पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति JFK के भतीजे रोबर्ट कैनेडी जूनियर ने क्या कहा जानने के लिए पढ़ें पूरा आलेख

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति JFK के भतीजे रोबर्ट कैनेडी जूनियर ने कहा है कि मेरे अंकल को सीआईए ने मरवा दिया था क्योंकि वो अमेरिका की वॉर पॉलिसी के बीच मे आ रहे थे। आजकल रॉबर्ट अमेरिकी राष्ट्रपति की दावेदारी कर रहा है और लोगों से बातचीत कर रहा है कि कैसे अमेरिका दूसरे देशों में युद्ध करवाता है।

इसका ताजा उदाहरण सूडान है जहां गृहयुद्ध चल रहा है लोकतंत्र बचाने के नाम पर और वहां की मिलिट्री और उसकी पैरा मिलिट्री आपस मे जंग कर रही है।

अमेरिका का अपना एक मिलिट्री इंडस्ट्रियल कॉम्प्लेक्स है। सीआईए इसी के लिए काम करता है। इसको आप डीप स्टेट के नाम से भी जानते हैं और जो लोग इल्युमिनाटी से परिचित होंगे ये उसी का मिलिट्री कॉम्प्लेक्स है।

अमेरिका जिसे हम एक देश समझते हैं ये कॉम्प्लेक्स उसकी सरकार के अधीन नही आता। ये वैसे ही है जैसे अमेरिका का फेडरल बैंक है वो भी अमेरिकी सरकार के अधीन नही है। ऐसे ही जिसे आप वर्ल्ड बैंक, IMF, UN के नाम से जानते हैं वो इसी डीप स्टेट का है। नाटो जो दिखता है कि अमेरिका के पिछलग्गू यूरोपियन देश हैं वो भी अमेरिकी सरकार के पिछलग्गू नही बल्कि इस डीप स्टेट के हैं। डॉलर जिससे पूरी दुनिया चलती है वो इन्ही का है जिस वजह से OPEC देश (तेल वाले देश) वो भी इसी का हिस्सा हैं। इसी तरह जो फार्मा इंडस्ट्री पूरे अमेरिका और यूरोप की हैं वो भी अपने अपने देशों की नहीं बल्कि इस डीप स्टेट की है। आप अक्सर देखते होंगे बिल गेट्स को यहां वहां के देशों में घूमते। भारत भी आता रहता है। वो कोई फिलॉन्थोपिस्ट नही जो गरीब देशों में दान कर्म करने जाता है बल्कि वो फार्मा इंडस्ट्री का नुमाइंदा है जो विशेषतः वैक्सीन से जुड़ी फार्मा लॉबी के लिए मार्केट करने या गरीब देशों में नई वैक्सीन के लिए गिनी पिग ढूंढने का काम करता है।

इस तरह आप समझ सकते हैं कि आर्म, आयल और फार्मा लॉबी जो डीप स्टेट(इल्युमिनाटी) के तीन सर हैं उनका चेहरा भर है ये अमेरिका नामक देश जहां की सरकारें इनकी कठपुतली भर होती है। 

हमें यह भी बहुत बड़ी गलतफहमी है कि अमेरिका लोकतांत्रिक देश है। दरअसल इतना बूथ कैप्चरिंग तो भारत में नही हुआ होगा जितना अमेरिकी इलेक्शन में धांधली होती है। वहां ये लॉबी अपने हिसाब का राष्ट्रपति लाती है और यदि ये दिखता है कि इनका चुना हुआ चेहरा उतना पॉपुलर नही है और दूसरे की जीत की गुंजाइश है तो पूरी कोशिश होती है कि चुनाव में धांधली कराइ जाए। फिर भी अगर दूसरा जीत जाता है तो उसके पीछे सीआईए लगा दी जाती है जो ये तय करवाती है कि अमेरिका की पालिसी क्या बनेगी। इसके बाद भी यदि वो अपनी चलाता है तो JFK की तरह उसकी हत्या से लेकर ट्रम्प की तरह उसके खिलाफ BLM करवा उसे अनपॉपुलर करवाया जाता है और तब भी वो नही हार रहा तो चुनाव में धांधली कराई जाती है। और ये काम उसके साथ भी होता है जो इनका चुना हो मगर बाद में इनके कहने पर चलने से मुकर जाए।

आपको याद भी होगा कि ट्रम्प के पिछले चुनाव के समय 1 महीने तक रिजल्ट घोषित न हो सका क्योंकि जगह जगह यही आरोप लग रहे थे कि हमारे वोट कम किये गए हैं। यहां तक कि ट्रम्प के समर्थक कैपिटल हिल में चढ़ दौड़े थे कि चुनाव फ्री एंड फेयर नही हुए। ऐसा ही कुछ तब भी देखने को मिला था जब ब्रिटेन से स्कॉटलैंड को अलग करने को चुनाव हुए थे लेकिन धांधली कर घोषित कर दिया गया कि स्कॉटलैंड आजाद नही होना चाहता। अब वहां फिर से स्कॉटलैंड को अलग करने के लिए चुनाव की बात शुरू हो गयी है जब से नया स्कोटलैंड का प्रीमियर जीता है।

इसी वजह से आप देखेंगे कि ट्रम्प दोबारा न खड़ा हो सके तो उसके लिए उसपर एक पोर्नस्टार से हश मनी का केस लगवा दिया और उसे जेल भेजने की कोशिश हुई। न्यूयॉर्क का DA जो सोरोस के पैसे से अटॉर्नी बना है उसने इसमें जी जान लगा दी है कि ट्रम्प पर चार्जेस लग जाएं ताकि वो गिल्टी होकर कभी चुनाव न लड़ सके। कोई नही कह सकता कि जो ग्रैंड ज्यूरी बैठेगी उसमें इनके कितने आदमी होंगे जो ट्रम्प के खिलाफ फैसला देंगे? सोरोस के लड़के के वाइट हाउस में दर्जन भर से ज्यादा चक्कर लग चुके हैं और बाइडन से मुलाकातें हो चुकी हैं जो साफ दिखाता है कि डीप स्टेट किस तरह राष्ट्रपति को आदेश देता है।

बेसिकली डेमोक्रेट्स जो हैं वो इस डीप स्टेट के ज्यादा करीबी हैं बजाय रिपब्लिकंस के। बाइडन हो, हिलैरी हो या ओबामा ये सब डीप स्टेट का आर्डर फॉलो करने में कोई IF BUT नही करते। वहीं ट्रम्प जैसे जो होते हैं वो कुछ भी करने से पहले ये सवाल करने लग जाते हैं कि इससे अमेरिका की जनता का क्या फायदा होने वाला है?

यही वजह थी कि ट्रम्प के चार साल में एक बार भी उसने किसी देश मे बम नही गिरवाये जबकि बराक हुसैन ओबामा पहला मुस्लिम ब्लैक अमेरिकन कितने मुस्लिम देशों में बम गिरा गया इसकी गिनती उसे पता भी नही होगी।

इसीलिए इसी डीप स्टेट ने साजिश के तहत ये नियम बनाया था कि अमेरिका का कोई भी राष्ट्रपति दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति नही बन सकता क्योंकि यदि कोई मोस्ट पॉपुलर व्यक्ति सत्ता में आ गया जो 20-30 साल तक हारे ही नही तो डीप स्टेट का सारा गेम प्लान खराब हो जाएगा और जरूरी नही कि हर बार हत्या या हिंसा करवाकर सफलता मिले ही मिले और अमेरिका में गृहयुद्ध करवाना उतना अच्छा मैसेज दुनिया मे देगा नही जितना आसान दूसरे देशों में होता है जैसे आजकल सूडान, उससे पहले अफगानिस्तान, इराक, लीबिया, सीरिया आदि में किया गया है।

तो इस तरह अमेरिका नामक देश के चेहरे का इस्तेमाल करकर डीप स्टेट काम करता है। इसकी तीन प्रमुख लॉबी होती हैं जैसे बताया है।

आर्म जिसे मिलिट्री इंडस्ट्रियल कॉम्प्लेक्स चलाता है जो इतना लालची और युद्ध बेचने वाला है कि खुद के देश मे भी गन कल्चर खत्म नही होने देना चाहता। दूसरा है आयल जिसे OPEC चलाता है जिसके तहत मिडिल ईस्ट से लेकर अन्य देश आते हैं। और तीसरा है फार्मा लॉबी जो मुख्यतः UN के अंडर काम करती है और गरीबी, भुखमरी, महामारी, बीमारी, कुपोषण आदि के नाम से अपना धंधा चलाती है।

UN इनका वो मुखौटा है जो बना ही इसलिए था कि जो काम 1945 से पहले सीधे दूसरे देशों में उतरकर करने पड़े थे उन्हें अब दूसरी तरीके से किया जाए। और इसमें सबसे मुख्य है किसी भी देश को अपने खेमे में करना और उसके लिए सबसे मुख्य चीज है उस देश की सत्ता को कंट्रोल करना और ऐसा नही होने पर अंततः रिजीम चेंज करना।

UN इसके लिए ह्यूमन राइट्स की आड़ लेता है, लोकतंत्र बचाने की आड़ लेता है, शिक्षा से लेकर गरीबी के नाम पर NGO उस देश मे चलाता है, स्वास्थ्य से लेकर भोजन के नाम पर सरकारी सहायता(AID) के काम करता है। अपने लोगों को ज्यूडिशरी, अकेडमिया, मीडिया में भरता है। यही लोग आतंकी संगठनों को भी फाइनेंस करते हैं। अब इनका नया हथियार सोशल मीडिया भी है।

इसके बाद ये तीन उस देश को प्रभावित करने को 3M का सहारा लेते हैं। मूवी, मीडिया और मिलिट्री।

मूवी इंडस्ट्री से ऐसी फिल्में आएंगी जो बताएंगी कि दुनिया का रक्षक जो है वो अमेरिका है। मीडिया ये बताएगी कि दुनिया मे बुरे सिर्फ एन्टी अमेरिका वाले लोग हैं। फिर मिलिट्री ये बताएगी कि फलां देश आतंक से पीड़ित है या मानवता का दुश्मन है जो या तो तानाशाही कर रहा है या फिर ऐसे हथियार बना रहा है जो मानवता पर खतरा हैं।

इन सबको बैकिंग देता है 4th M यानि मनी जो दुनिया की एक है और उसका नाम है डॉलर। ये डीप स्टेट का है नाकि किसी अमेरिकी सरकार का तो ट्रिलियन्स डॉलर फूँकने में भी इन्हें टेंशन नही होती। ये तो खुद अमेरिकी सरकार को भी कर्ज देते हैं देश चलाने को। कभी सोचा कि अगर डॉलर अमेरिका का है तो अमरीकी सरकार पर 32 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज किसका है जो उन्हें चुकाना है?

क्योंकि अमेरिका भी उसी तरह इनसे उधार लेता है जैसे अन्य देश। जब भी दुनिया मे संकट आता है तो इन्हें उल्टा खुशी होती है क्योंकि डॉलर इंडेक्स मजबूत होता है और इनकी चांदी होती है डॉलर के मजबूत होने से और दुनिया की मुद्राओं के डॉलर के मुकाबले कमजोर होने से। इनके हथियार से लेकर आयल और फार्मा वाले सबसे ज्यादा किसी संकट से ही कमाते हैं।

लेकिन ये ऐसे संकट को ज्यादा दिन टिकने देना इसलिए नही चाहते कि ऐसी परिस्थिति में फिर दुनिया दूसरे रास्ते अपनाने लगती है। जैसे इस समय हो रहा है जब डॉलर पर संकट आने लगा है और दुनिया अल्टरनेटिव करेंसी की ओर देखने लगी है।

दुनिया अब बाइपोलर से मल्टीपोलर की बात करने लगी है। BRICKS जैसे संगठन G7 को आंखे दिखाने लगे हैं। NATO के अंदर बगावत चल रही है। ग्लोबल साउथ की बात हो चुकी है जिसका मकसद ही सारे कथित थर्ड वर्ल्ड कंट्री को एक साथ लाना है।

अमेरिका ने यूक्रेन को उकसाया रूस के खिलाफ जबकि रूस की मांग ये थी कि मेरी सीमा में NATO न आकर बैठे। जर्मनी जिसकी गैस पाइपलाइन नॉर्दस्ट्रीम थी, तोड़ डाली और रूस पर उंगली उठा दी। बाद में पता चला कि ये अमेरिका ने किया तो कहा कि ये काम तो प्रो यूक्रेनियन लोगों का था। इस वजह से यूरोप में एनर्जी संकट आ गया। बाद में खुलासे हुए कि अमेरिका यूक्रेन के लिए इतना क्यों मचल रहा तो अमेरिका ने यूक्रेन में चुपचाप 30 से ज्यादा जैविक लैब बना रखी हैं। परमाणु संयंत्र के नाम पर अमेरिका यूक्रेन में अपने न्यूक्लियर बेस बना रहा है। इसके बाद उसे NATO में शामिल करने का प्लान था ताकि अमेरिकी सेना रूस के बॉर्डर पर हर तरह के हथियार के साथ बैठ जाये।

इसी से जर्मनी चिढ़ गया पर जर्मनी की 1945 से ही संधि है कि युद्ध मामलों में वो अमेरिका पर निर्भर रहेगा, तो ज्यादा कुछ नही बोला। लेकिन फ्रांस ने इसपर उंगली उठा दी कि तुम क्यों जबरदस्ती दुनिया को युद्ध की तरफ धकेल रहे हो तो जिस मैक्रो को पपेट बना वहां बिठाया था उसके खिलाफ एक टुच्चे से पेंशन बिल के नाम पर जनता सड़क पर करवा दी ये वार्निंग

देते हुए कि हमारे खिलाफ गया तो हम रिजीम चेंज करवाने का दम भी रखते हैं।

इजरायल जो बना ही इसलिए था कि मिडिल ईस्ट में इनका बफर स्टेट बने जैसे पाकिस्तान रूस और भारत के बीच मे बना था, उसने जब मिडिल ईस्ट में शांति की बात करने की कोशिश की तो वहां भी ज्यूडिशरी में दखलंदाजी के बहाने लोग सड़कों पर आ गए। वो कहता रहा कि इसके पीछे CIA है लेकिन किसी ने नही सुनी क्योंकि मीडिया तो इनके कंट्रोल में है जो रूस तक का पक्ष कभी दुनिया को जानने नही देती।

अमेरिका में वो जर्नलिस्ट या तो नौकरी से निकलवाये जा रहे हैं या जेल भेजे जा रहे हैं जो इन बातों को उठा रहे हैं।

बाकी मीडिया स्वतंत्रता की फिर इनसे जितनी बड़ी बड़ी बातें करवा लो।

हर देश को ये इसी तरह किसी न किसी बहाने धमकाते हैं। न मानने पर अपने लोग एक्टिव करवाते हैं। विक्टोरिया नुलन्द, जॉर्ज सोरोस इसी तरह के इनके प्यादे हैं जिनका काम उस देश के अंदर के लोग खरीद उस देश मे आंतरिक कलह शुरू करवानी होती है। इनके लोग तो उस देशों में दशको से NGO, मीडिया, ज्यूडिशरी, अकेडमिया, मूवी इंडस्ट्री आदि में बैठे ही होते हैं तो वो फिर अपने देश के अंदर एक्टिव हो जाते हैं। विपक्षी पार्टी जो सत्ता में आने के लिए तड़प रही होती है उससे ये लोग डील कर देते हैं कि हमारे पपेट बनकर रहोगे तो हम तुम्हे सत्ता में बिठा देंगे।

भारत के मामले की बात करें तो पहले ब्रिटिश यहां डायरेक्ट ही थे। उनके जाने के बाद यहां रूस ने इसी तरह की घुसपैठ की। जो इनकी नही मानते थे उनकी हत्या यहां आम थी। फिर वो प्रधानमंत्री हो, न्यूक्लियर साइंटिस्ट हों, स्पेस साइंटिस्ट हों, अन्य पोलिटीशयन हों या कोई और...

1990 तक KGB का यहां ज्यादा प्रभाव रहा। सीआईए और उसकी ब्रांच ISI ने यहां रूसी समर्थक सरकारों के खिलाफ बहुत आंदोलन भी करवाये। यहां तक कि KGB की गलतियों को भुना उनके ही लोग फिर अपने कंट्रोल में लिए जैसे खलिस्तान हो या लिट्टे... पर KGB यहां फिर भी भारी ही पड़ा रहा सीआईए पर।

बाद में जब सोवियत संघ टूट गया तो KGB कमजोर हो गयी और उसकी जगह सीआईए आ गयी। तब से डीप स्टेट सीआईए के माध्यम से यहां की सरकारों को कंट्रोल करता है लेकिन जब भी कोई ऐसी सरकार यहां आती है जो इनके कहने पर काम नही करती तो उसके खिलाफ रिजीम चेंज का काम शुरू हो जाता है। उसके लिए उसके पास कौन कौन से असेट्स हैं ये दोहराने की जरूरत नही है।
लोकतंत्र deep state का सबसे बड़ा हथियार है क्योंकि लोकतंत्र में किसी देश को नियंत्रित करना बहुत आसान है

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