राष्ट्रवाद ( Nationalism ) बनाम (Vs ) क्षेत्रवाद ( Regionalisn ) :

 
👉 पूरे विश्व में वैचारिक स्तर पर कई वाद हैं, जिनके भिन्न - भिन्न समूह है अर्थात वैचारिक स्तर पर कई भिन्नताएं हैं । ये भिन्नताएं व्यक्तिगत तौर पर और राष्ट्रीय तौर पर जीवन - स्तर को प्रभावित करती हैं ।

👉 इसी तरह हमारे देश भारत में वैचारिक स्तर पर कई तरह के वाद हैं और इस आधार पर भारत में वैचारिक स्तर पर नागरिकों के कई समूह हैं , जिनमें कई भिन्नताएं हैं । ऊपर की तरह भारत के नागरिकों के जीवन को व्यक्तिगत तौर पर और राष्ट्रीय तौर पर प्रभावित करते हैं ।

👉पर अगर हम राजनैतिक स्तर (Political Level ) पर देखें तो भारत की राजनीति को मोटे तौर पर दो विचारधाराएं प्रभावित करती हैं --- राष्ट्रवाद और क्षेत्रवाद ।

👉 राष्ट्रवाद जहां विस्तृत आयाम (Broad Dimension ) रखता है, वहीं क्षेत्रवाद संकुचित आयाम ( Narrow Dimension ) रखता है।
 
👉राष्ट्रवाद जहां कल कल करती बहती नदी की तरह है , जिसमें सदैव स्वच्छ जल प्रवाहित होता है , वहींं क्षेत्रवाद बरसाती ताल - तलैये की तरह है , जो बरसात के मौसम में पानी से भर जाता है, जिसमें ठहरा हुआ गंदा पानी जमा होता है और फिर गर्मी के मौसम में सूख जाता है ।

👉 सम्पूर्ण राष्ट्र के हित के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करना सच्चा राष्ट्रवाद है , तो वहीं अपने क्षुद्र स्वार्थों के लिए राष्ट्र के विरुद्ध एक क्षेत्र के विकास के लिए प्रयास करना क्षेत्रवाद है ।

👉 राष्ट्रवाद जहां एक स्वस्थ और खुली मानसिकता ( Healthy And Open Mentality ) का द्योतक हैं, वहीं क्षेत्रवाद एक कुंठित और रुग्ण मानसिकता ( Frustrated And Diseased Mentality ) का द्योतक है ।

👉 सही अर्थों में क्षेत्रवाद एक घातक मासिकता ( Lethal Mentality ) है , जो बहुतायत मौकों पर राष्ट्रवाद के विरुद्ध खड़ी होती है ।

👉राष्ट्रवादी विचारधारा जहां समूचे राष्ट्र को देखकर अपने विकास का रोडमैप तैयार करती है तो वहीं क्षेत्रवादी विचारधारा जनमानस की कुंठा को उभाड़कर अपना राजनैतिक हित साधती है । कई बार ऐसा देखने को मिला है कि क्षेत्रवादी राजनैतिक पार्टियां देशहित से अलग मुद्दों पर संगठित होकर राष्ट्रवादी राजनैतिक पार्टियों पर हावी होने की कोशिश करती हैं ।

👉माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जैसे दिग्गज राष्ट्रवादी नेता को कई क्षेत्रवादी राजनैतिक दलों के निम्न स्वार्थ के आगे घुटने टेकने पड़े थे ।

👉 राष्ट्रवाद की योजनाएं अधूरी पड़ी रहीं ।

👉प्रायः प्रदेश - स्तर की सरकार को राष्ट्र - स्तर की सरकार द्वारा खींचे गए मानचित्र के अनुसार चलना चाहिए , लेकिन अगर प्रदेश - स्तर पर कोई क्षेत्रीय दल होता है , जो राष्ट्रीय दल से भिन्न होता है, तो वह प्रभावी होने पर ( संख्या बल अपेक्षाकृत अधिक होने पर ) राष्ट्रीय स्तर की पार्टियों से बेमेल सौदेबाजी करना शुरू कर देता है। 
 
👉पूर्व में क्षेत्रीय दलों द्वारा राष्ट्रीय दलों से सौदेबाजी करने के कई मामले आए हैं ।

👉 भारत में कुकुरमुत्तों की तरह हर वर्ष कुछ नई राजनैतिक पार्टियां बनती है और जनता इन पार्टियों के लोक - लुभावन वादे के झांसे में आकर लोकतंत्र को कमजोर करती हैं ।

👉 अंततः जब तक ये क्षेत्रीय पार्टियां जीवित रहेंगी, तब तक राष्ट्रीय पार्टियां अपेक्षित विकास नहीं कर पाएंगी ।

👉क्षेत्रीय स्तर पर राजनैतिक पार्टियां कितनी भी हों, पर वो या तो सत्तापक्ष के साथ या विपक्ष में रहकर पांच वर्षों तक जनहित का कार्य निर्बाध रूप से करे , अन्यथा ये क्षेत्रीय पार्टियां सदा सिरदर्द बनी रहेंगी ।

👉अंततः निवेदन है कि राष्ट्र के सच्चे विकास के लिए सदैव राष्ट्रीय पार्टी का साथ दें ।
------------------------------------------- निवेदक : एक सनातनी राष्ट्रवादी चिंतक नीरज । 🙏

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