मैं वैश्विक परिस्थितियों को देखते समझते हुए इस बात से बिलकुल प्रसन्न हूँ कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी हैं...

मैं वैश्विक परिस्थितियों को देखते समझते हुए इस बात से बिलकुल प्रसन्न हूँ कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी हैं...
निराशा की कोई बात ही नहीं उल्टा मैं बेहद संतुष्ट और आशान्वित हूँ, अपने देश को लेकर...

और हाँ, 240 सीट आने पर इतनी भी निराशा नहीं छानी चाहिए। लोकतंत्र में सदा सदा के लिए जनता आपको ही पूर्ण बहुमत देकर जीत दिलाती रहेगी, ऐसा सोचना भी अनुचित है...
मोदी जितने दिन प्रधानमंत्री रह चुके हैं अथवा बने रहेंगे, उतना दिन कितने लोगों में राज किया? एक बार में तो भूल ही जाइए, कुल मिलाकर कितने लोग उनकी बराबरी कर सकते हैं ? 

पूरी दुनिया में हथियार लाबी अपने चरम पर है, दुनिया लगातार युद्ध में फसती चली जा रही है। भारत को भी लगातार उसी दलदल में धकेलने की कोशिश हो रही है, लेकिन प्रधानमंत्री अति धैर्यवान हैं, वह कीचड़ में नहीं उतर रहे। यह समय भारत के विकास का समय है, जब आपका परिवार भी विकास करने लगता है तो अग़ल बग़ल के लोग आपको झगड़ा लड़ाई में फ़साने की साज़िश रचने लगते हैं। यहीं बात देश के संबंध में भी लागू होती है। भारत में हम लोगों के आँखों के सामने सुखद बदलाव दिख रहा है। वह बदलाव जो शायद तीन दशक में होते, वह मात्र एक दशक में हो गये। अगले दस पंद्रह साल तक डिवियेट नहीं होना है...

अपना जो रास्ता चुना है, चुपचाप उस पर चलते रहिए। अलग अलग नाम से लोगों को भड़काकर सड़कों पर उतारा जाएगा, वह आपको बार बार लट्ठ चलाने का लालच देंगे, वह आपको इस कदर छेड़ेंगे कि आपका मन होगा कि लाश बिछा दें, पर धैर्य रखिए, शांति से आगे बढ़िये...

आपका मन हो रहा है कि आज ही हिंदू राष्ट्र की स्थापना हो जाये, पहले लोगों को हिंदू तो बनने दीजिए, लोगों को राष्ट्रीय तो बनने दीजिए। ये सब काम हड़बड़ी का नहीं है। समाज में परिवर्तन संविधान, नियम, क़ानून, पुलिस से नहीं होने वाला...
समाज में परिवर्तन एक धीमी उबाऊ और थकाऊ प्रक्रिया है। समाज धीरे धीरे सकारात्मक दिशा में बढ़ रहा है। समाज धीरे धीरे मज़बूत हो रहा है। लोगों की राष्ट्र और हिंदुत्व लेकर प्रकट होने वाली अतिशय चिंताएँ अपने आप में बताती हैं कि लोग समय के साथ जातीय पहचान से हिंदू पहचान और क्षेत्रीय पहचान से राष्ट्रीय पहचान को प्राथमिकता बना रहे हैं...

इसलिए हड़बड़ाने, घबराने, परेशान होने की बहुत आवश्यकता नहीं है। 
दुनिया में लंबे समय से वैश्विक स्तर का युद्ध नहीं हुआ है, परमाणु बम और हाइड्रोजन बम ने युद्ध को मुश्किल बना दिया है बावजूद इसके रुस और यूक्रेन का युद्ध बताता है कि ये बम होने के बावजूद भी लंबा युद्ध खींचा जा सकता है। यूरोप आज नहीं तो कल युद्ध में जाएगा, नहीं जाएगा तो पश्चिमी यूरोप का सांस्कृतिक विनाश हो जाएगा और इसे पश्चिमी यूरोप इतने आसानी से स्वीकार नहीं करेगा। इस्लाम से जितना भारत परेशान है उतना ही यूरोप भी परेशान है। ये कितने दिन तक मिट्टी डालते हैं इस सच्चाई पर, यह भी देखने वाली बात है।
ईसा मूसा भिड़ेंगे, अवश्य भिड़ेंगे, इस लड़ाई को कोई रोक नहीं सकता। एक दशक, नहीं तो दो दशक, इनको लड़ना ही होगा...

भारत में हिंदू अधिकतम लोकतंत्र के स्तर तक लड़ाई लड़ने की क्षमता रखते हैं, वह भी कभी कभार। इसलिए सड़क पर युद्ध हिंदुओं के लिए कोई विकल्प नहीं है। इसलिए शांति से चलिए, आगे बढ़ते रहिए। बहुत परेशान होने का कोई मतलब नहीं है, सांस्कृतिक लड़ाइयाँ हर पीढ़ी लड़ती रही है, लड़ती रहेगी। यह एक सतत प्रक्रिया है। यह मत सोचिए कि सैकड़ों वर्षों का काम एक दशक में करके समाप्त कर डालेंगे, ऐसा कुछ नहीं होने वाला...

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