ किया था, उसका प्रतिकार करने के लिए तत्कालीन स्मृतियों में वर्णित आचार धर्म पूर्णतः असमर्थ हैं, यह देखकर मुसलामानों द्वारा हिंदुओं के संख्याबल की जो हानि हो रही थी उसे रोकने के लिए और पूरा करने लिए हमें अपना आचार धर्म सुधारना होगा, अर्थात धार्मिक अत्याचारों का सामना धार्मिक प्रत्याचारो से ही करना होगा , ऐसे तेजस्वी दृढ़ विचार रखनेवाले क्षत्रिय, आदि योग्य हिंदू पुरषों का एक वर्ग प्रथमत: सिंध में ही संगठित होगा , यह देवल स्मृति के ही श्लोक से स्पष्ट होता है

सिधुतीरमुपासन्नम देवलं मुनिसत्तम ।। ' 

(सिंधु तीर के उपासकों में देवल सर्वश्रेष्ठ मुनि थे )

इस चरण से प्रारंभ होनेवाले धर्मभ्रष्टीकरण - प्रकरण से सही बात स्पष्ट होती है कि तेजस्वी विद्रोही हिंदू विचारक प्श्रथमत : सिंधु नदी के तट पर स्थित महर्षि देवल के नेतृत्व में संगठित हुए थे। सिंधु नदी के तट पर स्थित महर्षि देवल के आश्रम में उपस्थित हिंदू नेताओं ने ऋषि से प्रश्न किया - ऋषिवर म्लेच्छो के सशस्त्र धार्मिक अत्याचारों के कारण बलपूर्वक भ्रष्ट किए गए सहस्रों हिंदू स्त्री - पुरषों को क्या किसी प्रायश्चित के द्वारा मुस्लमान से हिंदू बनाया जा सकता है? 

इस प्रश्न पर जो चर्चा हुई, उसका अंत महर्षि देवल ने अधिकार वाणी से शुद्धिकरण के लिए अनूकूल जो नई आचार-संहिता बनाई, उल्लेख देवल स्मृति के श्लोकों में स्पष्ट रूप से किया गया है। उस काल में सनातन माने जानेवाले हिंदुओं के शुद्धि बंदी के आचारों से हिंदू जाति संख्याबल की प्रचंड हानि होते देखकर उन शास्त्र वर्णित आचारों को ही इस स्मृति ग्रन्थ के प्रेरक लेखक और उसके अनुयायियों ने आपत्काल में शास्रबाह्रा घोषित कर उन्हें निषिद्ध समझा। 

आपदा धर्म नामक एक प्रगतिशील और किसी प्रतिकूल परिस्थितियों में आ पड़ी विपत्ति का तत्काल सामना कर सकने लायक एक अप्रतिम शस्त्र ही हमारे धर्मशास्त्र को शस्त्रागार में सदैव सिद्ध रहता था । 

उस शस्त्र का उचित उपयोग ठीक समय पर करनेवाले कुशल नेताओं की आवश्यकता थी । इस हिंदू मुस्लिम संघर्ष के धार्मिक संकट के काल में सामुदायिक रूप से प्रारंभ में इस आपदधर्म का पुनरुज्जीवन किया जाता , तो हिंदू धर्म ही भारत से मुस्लिम धर्म का संपूर्णता : आमूल उच्छेद कर डालता। ठीक उसी प्रकार , जिस प्रकार पराक्रमी , दिग्विजयी आर्यो और देवताओं ने राक्षसों का समूल विनाश कर डाला था। यद्यपि उतनी मात्रा में नहीं परंतु कुछ अंशों में वैसी धार्मिक तेजस्विता सिंध के महर्षि देवल के अनुयायी क्रांतिकारी धर्मसुधारक हिंदुओं ने सामुदायिक रूप से भी दिखाई -, यह सच है महर्षि का काल ईसा ८००० से,१०० और के मध्य में माना जाता है।

उस धार्मिक तेजस्विता के कारण महर्षि देवल की स्मृति में शुद्धि बंदी की रूढ़ि को शास्त्र को ठुकराकर उसके स्थान पर प्रायश्चित। के उपाय बताए गए हैं। मुस्लमान द्वारा बलपूर्वक भ्रष्ट किए जाने पर उस हिंदू स्त्री या पुरुष ने स्वेच्छा से अमुक वर्षों के अंदर हिंदू धर्म में वापस आने की इच्छा प्रगट की , तो उसे उपवास जैसे सादे , सरल प्रायश्चित द्वारा शुद्ध कर हिंदू आपने धर्म में वापस लौटा ले ऐसी देवल स्मृति में आज्ञा दी गई। स्त्रीयों के विषय में तो इस स्मृति की उदारता उस काल की तुलना में बहुत प्रशंसनीय है। इस स्मृति में उल्लिखित है कि मुसलमानो द्वारा बलात्कार करके भ्रष्ट की गई अथवा उनके घर दासी बनकर सेवा -, चाकरी करनेवाली हिंदू स्त्रीयों को भी केवल एक बार पुनः मासिक ऋतु दर्शन हो जाने पर शुद्ध समझकर हिंदू समाज में समाविष्ट कर लेना चाहिए । मुस्लामनो के शिकंजे से मुक्त की गई गर्भवती हिंदू स्त्री को भी उसके उदर का वह शल्य प्रसूति के द्वारा बाहर निकल जाते ही उसी प्रकार शुद्ध मानना चाहिए , जिस प्रकार स्वर्णकार की भट्टी में पिघलाया हुआ स्वर्ण शुद्ध माना जाता है। 

हिंदू जाति संख्याबल घट न जाए इसलिए भ्रष्ट हिंदू स्त्री को शुद्ध कर पुनः हिंदू धर्म में वापस लेने के लिए इतनी आतुर देवल स्मृति में भी उस हिंदू स्त्री के उदार जन्म लेने वाले म्लेच्छ बीज के उस बालक को शुद्ध कर हिंदू जाति में समाविष्ट कर लेने की कुछ भी व्यवस्था क्यों और कैसे नहीं की गई , यह बड़े आश्चर्य की बात है। हमे बंगाल के हिंदुओं में प्रचलित ऐसी ही एक प्रथा का ज्ञान हुआ है । उसके अनुसार जब किसी बंगाली हिंदू परिवार पर विधवा - प्रसूतिका अथवा कुमारी के भ्रष्ट किए जाने का संकट आता तो उस परिवार की प्रगट रूप में अपकीर्ति न हो और हिंदू जाति को भी उस उपसर्ग न हों, इसके लिए वहां शास्त्री वर्ग ने सदिच्छपूर्वक यह उपाय ढूंढ निकाला था कि परिवार को गांव स्थित नदी के उस पार के गांव मुस्लिम मोहल्ले के मुसलामानों को बुलाना चाहिए और उस हिंदू महिला से अधर्म से उत्पन्न वह बालक अब आपका बालक है - यह निवेदन करके उनको सौंप देना चाहिए ।

हिंदू इस धर्माज्ञा का पालन बड़े आनन्द से करते थे मुसलमान भी ऐसे बच्चों से उनके संख्याबल बढ़ता है यह जानकर बड़ी खु से ऐसे बच्चों को स्वीकार करते थे परंतु ऐसा करने से उनका संख्याबल कम होता है - यह बात उन भोले भाले पापभीरु हिंदुओं के ध्यान में नहीं आती थी । बंगाल में भी यह प्रथा देवल स्मृति जैसी संकरज अपत्य मुस्लमानो को दे डालने की आज्ञा देनेवाली किबी स्मृति के प्रभाव से ही रूढ़ होगी ' यह बात देवल स्मृति के पढ़ने के बाद ध्यान में आई ।

जय हिन्दू राष्ट्र

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