जब तक समस्याओं से उत्पन्न स्थितियों पर विलाप करेंगे, तब तक समस्याओं का अंत हो पाना असम्भव होगा। स्थितियों पर नियंत्रण पाने के लिए समस्याओं के जेनेरिक रीजन्स पर प्रतिघात भी आरम्भ करना ही होगा।

जब तक समस्याओं से उत्पन्न स्थितियों पर विलाप करेंगे, तब तक समस्याओं का अंत हो पाना #असम्भव होगा। स्थितियों पर नियंत्रण पाने के लिए समस्याओं के जेनेरिक रीजन्स पर प्रतिघात भी आरम्भ करना ही होगा।

                  हिन्दुओं के विरुद्ध जितने भी षड्यंत्र वह कांग्रेसी भेड़ियों की तरफ से हों या सुप्रीम कोठे से, सर्वत्र एक समान रूप से "विस्तारवादी क्रिश्चियनों और इश्लामिकों" का एक विशेष फंड्स ही प्रयोग किया जाता है। जो क्रिश्चियनों द्वारा अपनी सम्पूर्ण आय का 20% और इश्लामिकों द्वारा 10-30% तक घोषित रूप से क्रिश्चयनिटी और इश्लाम विस्तारक संस्थाएँ यथा- चर्च और मस्जिद कमेटियाँ वसूल करती हैं। और उसे उन्हीं विशिष्ट मद में खर्च करती हुई भी देखी जाती हैं। 
यह फैक्ट्स दुनिया जानती है, परन्तु इस फैक्ट को जानने के बाद भी एकमात्र बचे देश भारत में भारतीय सरकारें भारतीय संस्कृति के रक्षक कारकों यथा- मन्दिर, तीर्थ आदि को सरकारी नियंत्रण में रखकर उनसे होने वाली आय को संविधान की विशिष्ट धाराओं के माध्यम से पुनः अल्पसंख्यक कल्याण के नाम पर इन्हीं विस्तारवादी संस्थाओं को उपलब्ध करवा देती हैं।
ताकि हिन्दुओं का समूल विनाश भलीविधि किया जा सके। उनके पास कोई ऐसा आर्थिक स्ट्रक्चर न हो, जिसके माध्यम से वे किसी भी प्रकार का विस्तारवादी शक्तियों का विरोध करने तक का दुस्साहस कर सकें।

                       देवासुर संग्राम में जिस प्रकार असुरों के समूल विनाश के लिए मनुष्य अधिपतियों की आवश्यकता पड़ने पर भी देवताओं द्वारा मात्र उन्हीं भूपतियों को संग्राम में सम्मिलित होने का निमंत्रण भेजा जाता जाना जाता है, जो पूर्णतः धर्म और यज्ञ रक्षार्थ तत्पर रहते थे। शेष सभी को उपेक्षित कर दिया जाता है। वही लगातार हजारों वर्ष के संग्राम के पश्चात विजयश्री उपरान्त शेष तठस्थ भूपतियों और असुरों की ओर से खड़े राजाओं का वध करके पुनः #धर्म_स्थापना की जाती रही है। वह हमारी पुरातन व्यवस्था भी हमारी शिक्षा व्यवस्था ने कुछ इस प्रकार कुचला की,
"आज हम सब अपने ही घर में, म्लेच्छ हितार्थीयों की उपेक्षा तक करने का साहस नहीं दिखा पा रहे।"
बल्कि उसे "स्विंग आइडियोलॉजी" के तहत मान्यता देकर अपने आस्तीन का सांप बना बैठे हैं।

ट्वीटर पर हिन्दुओं के द्वारा जिस प्रकार से "गलत तथ्यों को प्रसारित करके #कमिश्नरी के निर्णय को समूचे #राज्य का निर्णय बनाकर प्रचारित किया गया, उसे देखकर अब एक बार पुनः यह कहने में संकोच नहीं कि, हमारे अपने ही लोग हमारे #दुश्मन हैं। पहचान ख्यापित करने का आदेश न योगी सरकार द्वारा निर्गत हुआ और न ही किसी अन्य राज्य सरकार द्वारा, यह सुप्रीम कोठे पर विपक्ष का वकील #सिंघवी स्वयं कहता है, परन्तु हमारे कुछ एक्स्ट्रा बड़के ज्ञानी विपक्ष को विलाप करने का अवसर मात्र इसलिए प्रदान करने से न चुके कि, अगर कमिश्नरी को हाईलाइट कर दिया गया तो, यह आदेश हमारे राज्य का चरित्र बन जायेगा। इसलिए इसे योगिया का #फरमान बताकर प्रचारित करें, ताकि जल्द से जल्द इस पर राजनीतिक रोटियाँ सेंकी जानी लगे, और विपक्ष इस आदेश को पलटने के लिए सुप्रीम कोठे की शरण मे पहुँच जाए।
हुआ वही, जो हमारे बड़के विद्वानो द्वारा अपेक्षित था।
आदेश पर अंतरिम रोक लगा दिया गया है। 
(ऐसे मूढ़मति विद्वानों को एक amc अर्थात अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्प. के कमिश्नरी का आदेश बता रही, जब समूचे अहमदाबाद से सड़क के किनारे मांस बिक्री पर तत्काल प्रभाव से पाबन्दी लगा दी थी। किसी कोठे ने उसे पलटने की हिमाकत नहीं कि।
सावन में मांस बिक्री पर रोक लगा दी थी, कोई पलटने वाला न मिला। नवरात्रि में खुलेआम मांस विक्री पर रोक लगा दी, कोई विवाद नहीं।)
परन्तु उत्तर प्रदेश में कमिश्नरी के आदेश को राज्य सरकार का आदेश बताकर न केवल हमारे अपने तथाकथित राष्ट्रवादी दुष्प्रचारित करने लगे, बल्कि उसे एक राजनीतिक मुद्दा तक बना डाला। परिणाम अब पाबन्दी लग गयी, सब पुनः विलाप आरम्भ कर दिए।
परन्तु कोई अपने योगदान और अपने मूढ़ता को #कोसता नहीं दिख रहा।
अब आप सब ही बताएँ क्या ऐसे हिन्दुओं का कोई भला कर सकता है?
जो न अपनी लड़ाई लड़ना जानते हैं, और न ही अपने पारम्परिक हथियारों का सम्यक क्या अलप भी ज्ञान नहीं रखते।
बल्कि सदैव शत्रुओं की गोंद में बैठे, उन्हीं के द्वारा रिमोट किये जाते रहते हैं।

क्या मूलभूत समस्याओं पर बात करूँ या यही विराम दूँ आदरणीय जन?

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