जयंती विशेष 18th अगस्त पेशवा रघुनाथ राव (राघोबा) पँजाब का रक्षक




संयोग की बात देखिये कि पिता और पुत्र दोनो का जन्म एक ही दिन हुआ । एक का सम्मान आसमान की ऊँचाई छू रहा है तो दूसरे का नाम लेवा कोई नही । एक ऐसा योद्धा जिसकी वजह से मराठा साम्राज्य अटक तक गया । ये जो अटक से कटक के विस्तार की कहानी है, उसमे राघोबा से बड़ा हीरो कोई नही है ।

पर, "काल की गति",  "बड़ा बेटा ही उत्तराधिकारी बनेगा वाला नियम" और "पत्नी व चाटुकारों की लालची कुटिल चालों" ने एक अप्रतिम योद्धा को इतिहास का खलनायक बना दिया । राघोबा एक ऐसे योद्धा थे जिसने "अस्सी हिनु बचाये" का ऐतिहासिक झूठ स्थापित करने वालो वखरे वीरों को अब्दाली से बचाया ।

रघुनाथ राव बाजीराव बल्लाल उर्फ़ राघोबा दादा, बाजीराव प्रथम के द्वितीय पुत्र, नानासाहेब पेशवा के अनुज, अतुल्य पराक्रमी योद्धा जिन्होंने मराठा साम्राज्य का झंडा अटक तक फहराया, जिन्होंने दिल्ली के बादशाह अहमद शाह बहादुर  को गिरफ़्तार कर उसकी जगह अपने कठपुतली बादशाह आलमगीर-2 को तख़्त पर बैठाया....  जिनके भय से सहारनपुर नवाब नजीब खान रोहिल्ला थर थर कांपता था, सारा मुग़लपरस्त राजे रजवाड़े जिसके इशारों पर चलता था...... 

वस्तुतः, श्रीमंत नानासाहेब पेशवा (बालाजी बाजीराव) के  कार्यकाल में मराठा साम्राज्य का विस्तार अपने चरम पर पहुँचा, और भगवा ज़रीपटका (मराठों का ध्वज) अटक से लेकर सुदूर दक्षिण तक और पूर्व में बंगाल तक सभी किलों पर फहराता था। लेकिन इसके मुख्य सूत्रधार थे नानासाहेब पेशवा के तीन पराक्रमी भाई .... रघुनाथराव उर्फ़ राघोबा दादा, सदाशिव राव भाऊ (चिमाजी अप्पा के सुपुत्र) और शमशेर बहादुर (मस्तानी के सुपुत्र)..... और इन तीनो में राघोबा दादा का पराक्रम अतुल्य था

अप्रैल 1758 मीर खान लाहौर का फौजदार बना और उसने घोषणा करवाई की जो भी सिखो के सर काट कर लाएगा उसे एक सर के बदले 10 टका (रुपये) वो देगा,

सिखों ने " श्रीमंत पेशवा हिंदुस्तान गौपालक रणधुरंधर बालाजी बाजीराव " से पुणे में रक्षा की गुहार लगाई, श्रीमन्त पेशवा ने अपने छोटे भाई " राघोबा दादा " जो बुन्देलखण्ड में तैनात थे , को इस मुहिम के लिए आज्ञा दी ।

22 अक्टूबर 1758 दोपहर 2 बजे । दोआब मोर्चा , कानपुर 

पेशवाओ ने सरदार रघुनाथ पंडितराव के हमलों के फलस्वरूप सन 1751 से उत्तर में अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी । वे जाट राजा सुरजमल के साथ रोहिल्लो को जकड़ने में लगे थे । इस काम मे पेशवाओ के साथ आगरा से साबाजी शिन्दे और तुकोजी होल्कर भी मजबूती से घेराव कर रहे थे । सारा ध्यान रोहिल्ला मुल्ला नजीब जंग और मुग़ल की राजपूत रानी मालिका ज़मानी को पूर्वी दिल्ली और मेरठ में नेस्तनाबूद करने में था कि अचानक पठानों ने हरमिंदर साहेब , अमृतसर को नापाक कर दिया, स्वर्ण मंदिर में तोड़फोड़ करके पवित्र सरोवर को गौ माता के शवों और मिट्टी से भर दिया ।

सिख सरदार अवाक रह गए , उनके सबसे पवित्र स्थान स्वर्ण मंदिर के तालाब में पठानों का कब्जा हो गया था । गिनती के 15 हज़ार की सिख सेना अब पठानों की 50 हजारी फौज़ से कैसे लड़ते ?

सरहिन्द में सिखों के तीन सरदारो 

१. जस्सासिंह अहलूवालिया , कपूरथला
२. सरदार आला सिंह जट्ट, पटियाला
३. जस्ससिंह रामगढ़िया , अज्ञात 

ने लाहौर के पुराने मुगल गवर्नर अदीना बेग से मुलाकात की और चारो ने अमृतसर को मुक्त कराने हेतु पेशवाई को संदेशे भेजे । संदेशे इस प्रकार थे ।

पंडितराव राजा रॉघोबा ।।

सरहिन्द में तुर्क 
पठान अब्दुस्समन्द खान आ गए है ।
हरमिंदर साहब नापाक कर दिया है ।
पवित्र मंदिर में बेग़ैरत लाशें है ।
दक्खन की मदद जरूरी । 
हिंदू खालसा का सफ़ाया होना । 

रॉघोबा उर्फ रघुनाथराव ने पूर्व की मुहिम रोक दी और सरहिन्द की ओर निकल पड़े और फरवरी में पेशवा, मराठो की भयंकर फौज़ के साथ पंजाब में घुस आए । 

अब यहां से शुरू हुई अमृतसर को मुक्त करने की कवायद । इसमे मराठाओ के भगवा ध्वज के नीचे बाकी मराठा सरदार भी पहुंचे और सिखों के सबसे पवित्र स्थान को मुक्त कराने को, शुरू हुआ पठान - पेशवा सँघर्ष ।

24 फरवरी - कुंजपुरा की जंग :  पेशवा कृष्णराव काले ( दीक्षित ) और शिवनारायन गोसाइँ बुन्देला ने 2400 पठानों को मार कर खूनी जंग लड़ी । 8 घण्टे की जंग के बाद यह किला जीत लिया गया । और इस तरह पंजाब में नंगी तलवारों के साथ पेशवाओ का प्रवेश हुआ ।

8 मार्च - सरहिन्द की जंग : पेशवा रघुनाथ राव रॉघोबा , सरदार हिग्निस , सरदार तुकोजी राव होल्कर , सरदार संताजी सिन्धिया , सरदार रेंकोजी आनाजी , सरदार रायजी सखदेव , सरदार पेशवा अंताजी मानकेश्वर , पेशवा गोविंद पंत बुंदले सागर , पेशवा मानसिंग भट्ट कॉलिंजर , पेशवा गोपालराव बर्वे , पेशवा नरोपण्डित , पेशवा गोपालराव बाँदा और कश्मीरी हिन्दूराव की 22 हज़ार हुज़ूरात फौज़ ने 3 दिन में सरहिन्द जीत लिया । 10 हज़ार पठान मारे गए और उनका सरदार अब्दुस समंद खान को बंदी बना लिया गया । अब अमृतसर की मुक्ति और पेशवाओ के बीच केवल एक जगह शेष थी - लाहौर ।।

14 मार्च 1758 - लाहौर और अमृतसर की जंग : 
800 सालो में पहली बार किसी हिन्दू फौज़ ने लाहौर पर हमला किया ।

लाहौर में पठानो का राजकुमार " तैमूर खान " और " जहान खान " मजबूती के साथ मोर्चाबंदी किये हुए थे । पेशवा घुनाथराव ने नरोपण्डित , संताजी और तुकोजीराव होल्कर के साथ लाहौर के ऊपर पूरी ताकत से हमला किया । बाकी सरदारों ने लाहौर के साथ अमृतसर में धावा बोला । यह हमला इतना जोरदर था कि 5 km दूर खड़ी सिक्खों की फौज़ को पठानों की चीखें सुनाई देने लगी । मराठो के आ जाने से सिखों में जोश आ गया । अमृतसर और लाहौर के बीच 22 km में पठानों का क़त्लेआम शुरू हुआ । उनको हरमिंदर साहेब की सजा मिलनी शुरू हो गयी थी । शाम तक लाहौर से तुर्क और पठान निकाल दियेगए और अमृतसर में रघुनाथराव रॉघोबा का कब्जा हुआ ।

सिखों के स्वर्ण मंदिर में पेशवा फौज़ ने प्रवेश किया और राघोबा पंडितराओ ने सरदार आला सिंह जट्ट को मंदिर पुनर्निर्माण के लिए अफ़ग़ानों से लूटे गए दरफ़ात भेंट दिये । आदिना बेग और अहलूवालिया की सेनाओं ने अमृतसर को घेर लिया और हरमंदिर साहिब के ऊपर खालसा ध्वज, पेशवाओं की मर्यादा से फिर फहराने लगा ।  

इसके मात्र दो वर्ष बाद पेशवाओ को पानीपत में जरूरत पड़ती है तो सिख सरदार शांत रहते है और मदद को नही आते । हालांकि पेशवाओं ने उन्हें लड़ने के लिए नही बुलाया था सिर्फ अनाज और कपडे मांगे थे वो भी रुपयों के बदले ।  इस माँग के उलट सरदार आला सिंह जट 50,000 रुपयों से अब्दाली की मदद करते है जिसके बदले में अब्दाली उसको इनाम स्वरूप 800 गाँव देकर जाता है जिससे बाद में पटियाला की अय्याश रियासत बनती है । यहाँ जितने मराठा सरदारों के नाम लिखे है , सभी पानीपत मे पठानों से लड़ते मारे जाते है । लेकिन मरते समय भी यह मराठे , पठानों की हवा इतनी टाइट कर देते है कि पठान फिर भारत मे नही घुसते । पठान वापस अपने गरीब देश लौट जाते है । पेशवा अपना बदला नजीब जंग से लेने मेरठ चले जाते है और खाली रह जाता है पंजाब और यहां के लोग । दुसरो की लड़ाई लड़ने से पेशवाओ को कुछ नही मिला । मिला तो सिर्फ पानीपत में हरयाणा से लेकर महाराष्ट्र तक हिन्दू योद्धाओ के शव ।

पानीपत के सदमे से पेशवा नाना साहब उभर नही पाये और जल्द चल बसे । अगर इस समय राघोबा पेशवा हो जाते तो शायद इतिहास कुछ अलग हो जाता । उन्हें योग्यता के हिसाब से अधिकार नही मिलता तो उनके नजदीकी लोग उन्हें धीरे धीरे नायकत्व से दूर करते चले जाते है जिसकी परिणीति उनके खलनायक में बदलने से होती है ।

नियति से बने इसी खलनायक से जूझते हुए नाना साहब के छोटे पुत्र माधवराव इतिहास के सबसे बेहतरीन पेशवा बनते है ।

✍️ निखिलेश

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