इतिहास में हुई गलतियों कीमत आने वाली पीढ़ियां चुकानी पड़ती है

इतिहास में हुई गलतियों कीमत आने वाली पीढ़ियां चुकानी पड़ती है 1947 में भारत के पास स्वर्णिम अवसर था इस्लाम ईसाईयत वामपंथ के गठजोड़ से उपजी समास्या को जड़ मूल के साथ समाप्त कर दिया जाता लेकिन नहीं किया गया अब कोई सही करने का प्रयास भी करे उसे बाह्य और आंतरिक मोर्चों पर एक साथ लड़ना होगा क्योंकि आज के समय इको सिस्टम के एक कई सारी हिंदू समाज के अंदर फॉल्टलाइन को उभरना बहुत आसान हो चुका है । इन फॉल्टलाइन को इस्लामिक वामपंथी ईसाई इको सिस्टम आवश्यकता के अनुसार सक्रिय करता रहता है कभी मणिपुर तो कभी पंजाब कभी नवबौद्ध के रूप जातिगत हीनता बोध से उपजा अलगाववाद कही क्षेत्रवाद , भाषावाद , सेकुलरवाद , के रूप विकराल दानव दिखाई पड़ता एक साथ इतने मोर्चों पर किसी संस्था किसी राजनीतिक दल के लिए लड़ाई लड़ना असंभव क्योंकि कोई राजनीतिक दल संस्था की एक सीमा होती उसके बाद वह संस्था और राजनीतिक दल भी समझौतावादी हों जाता है । आज के समय में देश कही छोटी सी भी घटना होती एक घंटे में पूरी दुनिया का चक्कर लगा लेती है ‌। इसलिए किसी के लिए इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी के युग में एक साथ कई मोर्चों पर लड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है। कुछ ऐसे मोर्चे जिन मोर्चों के बारे किसी को जानकारी नहीं है उसमें से एक मोर्चा सांस्कृतिक मार्क्सवाद का जो भविष्य बहुत बड़े ख़तरे के रूप में सामने आएगा और हिंदू समाज के अंदर की छोटी छोटी फॉल्टलाइन को और अधिक बड़ा ही करेगा जिसे रोकना बहुत मुश्किल होने जा रहा है। हम लोग सोच सोच रहे की वोट दे दिए सरकार और संगठन सबकुछ ठीक कर देगा लेकिन ऐसा होता नहीं है क्योंकि जब तक समाज की सहभागिता इस युद्ध में सुनिश्चित नहीं होगी तब तक बड़े स्तर पर परिवर्तन कर पाना किसी संगठन और राजनीतिक दल एवं सरकार के लिए बहुत मुश्किल है ।

दीपक कुमार द्विवेदी

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