जयचंद्र गहरवार : भारतवर्ष का ऐसा महान राजा , जो अफवाहों का शिकार कैसे हुआ जानने के लिए पढ़ें पूरा आलेख
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महाराज जयचंद_गहरवार की सत्य जानकारी -
जयचन्द्र (जयचन्द), महाराज विजयचन्द्र के पुत्र थे।
ये कन्नौज के राजा थे। जयचन्द का राज्याभिषेक वि.सं. १२२६ आषाढ शुक्ल ६ (ई.स. ११७० जून) को हुआ। राजा जयचन्द पराक्रमी शासक था। उसकी विशाल सैन्य वाहिनी सदैव विचरण करती रहती थी, इसलिए उसे
" दळ_पंगुळ " भी कहा जाता है।
इसका गुणगान पृथ्वीराज रासो में भी हुआ है।
राजशेखर सूरि ने अपने प्रबन्ध-कोश में कहा है कि काशीराज जयचन्द्र विजेता थे ,और गंगा-यमुना दोआब तो उसका विशेष रूप से अधिकृत प्रदेश था।
नयनचन्द्र ने रम्भामंजरी में जयचन्द को #यवनों_का_नाश करने वाला कहा है।
युद्धप्रिय होने के कारण इन्होंने अपनी सैन्य शक्ति ऐसी बढ़ाई की वह #अद्वितीय हो गई, जिससे जयचन्द को #दळ_पंगुळ' की उपाधि से जाना जाने लगा।
जब ये युवराज थे तभी अपने पराक्रम से कालिंजर के चन्देल राजा #मदन_वर्मा को परास्त किया। राजा बनने के बाद अनेकों विजय प्राप्त की।
जयचन्द ने सिन्धु नदी पर मुसलमानों (सुल्तान, गौर) से ऐसा घोर संग्राम किया कि #रक्त_के_प्रवाह से नदी का नील जल एकदम ऐसा लाल हुआ मानों अमावस्या की रात्रि में ऊषा का अरुणोदय हो गया हो (रासो)।
यवनेश्वर #सहाबुद्दीन_गौरी को जयचन्द्र ने कई बार रण में पछाड़ा (विद्यापति-पुरुष परीक्षा) ।
#रम्भामञ्जरी में भी कहा गया है कि #जयचन्द्र ने #यवनों का नाश किया।
उत्तर भारत में उसका विशाल राज्य था। उसने अणहिलवाड़ा (गुजरात) के शासक सिद्धराज को हराया था। अपनी राज्य सीमा को उत्तर से लेकर दक्षिण में नर्मदा के तट तक बढ़ाया था।
पूर्व में बंगाल के लक्ष्मणसेन के राज्य को छूती थी।
तराईन के युद्ध में सन् 1192 में गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को परास्त कर दिया था। इसके परिणाम स्वरूप दिल्ली और अजमेर पर मुसलमानों का आधिपत्य हो गया था।
यहाँ का शासन प्रबन्ध गौरी ने अपने मुख्य सेनापति ऐबक को सौंप दिया और स्वयं अपने देश चला गया था।
तराईन के युद्ध के बाद भारत में मुसलमानों का स्थायी राज्य बना। ऐबक गौरी का प्रतिनिधि बनकर यहाँ से शासन चलाने लगा।
इस युद्ध के दो वर्ष बाद सन् 1194 में गौरी दुबारा विशाल सेना लेकर भारत को जीतने के लिए आया।
इस बार उसका कन्नौज जीतने का इरादा था। कन्नौज उस समय सम्पन्न राज्य था। गौरी ने उत्तर भारत में अपने विजित इलाके को सुरक्षित रखने के अभिप्राय से यह आक्रमण किया।
वह जानता था कि बिना शक्तिशाली कन्नौज राज्य को अधीन किए भारत में उसकी सत्ता कायम न रह सकेगी ।और 2 बार महाराजा जय चन्द्र जी से हार हुआ गौरी अपना बदला भी लेना चाहता था !
फिर तराईन के युद्ध के दो वर्ष बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने जयचन्द पर चढ़ाई की। सुल्तान शहाबुद्दीन रास्ते में पचास हजार सेना के साथ आ मिला। और दोनो सेनाये आपस मे मिल गई , मुस्लिम आक्रमण की सूचना मिलने पर जयचन्द जी भी अपनी सेना के साथ युद्धक्षेत्र में आ गये ।
दोनों के बीच इटावा के पास ‘चन्दावर नामक स्थान पर मुकाबला हुआ। युद्ध में राजा जयचन्द हाथी पर बैठकर सेना का संचालन करने लगे ।
इस युद्ध में #जयचन्द की #पूरी_सेना नहीं थी। सेनाएँ विभिन्न क्षेत्रों में थी, जयचन्द के पास उस समय थोड़ी सी सेना थी। महाराजा जय चन्द्र जी की और सेना सीमा पर टुकडी टुकडी रूप मे भ्रमण कर रही थी !
महाराजा जय चन्द्र जी की सेना बहुत कम होने पर भी भीषण संग्राम हुआ , महाराजा जय चन्द्र जी की सेना ने भीषण रक्तपात किया ! कि गौरी और ऐबक व उनके सैनिको के पसीने छूट गये !
गौरी की सारी सेना सहम गई और गौरी समझ मे युध्दनिती से लडते हुये महाराजा जय चन्द्र जी को नही हराया जा सकता !
अतः छल से किसी ने जयचन्द महाराज के आँख में छिपकर एक तीर मार दिया , जिससे वह लडने मे असमर्थ हो गये और उनका प्राणान्त हो गया !!
युद्ध में गौरी की विजय हुई। यह युद्ध वि.सं. १२५० (ई.स. ११९४) को हुआ था।
जयचन्द पर देशद्रोही का आरोप लगाया जाता है। कहा जाता है कि उसने पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए गौरी को भारत बुलाया और उसे सैनिक संहायता भी दी। वस्तुत: ये आरोप निराधार हैं। ऐसे कोई प्रमाण नहीं हैं जिससे पता लगे कि जयचन्द ने गौरी की सहायता की थी।
#NotE - गौरी को बुलाने वाले देशद्रोही तो दूसरे ही थे, जिनके नाम #पृथ्वीराज_रासो में अंकित हैं। 👈
इतिहासकारो का यह मत है कि संयोगिता प्रकरण में पृथ्वीराज और महाराजा जयचन्द्र जी के बीच हुये युद्ध मे महाराजा जयचन्द्र जी के 20 सामंत / विशिष्ट योद्धा मारे गये थे !
जबकि पृथ्वीराज चौहान जी के मुख्य-मुख्य 40 सामंत / मुख्य सेनापति मारे जा चुके थे।
इन लोगों ने गुप्त रूप से गौरी को समाचार दिया कि पृथ्वीराज के प्रमुख सामन्त अब नहीं रहे, यही मौका है।
तब भी गौरी को विश्वास नहीं हुआ, उसने अपने दूत फकीरों के भेष में दिल्ली भेजे। ये लोग इन्हीं लोगों के पास गुप्त रूप से रहे थे। इन्होंने जाकर गौरी को सूचना दी, तब जाकर गौरी ने पृथ्वीराज पर आक्रमण किया था।
👉 ये_थे_गद्दार गौरी को भेद देने वाले 👇
1. नीतिराव खत्री ( सिन्धी )
2. प्रतापसिंह जैन ( पूँजीपति )
3. माधो भट्ट ( ब्राह्मण )
4. धर्मायन कायस्थ ( कायस्थ )
जो तँवरो के कवि (बंदीजन) और अधिकारी थे
( #पृथ्वीराज_रासो-उदयपुर संस्करण)।
कोई भी ईतिहासकार यह नही मानता कि महाराजा जयचंद्र गद्दार है !!
सभी ईतिहासो का यही कहना है कि महाराजा जयचंद एक प्रतापी धर्मपरायण महाराजा थे!!
कुछ ईतिहासकारो के प्रमाणित कथन दे रहा हूं ...प्रमाण के स्वरुप 👇👇
प्रमाण कि पृथ्वीराज चौहान के साथ हुयी गद्दारी मे यवनो का नाश करने वाले महाराजा जयचंद जी का कोई वास्ता नही था ...👇👇
डॉ. आर.सी. #मजूमदार का मत है कि इस कथन में कोई सत्यता नहीं है कि महाराज जयचंद ने पृथ्वीराज पर आक्रमण के लिए मुहम्मद गौरी को आमंन्त्रित किया हो
( एन्सेंट इण्डिया पृ. ३३६ डॉ. आर.सी. मजूमदार) |
अपनी एक अन्य पुस्तक में भी इन्ही विद्वान ईतिहासकार ने निमंत्रण की बात का खण्डन किया है |
जे. सी. #पॉवेल प्राइस महोदय - का स्पष्ट मत है कि यह बात आधारहीन है कि महाराज जयचंद ने
गौरी को पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया |
( #हिस्ट्री_ऑफ_इण्डिया ) में जानेमाने ईतिहासकार और संस्कृत विद्वान डॉ. #रामशंकर_त्रिपाठी का कथन है कि जयचंद पर यह आरोप सरासर असत्य है | और इन्होने माना है कि समकालीन मुसलमान ईतिहासकार इस बात पर पूर्णतया मौन है कि जयचंद ने ऐसा कोई निमंत्रण भेजा हो |
#श्री_महेन्द्रनाथ_मिश्र - जो कि एक अच्छे ईतिहासकार
है इन्होने भी जयचंद के विरूद्ध देश- द्रोहिता के आरोप
को असत्य माना है | और ये कहते कि उस समय के कपितय ग्रन्थ प्राप्य है किन्तु किसी में भी गौरी को बुलाकर आक्रमण करने जैसी बातों का उल्लेख नहीं मिलता |
वे ग्रन्थ है #पृथ्वीराज_विजय, #हम्मीर_महाकाव्य , #रम्भा_मञ्जरी तथा इनके अलावा उस समय के किसी भी #मुसलमान_लेखक ने इस आक्रमण के निमंत्रण सम्बन्धित कुछ भी नहीं लिखा |
और #इब्ने_नसीर_कृत #कामिल_उत्_तवारीख में भी स्पष्ट कहा गया है कि, यह बात कि जयचंद ने शहाबुद्दीन को पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया , यह नितान्त असत्य है |
समकालीन इतिहास में कही भी जयचन्द के बारे में उल्लेख नहीं है कि उसने गौरी की सहायता की हो।
यह सब आधुनिक इतिहास में कपोल कल्पित बातें हैं। जयचन्द का पृथ्वीराज से कोई वैमनस्य नहीं था।
कुछ ईतिहासकारो की यह धारणा है कि संयोगिता प्रकरण से जरूर वह थोड़ा कुपित हुआ था। उस समय पृथ्वीराज, जयचन्द की कृपा से ही बचा था।
संयोगिता हरण के समय जयचन्द ने अपनी सेना को आज्ञा दी थी कि इनको घेर लिया जाए। लगातार पाँच दिन तक पृथ्वीराज को दबाते रहे। पृथ्वीराज के प्रमुख प्रमुख सामन्त युद्ध में मारे जा चुके थे। पाँचवे दिन सेना ने घेरा और कड़ा कर दिया।
और पृथ्वी राज चौहान जी युध्द हार जाते है फिर महाराजा जयचन्द आगे बढ़ते है तभी संयोगिता बीच मे आकर पृथ्वी राज चौहान जी का बचाव करती है ।
और कहती है कि अगर पिता जी आज आपने पृथ्वीराज चौहान को मारा तो मै भी आत्महत्या कर लुंगी , फीर आज तक आपने हमे खुश रखा आज आप ऐसा नही कर सकते !
महाराजा जय चन्द्र जी ने विचार किया कि संयोगिता ने पृथ्वीराज का वरण किया है। अगर मैं इसे मार देता हूँ तो बड़ा अनर्थ होगा, बेटी विधवा हो जाएगी।
उसने सेना को घेरा तोड़ने का आदेश दिया, और पृथ्वी राज चौहान को जीवन दान दिया !!
और साथ मे यह वचन भी दिया कि जब तक जयचंद जिंदा है वह निर्भिक रहे कि इस राज्य से एक भी उनका विरोधी कभी नही होगा !!
उसके बाद कहीं जाकर पृथ्वीराज दिल्ली पहुँचा।
फिर जयचन्द ने अपने पुरोहित दिल्ली भेजे, जहाँ विधि-विधान से पृथ्वीराज और संयोगिता का विवाह सम्पन्न हुआ। और पृथ्वी राज चौहान जी की मृत्यु के पश्चात उनको कोई स्पर्श नही कर पाये इसलिये संयोगिता जी जौहर कर लिया था !
और सतीत्व की रक्षा किया था !!
लेकिन कुछ इतिहासकारो का यह मत है कि #संयोगिता_कोई_थी_ही_नही , संयोगिता नाम की महाराजा जयचन्द्र जी कोई बेटी नही थी !
इसका कोई भी तथ्य नही है , ईतिहासकार
डा ॰ #आनन्द_शर्मा पूरे ईतिहासकारो को खंगालने पर भी संयोगिता का कोई तथ्य ना मिलने पर इसे कपोल कल्पित कहानी बताया !
अब जब संयोगिता कोई थी ही नही फिर महाराजा जय चन्द्र जी और पृथ्वीराज चौहान जी में कैसी वैमनस्य!!
पृथ्वीराज चौहान और गौरी के युद्ध में महाराजा जयचन्द जी तटस्थ रहे थे । इस युद्ध में पृथ्वीराज ने उससे सहायता भी नहीं माँगी थी। पहले युद्ध में भी सहायता नहीं माँगी थी। अगर पृथ्वीराज सहायता माँगते तो जयचन्द सहायता जरूर करते ।
अगर जयचन्द और गौरी में मित्रता होती तो बाद में गौरी जयचन्द पर आक्रमण क्यों करता ?
अतः यह आरोप मिथ्या है। पृथ्वीराज रासो में यह बात कहीं नहीं कही गई कि जयचन्द ने गौरी को बुलाया था। इसी प्रकार समकालीन फारसी ग्रन्थों में भी इस बात का संकेत तक नहीं है कि जयचन्द ने गौरी को आमन्त्रित किया था। यह एक सुनी-सुनाई बात है जो एक रूढी बन गई !
कई सारे ईतिहासकारो ने पूरे तथ्यों सहित यह कहा है कि महाराजा जय चन्द्र जी एक धर्मपरायण देशभक्त महाराजा थे , उनके ऊपर लगे आरोपों का कोई आधार नही है , यह आरोप निराधार है !
उन ईतिहासकारो के नाम किताब का नाम पृष्ठ संख्या सहित प्रमाण के तौर पर -
1 - नयचन्द्र : रम्भामंजरी की प्रस्तावना !!
2 - Indian Antiquary, XI, (1886 A.D.), Page 6,
श्लोक 13-14 !!
3 - #भविष्यपुराण, प्रतिसर्ग पर्व, अध्याय 6 !!
4 - Dr. R. S. Tripathi : History of Kannauj,
Page 326 !!
5 - Dr. Roma Niyogi : History of Gaharwal
Dynasty, Page 107 !!
6 - J. H. Gense : History of India (1954 A.D.),
Page 102 !!
7 - John Briggs : Rise of the Mohomeden
Power in India (Tarikh-a-Farishta),
Vol. I, Page 170 !!
8 - डॉ. रामकुमार दीक्षित एवं कृष्णदत्त वाजपेयी :
कन्नौज, पृ. 15 !!
9 - Dr. R. C. Majumdar : Ancient Indian, Page
336 एवं An Advanced History of India,
Page 278 !!
10 - Dr. Roma Niyogi : History of Gaharwal
Dynasty, Page 112 !
11 - J. C. Powell-Price : History of India,
Page 114 !!
12 - Vincent Arthur Smith : Early History of
India, Page 403 !!
13 - डॉ. आनन्दस्वरूप मिश्र : कन्नौज का इतिहास,
पृ. 519-555 !!
14 - डाॅ. आनन्द शर्मा : अमृत पुत्र, पृ. viii-xii !!
15 - डाॅ. आनन्द शर्मा : अमृत पुत्र, पृ. xi !!
_नोट : राजा जयचंद गद्दार नहीं, #_निर्दोष थे,
और एक प्रतापी न्यायप्रिय धर्म परायण राजा थे ! वे दुष्प्रचार के शिकार हुये 👈
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