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. 🌸कायरता ही मृत्यु है🌸
“उत्तिष्ठत सं नह्यध्वमुदाराः केतुभिः सह ।
वर्तमान परिस्थितियों में सभी अत्यंत उद्विग्न और चिंतित हैं। धर्म हेतु जीवन लग जाना बहुत ही उत्तम है, इसमें तो आनन्द मनाना चाहिये। धर्म के लिए कार्य करने वालों बड़ी-बड़ी विपत्तियाँ आया करती हैं; इसके लिये वे कभी शोक नहीं करते ? यदि आपने धर्म के लिए न्यायपूर्वक चेष्टा की है और उसके लिये आप पर आपत्ति आयी है तो उसके लिये आपको आनन्द मानना चाहिये।
यदि आप निर्दोष हैं तो यह विश्वास करना चाहिये कि आपका अहित नहीं हो सकता, आप यदि यह समझते हैं कि बिना ही दोष आपपर लोकहित करते आपत्ति आयी है तो आपको एक वीर की भाँति प्रसन्नता से सामना करना चाहिये। कायरता ही मृत्यु है।
गीता अध्याय २ श्लोक २, ३ का अर्थ समझकर कायरता का त्याग करना चाहिये। यहाँ वीरता ही मुक्ति में हेतु है, कायरतापूर्ण जीवन तो मृत्यु के समान है, शूरता में प्राणत्याग करना लाभजनक और धर्म है। ‘
गीता अध्याय २ श्लोक ३७, ३८ और अ० ३ श्लोक ३५ का अर्थ देखिये। शरीर तो एक दिन जाना ही है, धर्म के काम को करते-करते चला जाय तो बहुत अच्छी बात है। कायरता से कुछ दिन जी भी लेंगे तो क्या होगा ?
अपमान तो कायरता में है वीरता में नहीं, धर्म के त्याग में है, धर्म की रक्षा में नहीं। उसमें प्रसन्न रहना चाहिये। किसी तरह भी शोक, चिन्ता और दुःख को हटाकर हर समय हर अवस्था में आनन्दमग्न रहना चाहिये। इस बात पर विश्वास रखना चाहिये कि जो कुछ होता है सब भगवान् की दया से होता है और उसी में सबका मंगल है
🔥⚔️🔥जय श्री राम 🔥⚔️🔥
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