क्या आप सब बाजीराव पेशवा प्रथम के बारे में जानते है

ये तो हम सब जानते हैं कि विभाजन के समय हैदराबाद, 

जूनागढ़ और भोपाल के नवाबों की पाकिस्तान विलय को लेकर बातचीत चल रही थी और उन्होंने ऐसा करने की कोशिश भी की। अब सवाल यह उठता है कि इतने बड़े भारत में जहां कथित 800 साल मुस्लिम राज रहा वहां जिन्ना को सिर्फ तीन ही नवाब क्यों मिले जिन्हें अपने साथ मिलाने की कोशिश कर सके।

युनान, मिस्त्र, पर्शिया, ग्रीक हमारे साथ की हमारे बाद की कितनी ही सभ्यताएं समाप्त हो गई लेकिन भारत आज भी शाश्वत खड़ा है और इसका सबसे बड़ा कारण है कि भारत को जब जैसे नायक आवश्यकता हुई इस धरती ने तब वैसे नायक का निर्माण किया। 18 वीं शताब्दी में इस धरा ने बिल्कुल ऐसे ही पेशवा बाजीराव के रूप एक अजेय हिन्दू सेनापति पैदा न किया होता तो बहुत संभव है कि आज का भारत का क्षेत्रफल वर्तमान भारत के क्षेत्रफल से एक चौथाई ही होता।

इतिहास में आपने तीन आंग्ल-मराठा (1777,1802,1818) युद्ध पढ़े होंगे लेकिन आपने इतिहास में एक भी मुगल-अंग्रेज युद्ध नहीं पढ़ा होगा। अंग्रेजों के प्रभावी होने से पहले के करीब 100 वर्ष सौभाग्य से राजनीतिक रूप से हिन्दू प्रभावी 100 वर्ष रहे। ये सौ वर्ष 1707 में औरंगजेब की मौत के साथ शुरू हुए और मराठा साम्राज्य के समाप्ती तक चले। इन 100 वर्षों ने न सिर्फ मृत अवस्था में पहुंच चुकी हिन्दू संस्कृति का दोबारे अपने आप को संभालने और सांस लेने का अवसर दिया बल्कि लगातार पराजय और दासता से हिन्दुओं के मन में जमती जा रही घोर निराशा को समाप्त किया। इस हिन्दवी स्वराज का सपना और संघर्ष की नींव चाहे माता जीजाबाई और छत्रपति शिवाजी महाराज ने रखी हो लेकिन इसे धरातल पर उतारने का काम किया पेशवा बाजीराव ने। 

पेशवा बाजीराव ने अपने 20 साल में मराठा सम्राज्य को स्थापित कर दिया और 1760 तक आते आते उड़िसा के कटक से लेकर अफगान सीमा के अटक हिन्दवी स्वराज का भगवा ध्वज लहरा रहा था। उत्तर भारत के कितने ही क्षेत्र, शहर, तीर्थ 200, 400, 600 सालों के बाद मुक्त हुए। इस मुक्ति का असर ये हुआ कि उजैन के महाकालेश्वर से लेकर त्रयंकेश्वर तक 7 ज्योतिर्लिंग फिर से इन्ही 100 वर्षों में फिर से पुनर्निर्माण किए गए। उड़िसा का जगन्नाथ मंदिर जिस पर मध्यकाल करीब 17 बार हमले हुए और जिसकी नियती ही सोमनाथ के मंदिर के समान बार-बार बसने और बार-बार उजड़ने की हो गई थी उसने पहली बार इन 100 वर्षों तक आक्रमण से मुक्ति और सुरक्षा का अनुभव किया।

 इन सौ सालों का असर ये रहा कि उत्तर पूर्व में अहोम, पश्चिमी, मध्य और दक्षिण भारत में मराठे और उत्तरी भारत में सिखों के रूप में 18 वी शताब्दी में हिन्दुओं ने करीब 80 फीसदी देश पर दोबारे अधिकार प्राप्त कर लिया। 1737 में सदियों के बाद पहली बार हिन्दू सेना दिल्ली में पहुंची और तीन दिन तक मुगल बादशाह कैद में रहा। कमजोर होते केंद्रीय मुगल सत्ता का परिणाम ये रहा कि बंगाल और हैदराबाद के मुगलिया सुबेदारों ने खुद स्वतंत्र घोषित कर लिया और हालत ये हो गई कि 18वीं शताब्दी में सबसे ताकतवर मुसलमान बादशाह औरंगजेब के बाद 19वीं शताब्दी का सबसे प्रभावी मुस्लिम सुल्तान टीपू सुल्तान रह गया जिसे मैसूर मराठा युद्ध में मराठों के हाथों न सिर्फ कई बार शर्मनाक हार हुई बल्कि मराठों को संधि की शर्तों के रूप में लाखों रुपए के हर्जाने तक देने पड़े।

1755-1765 तक के ये 10 साल देश में भविष्य तय करने वाले थे। अंग्रेजों ने 1757 केवल 22 सैनिक खोकर देश का पहला राज्य बंगाल जीता और दूसरी तरफ मराठों की बढ़ती हिन्दू ताकत ने खोखली होती मुगल सत्ता को इस लायक कर दिया कि मुगलों को मराठों पर आश्रित होना पड़ा और मराठे एक तरफ से देश की केंद्रीय सत्ता बन गए। मराठों की बढ़ती हिन्दू शक्ति को रोकने के लिए मुगल सेनापति नजीबुद्दौला ने अफगानी खिलजी को बुलावा भेजा और 1761 में मराठों को पानीपत में संयुक्त इस्लामिक सेना के सामने भयंकर नुकसान उठाना पड़ा। लेकिन ये आखिरी युद्ध नहीं था जब संयुक्त इस्लामिक सेना लड़ी हो 1764 बंगाल के नबाब मीर कासिम, अवध के नबाब शुजाउद्दौला, मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना ने अंग्रेजों के खिलाफ बक्सर का युद्ध लड़ा और इस युद्ध में जीत अंग्रेजों की हुई। शाह आलम को कैद कर लिया गया जिन्हें बाद में महादजी सिंधिया छुड़ाकर लाए। बंगाल और पूर्वी भारत अंग्रेज सीधे मुसलमान राजाओं से जीते क्योंकि इसी क्षेत्र में मराठे सीधे राज में नहीं आए थे इसके बाद मैसूर को छोड़कर लगभग सारा देश अंग्रेजों ने मराठों और सिखों से ही जीता। रह गया हैदराबाद जो subsdiry alliance करके बिना लड़े अंग्रेजों की शरण में जाना वाला पहला राज्य बना।

अगर पेशवा बाजीराव के रूप में अंग्रेजों से पहले एक हिन्दू सत्ता न उभरी होती तो जिन्ना के पास दाने फेंकने के लिए 3 नहीं 30 नवाब होते और हिन्दुओं के लिए विभाजन और कष्टकारी परिस्थिति बन जाती। हैदराबाद की रजाकार सेना की तरह क्या पता कितने और शहरों में हिन्दू नरसंहार कर रही होती। 

आज हुमायूं का मकबरा, बीबी का मकबरा समेत कितनी ही मुगलकालीन इमारतों की देखरेख सरकार कर रही है हिन्दू टिकट लेकर इन जगहों को देखने जाते हैं और 40 वर्ष के जीवन में 40 से अधिक युद्ध जीतने वाले अपराजय योद्धा जिसकी कारण से आज हम अफगानिस्तान या पाकिस्तान जैसी स्थिति में नहीं है उसकी समाधि स्थल खडंहर जैसी स्थिति में है। क्योकि हिन्दुओं को न 50 साल पहले की समझ है न 50 साल बाद की चिंता। 

हिन्दू पदपादशाही संस्थापक अजेय योद्धा 
श्रीमंत पेशवा बाजीराव
 शत शत नमन

हर हर महादेव

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