शिव पुराण के अनुसार श्रावण मास का क्या महत्व है?जानने के लिए पढ़ें पूरा आलेख

.                 
     🌸श्रावण माहात्म्य🌸
                               

शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च।।

ईशानः सर्वविध्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रम्हाधिपतिमहिर्बम्हणोधपतिर्बम्हा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम।।

       
 

          शौनक बोले–'हे सूत ! हे सूत ! हे महाभाग ! हे व्यासशिष्य ! हे अकल्मष ! आपके मुख कमल से अनेक आख्यानों को सुनते हुए हम लोगों की तृप्ति नहीं होती है, अपितु बार-बार सुनाने की इच्छा बढ़ती जा रही है। तुला राशि में स्थित सूर्य में कार्तिक मास का माहात्म्य, मकर राशि में माघ मास का माहात्म्य और मेष राशि में स्थित सूर्य में वैशाख मास का माहात्म्य  आपने भली-भाँति कह दिया, यदि इनसे भी अधिक महिमामय कोई मास हो तथा भगवत्प्रिय कोई धर्म हो तो आप उसे अवश्य कहिये, जिसे सुनकर कुछ अन्य सुन ने की हमारी इच्छा न हो। वक्ता को श्रद्धालु श्रोता के समक्ष कुछ भी छिपाना नहीं चाहिए।'
          
सूत जी बोले–'हे मुनियों ! मैं आप लोगों के वाक्य गौरव से अत्यन्त सन्तुष्ट हूँ, आप लोगों के समक्ष मेरे लिए कुछ भी गोपनीय नहीं है। दम्भ रहित होना, आस्तिकता, शठता का परित्याग, उत्तम भक्ति, सुनने की इच्छा, विनम्रता, भक्ति परायणता, सुशीलता, मन की स्थिरता, पवित्रता, तपस्विता और अनसूया–ये श्रोता के बारह गुण बताये गए हैं। ये सभी आप लोगों में विद्यमान हैं, अतः मैं उस तत्त्व का वर्णन करता हूँ। ‘

एक समय प्रतिभाशाली सनत्कुमार ने धर्म को जानने की इच्छा से परम भक्ति से युक्त होकर विनम्रता पूर्वक भगवान शिव से पूछा।
          योगियों के द्वारा आराधनीय चरणकमल वाले हे देवदेव ! हे महाभाग ! हमने आप से अनेक व्रतों तथा बहुत प्रकार के धर्मों का श्रवण किया फिर भी हम लोगों के मन में सुनने की अभिलाषा है। बारहों मासों में जो मास सबसे श्रेष्ठ, आपकी अत्यन्त प्रीति कराने वाला, सभी कर्मों की सिद्धि देने वाला हो और अन्य मास में किया गया कर्म यदि इस मास में किया जाए तो वह अनन्त फल प्रदान कराने वाला हो तो–हे देव ! उस मास को बताने की कृपा कीजिए, साथ ही लोकानुग्रह की कामना से उस मास के सभी धर्मों का भी वर्णन कीजिए।'
          शिव बोले–'हे सनत्कुमार ! मैं अत्यन्त गोपनीय भी आपको बताऊँगा ! हे सुव्रत ! हे विधिनन्दन ! मैं आपकी श्रवणेच्छा तथा भक्ति से प्रसन्न हूँ। श्रावण मास मुझे अत्यन्त प्रिय है। इसका माहात्म्य सुनने योग्य है, अतः इसे श्रावण कहा गया है। इस मास में श्रवण-नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा होती है, इस कारण से भी इसे श्रावण कहा गया है। इसके माहात्म्य के श्रवण मात्र से यह सिद्धि प्रदान करने वाला है इसलिए भी यह श्रावण संज्ञा वाला है। निर्मलता गुण के कारण यह आकाश के सदृश है इसलिए ‘नभा’ कहा गया है।
          इस श्रावण मास के महिमागान करने में पृथ्वीलोक में कौन समर्थ हो सकता है, जिसके फल का सम्पूर्ण रूप से वर्णन करने के लिए ब्रह्माजी चार मुख वाले हुए, जिसके फल की महिमा को देखने के लिए इन्द्र हजार नेत्रों से युक्त हुए और जिसके फल को कहने के लिए शेषनाग दो हजार जिह्वाओं से सम्पन्न हुए। अधिक कहने से क्या प्रयोजन, इसके माहात्म्य को देखने और कहने में कोई भी समर्थ नहीं है।

          हे मुने ! यह  मास सभी व्रतों तथा धर्मों से युक्त है। इस माह में प्रायः सभी तिथियाँ व्रतयुक्त हैं।  
          आर्तों, जिज्ञासुओं, भक्तों, अर्थ की कामना करने वाले, मोक्ष की अभिलाषा रखने वाले और अपने-अपने अभीष्ट की आकांक्षा रखने वाले चारों प्रकार के लोगों–ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास आश्रम वाले–को इस श्रावण मास में व्रतानुष्ठान करना चाहिए।' ‘

सनत्कुमार बोले–'हे भगवन ! हे सत्तम ! आप बतायें किस तिथि में और किस दिन में कौन-सा व्रत होता है, उस व्रत का अधिकारी कौन है, उस व्रत का फल क्या है, उसके उद्यापन की विधि क्या है, प्रधान पूजन कहाँ हो और जागरण करने की क्या विधि है, उसका देवता कौन है, उस देवता की पूजा कहाँ होनी चाहिए, हे प्रभो ! वह सब आप मुझे बतायें।'
          यह मास आपको प्रिय क्यों है, किस कारण यह पवित्र है, इस मास में भगवान का कौन-सा अवतार हुआ, इस मास में कौन-कौन धर्म अनुष्ठान के योग्य हैं, हे प्रभो ! यह सब बतायें। आपके समक्ष मुझ अज्ञानी का प्रश्न करने में कितना ज्ञान हो सकता है, अतः आप सम्पूर्ण रूप से बतायें। हे कृपालों ! मेरे पूछने के अतिरिक्त भी जो जो शेष रह गया हो उसे भी लोगों के उद्धार के लिए कृपा कर के बतायें।
          हे विभो ! आप आदि में आविर्भूत हुए हैं, अतः आपको आदि देव कहा गया ।आप महादेव  है। तीनों देवताओं के निवास स्थान पीपल वृक्ष में सबसे ऊपर आपकी स्थिति है।
          कल्याण रूप होने के कारण आप शिव हैं और पापसमूह को हरने के कारण आप हर हैं। आपका शुक्ल वर्ण है आप कर्पूर के समान गौर वर्ण के है, 
          गणपति के अधिष्ठान रूप चार दल वाले मूलाधार चक्र से, ब्रह्माजी के अधिष्ठान रूप छ: दल वाले स्वाधिष्ठान नामक चक्र से और विष्णु के अधिष्ठान रूप दस दल वाले मणिपुर नामक चक्र से ऊपर आप  अधिष्ठित है ।
          हे देव ! आपकी पूजा से पंचायतन पूजा होती है 
          आप स्वयं शिव हैं। आपकी बाईं जाँघ पर शक्ति स्वरूपा दुर्गा, दाहिनी जाँघ पर गणपति, आपके नेत्र में सूर्य तथा ह्रदय में भगवान् श्रीहरि विराजमान हैं। अन्न के ब्रह्मारूप होने तथा रास के विष्णु रूप होने और आपके उसका भोक्ता होने के कारण हे ईशान ! आपके श्रेष्ठत्व में किसे सन्देह हो सकता है। सबको विरक्ति की शिक्षा देने हेतु आप श्मशान में तथा पर्वत पर निवास करते हैं।
          पुरुषसूक्त में “उतामृतत्वस्येशानो०” इस मन्त्र के द्वारा प्रतिपादन के योग्य हैं–ऐसा महर्षियों ने कहा है। जगत का संहार करने वाले हालाहल को गले में किसने धारण किया ! महाप्रलय की कालाग्नि को अपने मस्तक पर धारण करने में कौन समर्थ था ! संसार रूप अन्धकूप में पतन के हेतु कामदेव को किसने भस्म किया ! आप ऐसे हैं कि आपकी महिमा का वर्णन करने में कौन समर्थ है ?
          एक तुच्छ प्राणी मैं करोड़ों जन्मों में भी आपके प्रभाव का वर्णन नहीं कर सकता। 


साभार 
सपना सिंह जी 


टिप्पणियाँ