इस लोकसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टी चुनाव प्रचार क्यों नहीं कर रही है?

2024 चुनाव देश का ऐसा पहला चुनाव है जब किसी भी पार्टी के कार्यकर्ता, बाइक पर झंडा लगाकर नहीं घूम रहे। 
किसी भी पार्टी के तरफ़ से मंडल स्तर के कार्यकर्ताओं द्वारा किए जाने वाला स्वतःस्फूर्त बाइक रैली, जन संपर्क लगभग बंद है। 
किसी के घर पर किसी भी पार्टी का झंडा नहीं दिखा, न सपा, न बसपा, न कांग्रेस, न भाजपा। 
दीवालों पर चिपकाए जाने वाले पोस्टर, पत्रक, छोटे छोटे बैनर, एकदम ग़ायब हैं। 
लाउड स्पीकर लगाये गली गली घूमने वाले प्रचारवाहन लगभग अनुपस्थित हैं। 
दारू, मुर्ग़ा, बकरा वाली पार्टी लगभग कहीं भी दिखाई नहीं पड़ रहे। 
प्रधान, बीडीसी, ज़िला पंचायत सदस्य किसी को भी मैनेज करने के लिए बहुत कम पैसा बाटा गया है और कहीं गया भी है तो उसका वितरण नहीं हो पाया है। 

एकदम शांत चुनाव है। कैश फ़्लो एकदम रुका हुआ है। सबसे बड़ा नोट 500₹ का हो गया है। बड़े व्यापारी जो पार्टियों के लिए कैश की व्यवस्था करते थे उनमें से अधिकांश ने व्यापार को व्यवस्थित कर लिया है अथवा कैश है तो एजेंसियों की कार्यवायी से डरकर निकाल नहीं रहे हैं। इंतज़ार कर रहे हैं कि शायद माहौल बदले तब खुलकर खेलेंगे।
चुनाव प्रचार के नाम पर बड़ी बड़ी रैलियाँ हो रही हैं, शहरों में प्रमुख स्थानों पर पैसा देकर बड़े बड़े बोर्ड लगाए गए हैं। इसके अतिरिक्त सोशल मीडिया, टीवी, एफ़एम और अख़बार के विज्ञापन दिए जा रहे हैं। इसमें से अधिकांश हिस्सा पार्टियों और उम्मीदवारों को दिखाना पड़ रहा है। स्थानीय स्तर पर जो पैसे खर्च होते थे, वह नहीं है। 

चुनाव आयोग दिन पर दिन और कठोर होता जा रहा है। एक एक महिला का बुर्क़ा और घूँघट उठाकर चेक किया जा रहा है। पहले की तरह एक आदमी दो वोट डाल दे, यह भी नहीं हो पा रहा है। 

कम वोटिंग न किसी पार्टी के पक्ष में है और न किसी के विरोध में। यह सीधे सीधे बता रहा है कि चुनाव भी बिना काले धन के बेमज़ा हो जाता है। 
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