एस्ट्रोजेनिका ने 2021 में ही अपने रिसर्च पेपर में यह बताया था कि थ्रोमबोसिस इसका बहुत ही रेयर साइड इफ़ेक्ट हो सकता है। बाद में पता चला कि यह दस लाख लोगों में से किसी एक व्यक्ति को हो सकता है। अब जिसको थ्रोमबोसिस होगा, उसको इससे मृत्यु की संभावना भी केवल 1% है।
अर्थात् इस वैक्सीन को यदि दस करोड़ लोगों को दिया जाय तो किसी एक व्यक्ति में मृत्यु की संभावना बनेगी। जबकि कोरोना से मृत्यु की संभावना अपने आप 2-3% थी अर्थात् 100 में से 2-3 व्यक्ति की।
अब आगे और महत्वपूर्ण बात यह है कि कोरोना में जो मौतें हुई उसमें से बहुतों का कारण यहीं थ्रामबोसिस ही था।
अतः दस करोड़ में से एक घटने वाली घटना से डरकर, उस घटना को आमंत्रण देना जिससे 100 में से 2 लोगों की मृत्यु हो सकती है, स्पष्ट करता है कि यह बुद्धि का राहुल गांधीकरण है। कोविशिल्ड की इफ़ेक्टिविटी बाद में लगभग 90% साबित हुई।
अतः अंध विरोध के चलते उस चीज का विरोध करना जिसने मानवता की इतनी बड़ी सेवा की, निकृष्टता है।
ब्लड कैंसर में बोन मैरो ट्रांस्प्लांट के दौरान ही 5-10% मरीज़ों की मृत्यु कैंसर के बजाय केवल उस प्रक्रिया से हो जाती है बावजूद इसके पिछले चार दशक से यह पहली चॉइस है। कभी किसी ने नहीं कहा कि यह इलाज लोगों को मार रहा है क्योंकि किसी भी दवा, इलाज और इंटरवेंशन को समग्रता से देखा जाता है। यह देखा जाता है कि नेट इससे मानवता बच रही है या नहीं।
इस हिसाब से मानवता को कोवीशील्ड के आविष्कारकों का धन्यवाद देना चाहिए।
डॉ भूपेंद्र सिंह
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