क्या सच में सती प्रथा थी ? जानने के लिए पढ़ें पूरा आलेख

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      सती प्रथा अर्थात् एक ऐसी प्रथा , जिसमें विधवा होने पर सामान्यतः स्त्रियाँ स्वेच्छा से अपने मृत पति के साथ चिता में जल जाती थीं अथवा उनकी इच्छा न होने पर समाज और परिवारजनों द्वारा जबरन जला दी जाती थीं ।

      वास्तव में सतीप्रथा जैसी कोई प्रथा भारतवर्ष में कभी रही ही नहीं । लोग माद्री के सती होने का उदाहरण देते हैं । माद्री इस अपराध-बोध के कारण कि उसके कारण ही पाण्डु की मृत्यु हुई है , पाण्डु के साथ चिता पर आरूढ़ हो गयी थी । माद्री का उदाहरण देने वाले भूल जाते हैं कि कुरुकुल की अन्य स्त्रियाँ - सत्यवती , अम्बिका , अम्बालिका , कुन्ती इत्यादि कोई स्त्रियाँ सती नहीं हुई थीं । इसके एक युग पहले भी दशरथ की कोई पत्नियाँ सती नहीं हुई थी ।

      पुराने प्रसंगों को छोड़िए , इसे वर्तमान काल में देखते हैं । मेरे बाबा १९०० ई. में पैदा हुए थे । सतीप्रथा को पढ़ते समय मेरे बालमन पर भी इसका अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था । तब मैंने बाबा से इसके बारे में पूछा भी था । बाबा इसे ठीक से समझ भी नहीं पाये थे , बाद में कथित सती प्रथा के बारे में समझकर उन्होंने कहा था - "हमारे पूरे क्षेत्र में मैंने तो ऐसा कभी सुना नहीं , न ही मेरे पूर्वजों ने कभी ऐसा कहा ।" यहाँ यह उल्लेखनीय है कि ऐसी असामान्य घटनाएँ किंवदन्तियाँ बन जाया करती हैं ।

      आप भी अपने यहाँ के बड़े-बूढ़ों को पूछिए । ऐसी घटनाओं के प्रमाण स्वयं ही चीख-चीखकर अपने बारे में बताते हैं । गाँवों में ३००-४०० वर्षों का इतिहास जानने वाले अनेकानेक लोग मिलेंगे । देखिए कि आपके क्षेत्र में पिछले ३००-४०० वर्षों में कितने प्रतिशत स्त्रियाँ सती हुई हैं या जबरन सती की गयी हैं । मैं दावे के साथ कह रहा हूँ कि सामान्यतः ऐसी घटनाएँ मिलेंगी ही नहीं और यदि किसी निजी कारण से सती होने वाली घटना मिल भी गयी , तो उनके क्या कारण थे और इतने वर्षों में उसका प्रतिशत क्या होगा ? किन्हीं कारणों से करोड़ों में से एक स्त्री के सती होने को #सती_प्रथा तो नहीं कहा जा सकता ।

      यदि १% लोगों ने कभी किसी कारण से अपनी पत्नी की पिटाई की हो , तो क्या इसे पत्नी पीटने की प्रथा कह इसे प्रचारित किया जाएगा ? यदि ५०% लोग शराब पीते हों , तो क्या इसे समाज में शराब पीने की प्रथा कहा जाएगा ? ...............

      यह हिन्दुओं के आत्माभिमान को चोट पहुँचाने के लिये गढ़ा गया एक षड्यंत्र मात्र है । ऐसी प्रथाओं के बारे में पढ़कर हिन्दुओं का सिर सदा के लिये झुक जाता है , जो षड्यंत्रकारियों का अभीष्ट है । हमारे गौरवशाली इतिहास से किसी एक घटना को आधार बनाकर एक ऐसी कल्पित प्रथा को जन्म दे देना और उसे हिन्दुओं के साथ जोड़ देना , हमारे लिये सर्वथा अपमानजनक है ।

      सती प्रथा के विरुद्ध संघर्ष करना और सती प्रथा को समाप्त करवाने का श्रेय लेना - यह कुछ ऐसा ही है , जैसा मैं प्रायः ही स्वप्न में घूँसा मारकर बड़ा-बड़ा पहाड़ तोड़ा करता हूँ । मैं सभी सनातनियों से अपनी परम्परा और इतिहास पर गर्व करने की प्रार्थना करता हूँ और संदेश होता हूँ कि मत झेंपिए , ऐसी कल्पित प्रथा के बारे में सुनकर ; मत व्यथित होइए , ऐसी कल्पित कथा के बारे में जानकर । आप अमृत-पुत्र हैं , आप अमृत-पुत्र ही रहेंगे ।

      नोट : माद्री के भी सती होने का उल्लेख नहीं है , सती शब्द का ही उल्लेख नहीं है , माद्री चिन्तातिरेक में चितारोहण कर गयी । यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि उस समय वहाँ उपस्थित तपस्वियों और ब्राह्मणों ने उन्हें ऐसा करने से रोकने का बहुत प्रयास किया था । यदि ऐसी कोई प्रथा रही होती , तो सम्भवतः वे इतने आग्रहपूर्वक मना न करते ।

      ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्थी , २०८१

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