सनातन धर्म क्या है ? जानने के लिए पढ़ें पूरा आलेख

👉विश्व का एकमात्र धर्म है --- सनातन , जो पूर्णतया प्राकृतिक नियमों पर आधारित , पर्यावरण के अनुकूल , वैज्ञानिक तथ्यों को समावेशित किया हुआ और मानवीय मूल्यों से परिपूर्ण है , जिसका अंतिम उद्देश्य प्राणिमात्र का कल्याण करना और चेतना को उच्चतम आयाम तक पहुंचाना है । " विश्व - बंधुत्व " और " सर्वे भवन्तु सुखिन: " इस वैश्विक कल्याण की विचारधारा की मूल अवधारणा हैं , मूलमंत्र हैं ।

👉 चेतना की स्वच्छंदता नहीं बल्कि स्वतंत्रता इसका थीम है । आयु , लिंग , रंग - रूप , कद - काठी से अप्रभावित यह मौलिक रूप से कर्मों पर आधारित है । सेवा की भावना इसका सर्वस्व है ।

👉इसके उलट पूरी दुनिया में कहे जाने वाले अन्य धर्म , धर्म ना होकर संकुचित विचारधाराएं हैं , अतः ये सम्प्रदाय - विशेष हैं , जो किसी विशिष्ट उद्देश्य ,उदाहरण के लिए एक - दूसरे पर शासन करने के लिए , बौद्धिक और मानसिक स्तर पर एक - दूसरे को गुलाम बनाने के लिए , अपनी तानाशाही को दूसरे पर जबरदस्ती थोपने इत्यादि के लिए हैं ।

👉धर्म , विशेषकर सनातन में चमत्कार नाम की कोई बाहरी अवधारणा नहीं है , क्योंकि अगर आप प्रकृति और जीवन को समझने की कोशिश करेंगे तो यह इतना बहुआयामी है कि पहले तो यह अबूझ पहेली की तरह महसूस होगा और जब थोड़ी बातें समझ में आएंगी तो पता चलेगा कि यह पूरी तरह से चमत्कार नहीं तो और क्या है ? पूर्णतया वैज्ञानिक नियमों का अक्षरशः पालन हुआ है । 

👉सनातन , जो वर्तमान जीवन के साथ - साथ इस जीवन से पूर्व और इस जीवन के पश्चात की अंतर्वीक्षा करता है , के वास्तविक अध्ययन के बाद इसके भीतर छिपे चमत्कारों का रहस्योद्घाटन करता है । वास्तव में वैश्विक चेतना से एकाकार होंकर जीवन जीने की कला का नाम है -- सनातन ।

👉पर जैसा होता आया है कि वैचारिक प्रदूषण का असर सामूहिक रूप से होता है , अन्य संप्रदायों का मिथ्या - चमत्कार की अवधारणा ने अंशतः प्रभावित किया , धर्मज्ञ उस लपेटे में आ गए और पाखण्ड और मिथ्या - कर्म के प्रभाव ने धीरे - धीरे सनातन को अपने सूक्ष्म आवरण में ले लिया । विभिन्न तरह के अलगाववादी सोच से सनातन के अनुयायी भी प्रभावित हुए । बाद के कालखण्ड में लोगों ने उस प्रदूषित विचारधारा से आच्छादित सनातन और अन्य संकुचित साम्प्रदायिक विचारधारा को एक जैसा धर्म समझा , जबकि मौलिक रूप से सनातन जीवन - पद्धति है और अन्य विचारधाराएं संकुचित साम्प्रदायिक सोच । अब अगर " धर्म " जो सम्पूर्ण विश्व के लिए एक है , को अन्य
" साम्प्रदायिक विचारधारा " के समतुल्य माना जाए , तो कैसे धर्म को लोकतन्त्र में जगह मिलती ? यहां तो " धर्म " को ही नहीं समझा गया । विडंबना यह है कि " धर्म " और " संप्रदाय " को एक समझा गया और यह आजतक जारी है । 

👉वास्तव में अगर सनातन की सोच को व्यापक और स्पष्ट रूप से मैराथन लाइव डिबेट के माध्यम पूरी दुनिया के तथाकथित संप्रदाय के संवाहकों , राजनेताओं , न्यायविदों और विचारकों के बीच परोसा जाए तो अन्तिम निष्कर्ष के रूप में 
" धर्म " अर्थात " सनातन " लोकतन्त्र का अपरिहार्य घटक बन जाएगा ।

डॉ नीरज जी ।🚩🚩

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