काशी के मणिकर्णिका घाट के श्मशान पर चिता भष्म से होली ।

कल काशी में एक वीभत्स आयोजन हुआ मसाने की होली ।
 अर्थ श्मशान में चिताभस्म से होली।
इसे मनाने वाले इसलिए मनाते हैं क्योंकि भगवान शंकर ने भूत प्रेतों के साथ शमशान में चिता भस्म से होली खेली थी इसलिए वे लोग भी ऐसे ही बनारस के श्मशान मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म से होली खेलेंगे। 
इस आयोजन के समर्थक मूर्खों का कहना है कि ये सदियों से बनारस की परंपरा है, तो ऐसे पारंपरिक मूर्खों से प्रश्न है कि उनके दादा या परदादा ने कब ऐसी होली खेली?
 दादा परदादा तो छोड़िए अभी 15-20 साल पहले तक इस तथाकथित सैकड़ों वर्षों पुरानी परंपरा का नाम तक कोई नहीं जानता था।
 अब बाकायदा बनारस के टूर पैकेज में शामिल कर लिया गया है क्योंकि टूर ऑपरेटर्स को इससे पैसे कमाने हैं।
 बनारस घराने के (आजमगढिया) गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र जी (जो मंच पर गाते कम और बतियाते ज्यादा है ) ने वाहवाही लूटने के लिए " खेले मसाने में होरी दिगंबर" गाया है तब से ये भदेस आयोजन शुरू हुआ है। 
 कुछ वर्ष पहले इससे भी चार हाथ आगे बढ़कर कथावाचक मोरारी बापू ने अपने चेले की शादी वहीं मणिकर्णिका घाट पर चिता के फेरे लगवा के करवा दी।
 इस वीभत्स आयोजन के समर्थक वही हैं जिनका मणिकर्णिका घाट के आसपास होटल है या इस आयोजन को टूर पैकेज में शामिल करवा के खूब पैसे कमा रहे हैं। 
आप लोग स्वयं कल्पना करके देखिए कि आपके किसी परिजन का शव चिता पर जल रहा हो आप दुखी हों लेकिन उसी समय भगवान शिव और भूत प्रेतों का कॉस्ट्यूम पहने दारू गांजा के नशे में धुत्त डीजे बजाते हुए हो-हो करते हुऐ सैकड़ों लोगों का हुजूम वहीं आ जाता है और वहीं पड़ी चिता की राख को अपने और अन्य लोगों पर उड़ा उड़ा के फेंके और वीभत्सता से अट्टहास करते हुए खेले मसाने में होली दिगंबर गाये तो कैसा लगेगा ? 

शवयात्रा या शमशान जाने भर से स्नान करना पड़ता है, यज्ञोपवीत बदलना पड़ता है क्योंकि व्यक्ति अशुद्ध हो जाता है, और वहां की चिता भस्म को अपने और अपने मित्रों पर उड़ेल रहे हैं, क्या आप अघोरी या अघोर पंथ में दीक्षित हैं या वाममार्गी तंत्र साधक ?
 आप गृहस्थ हैं जिसके लिए ये सब करना पूरी तरह वर्जित और निषिद्ध कर्म है। 
कुछ लोगों का कहना है कि अघोरी/ औघड़ लोग हजारों साल से ऐसी होली खेल रहे हैं तो हम भी खेलेंगे, ठीक है खेलो लेकिन क्या आप औघड़ हो?
 या बस चिता भस्म खेलने तक औघड़ हो और बाकी समय गृहस्थ? 
यदि आप भगवान शिव को मान रहे हैं तो आपको ये भी मानना होगा कि श्मशान भूमि , शिव,काली सहित तंत्र के कई देवी देवताओं की सिद्धि और अघोर, वाममार्गी तंत्र साधकों की साधना भूमि भी है इसलिए शमशान अनेक दृश्य अदृश्य शक्तियों ( भूत प्रेत, पिशाच, वेताल, डाकिनी, शाकिनी) का निवास स्थान भी है। 

आजकल तो युवा लड़कियों और महिलाओं को भी मणिकर्णिका घाट घूमने का शौक लगा है इसलिए इस स्थान पर कई रजस्वला लड़कियां वोक बनने के चक्कर में मासिक धर्म के रक्त से सने सेनेटरी नैपकिन पहन कर हू हा करते हुए " मसाने की होली" मनाने के लिए कूद रही हैं।  
इस रक्त के गंध से कौन सी आसुरी शक्ति या प्रेत/पिशाच आपकी ओर आकृष्ट हो जाय और आपके साथ लग जाय आपको अंदाजा भी है इसका? 
इसका परिणाम ये होगा कि आप जिंदगी भर प्रेतबाधा से पीड़ित रहेंगी, गर्भधारण करने में हजार दिक्कत आयेगी, गर्भाशय के कैंसर , असमय गर्भपात और शिशु का कम आयु में भी मृत्यु जैसी दुखद घटनाएं होंगी जिसका मेडिकल साइंस में कोई उपचार नहीं है। 

छन्नूलाल मिश्र जी ने जब से ये गाना गा के प्रसिद्धि हासिल की है तब से उनके घर में भूत प्रेत लगातार थपोड़ी पीट रहे हैं, परिवार में भयंकर कष्ट है उनके।

 मोरारी बापू भी शमशान में शादी करवाने के बाद परेशान ही हैं, उसके बाद अली मौला मंच पर गाने लगे , मार खाते खाते बचे, बेइज्जत हुए,जिंदगी भर का सम्मान एक झटके में खत्म। 

एक झूठे,अश्लील और वीभत्स आयोजन को पारंपरिक आयोजन बता कर न ही अपने पूर्वजों का अपमान करिये और न ही वहां जल रही चिताओं का और न ही वहां विद्यमान शक्तियों का। 

थोड़ी सी मस्ती ज़िंदगी भर की परेशानी देगा, रोयेंगे पूरी ज़िंदगी।
बीते कुछ सालो मे पार्टी विशेष के अधीन जाता सनातन परम्परा न गुरुबल न शास्त्र बल
बस है हुड़दंग ।

काशी में मसान होली का चलन पाखंड है और ऐसे ही पाखंडों से धर्म की हानि होती है।
 श्मशान चिता से होली खेलना भला कहाँ की शिष्टता है ।
 अघोर व कापालिक चिता_राख को तन में लपेटे तो समझ आता है पर जो गृहस्थ्य हैं वह किस अधिकार से चिता होली खेल रहे हैं । 

 जिस मणिकर्णिका में मोक्ष के उद्देश्य से धार्मिक जन अपने सगे संबंधियों के शव दहन को काशी आते हैं ।

 जिस काशी में भगवान रुद्र मृतक के कर्णों में तारक मंत्र दुर्गा और राम बोलकर मोक्ष प्रदान करते हैं ,उस काशी में होली के पर्व के नाम में श्मशान में हुडदंग करना काशीपति भगवान शूलपाणि का अपमान है ।

धर्म के नाम में आडंबर फैलाने वालों शरीर में राख को तो सिर्फ महाकाल लपेट सकते हैं, 
तुम क्या समझकर अपने शरीर मे राख लपेट रहे हो ।

 धर्म के नाम में मनमुखि व्यवहार करने से सिर्फ पतन होता है औऱ यही पतन आज हिन्दूओं के मनोवस्था में साफ साफ देखा जा रहा है। 

जय महादेव 🚩

श्रीयुत सांकृत्यान🚩


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