सामूहिक साप्ताहिक हनुमान चालीसा के माध्यम से सनातन धर्म का उत्थान कैसे हो सकता है?

आम हिन्दू की सोच आज इस तरह से हो चुकी की सबकुछ मोदी शाह संघ योगी करें बिना कुछ किए सबकुछ मिल जाए आज में मेरी प्रबुद्ध वर्ग के एक सज्जन से बात हो रही थी वैचारिक विषयों पर चर्चा हो रही थी इस चर्चा में कुछ विषय आए जिसमें में प्रमुख था हिंदू समाज को संगठित कैसे किया जाए भविष्य में हिंदुओं की स्थिति क्या हो सकती है वैश्विक शक्तियों का भारत की राजनीति में क्या प्रभाव चल रहा है लोकतांत्रिक व्यवस्था में धर्म संस्कृति के हित में है कि नहीं है इन विषयों पर चर्चा कर रहे थे। मै ने एक विषय उठाया की लोकतांत्रिक व्यवस्था का भारतवर्ष के हित में नहीं है लोकतांत्रिक व्यवस्था रहेगी तो धर्म-संस्कृति नहीं बच पाएगी है क्योंकि जब लोकतांत्रिक व्यवस्था ने क्रिश्चियन देशों की बैंड बजा दी है भारत में तो हिंदू समाज असंगठित भी है इसलिए भारत की स्थिति है हो सकतीं हैं ऐसा चलता रहा कुछ वर्षों अल्पसंख्यक आबादी बहुसंख्यक आबादी रिप्लेस करके सत्ता में काबिज हो जाएगी बहुसंख्यक आबादी सत्ता से बाहर हो जाएगी लोकतांत्रिक व्यवस्था में यही होता धीरे धीरे बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक हो जाती है ज्यादातर लोकतांत्रिक देशों में बहुसंख्यक आबादी नास्तिक हो जाती है यह बहुसंख्यक आबादी लगातार घटने लगती है जिन अल्पसंख्यको फैमिली सिस्टम और समाजिक सिस्टम मजबूत होता है वह लोग बहुत तेजी बहुसंख्यक आबादी रिप्लेस कर देते हैं तो मैं ने कहा कि भारत में लंबे समय तक लोकतंत्र रहा तो भारत से धर्म-संस्कृति बहुत जल्द खत्म हो जाएगा इसलिए भारत को बचाना महान् सनातन धर्म की रक्षा करनी है तो हमें लोकतांत्रिक व्यवस्था से अच्छा विकल्प समाज के रूप में देना होगा जिसे समाज का बड़ा वर्ग स्वीकार कर सकें क्योंकि नई व्यवस्था दिए दूसरी व्यवस्था को रिप्लेस नहीं कर सकते हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था का विकल्प हम समाज के रूप प्रस्तुत कर पाए सनातन धर्म के अनुरूप राज्य व्यवस्था स्थापित कर पाये तो सनातन धर्म का उत्थान शुरू हो जाएगा वो कहते कि समाज कुछ नहीं करता लीडरशिप ही कर सकती हैं मैं ने प्राचीन व्यवस्था उदाहरण दिया पहले प्रत्येक परिवार में एक मुखिया होता है जो परिवार से जुड़े हुए सभी निर्णय करता है मुखिया द्वारा किये गये निर्णय को परिवार का कोई सदस्य टाल नहीं सकता था, उस तरह प्रत्येक गांव में एक मुखिया होता जो गांव से जुड़े विषयों पर हर निर्णय लेते हैं गांव के सभी निवासियों को गांव मुखिया द्वारा किये निर्णय मान्य होते थे । प्रत्येक परिवार , प्रत्येक गांव की एक आर्थिक समाजिक राजनैतिक संरचना होती थी जो पूरी तरह स्वायत्त होती थी जिसमें राजसत्ता का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है जिसके कारण दिल्ली की गद्दी में कोई बैठा रहा हो लेकिन समाज पर इसका कोई कुछ प्रभाव नहीं पड़ता था। इसी व्यवस्था के कारण हजार वर्ष के बावजूद इस देश हिंदू बहुसंख्यक रहे इतने हमले हुए फिर बहुसंख्यक आबादी का 12% लोग मतांतरित हुए इससे स्पष्ट हुआ कि हिंदू किस तरह विधर्मियों का प्रतिकार किया इतने आक्रमण बावजूद आज हिंदू भारत बहुसंख्यक हैं । पिछले 200 वर्षों में बड़े सुनियोजित तरीके हिंदू सामाजिक, परिवारिक, और आर्थिक, शिक्षा व्यवस्था , ध्वस्त करने के प्रयास हुए जिसके परिणाम स्वरूप हिंदू समाज के अंदर इतनी हीनता बोध भर दी गई हिंदू समाज सही ग़लत अंतर नहीं कर पा रहा है,तथाकथित स्वतंत्रता के और संविधान लागू होने के बाद स्थितियां बहुत बहुत ज्यादा गंभीर होती जा रही है । ऐसा चलता रहा तो कुछ वर्षों में हिंदू समाज इस देश में अल्पसंख्यक हो जाएगा कुछ वर्षों में हिंदू धर्म का लोप हो जाएगा इसलिए हिंदू धर्म की रक्षा करती है तो लोकतांत्रिक व्यवस्था का विकल्प हमें तलाशने होंगे नई व्यवस्था खड़ी करनी होगी तो वो कहते यह सब कैसे होगा ? मैं ने कहा कि प्राचीनकाल जैसी समाजिक व्यवस्था अपडेटेड वर्जन के साथ विकसित किया जाए उसके लिए अब नये स्तर प्रयास करने होंगे उसके लिए समाज के स्तर पर प्रयास करने होंगे तो वो कहते है? समाज कुछ नहीं कर सकता तो संगठन सरकार की क्या आवश्यकता है ? समाज तो भीड़ के पीछे चलता है उसके पास एक लीडर चाहिए तभी समाज कुछ कर सकता बिना लीडरशिप के समाज कुछ नहीं कर सकता है इसलिए समाज कुछ करने की अपेक्षा करना उचित नहीं है। मैं ने एक उदाहरण दिया है कोई व्यक्ति कों कार्य अकेले करेगा तो वह अकेले नहीं कर पाएगा वही कार्य वही कार्य वह व्यक्ति 10 लोग के साथ मिलकर करेगा तो वो काम आसानी से समय के पूर्व कर लेगा उसी तरह समाजिक स्तर पर छोटी मोहल्ले, गांव कस्बे की साप्ताहिक हनुमान चालीसा टोली मिलन टोली बन जाएं। 
जैसे 10 लोग की साप्ताहिक मिलन टोली बनती है उस टोली में 10 लोग मिलकर एक व्यक्ति अपना अध्यक्ष बना देगी अध्यक्ष 10 लोग की टोली के मिलन संबंध अलग कार्य विभाजित कर देता सभी 10 लोग साप्ताहिक मिलन की तैयारियो लगते हैं तो साप्ताहिक मिलन का कार्य शुरू हो जायेगा वही 10 लोगों का समूह का मुखिया छोटे समूह का मुखिया बन जाएगा वही इस समूह दशा दिशा रणनीति बनाएंगे समूह के कार्यकताओं को कार्ययोजना संबंध में दिशा व निर्देश जारी करेंगे सभी 9 लोग अपने समूह के मुखिया आदेश का पालन अनुशासित होकर कार्य करेंगे । ऐसे छोटे छोटे समूह स्थानीय स्तर राष्ट्र निर्माण एवं धर्म रक्षार्थ बहुत महती भूमिका निभा सकते है । इसी तरह के छोटे समूह प्रत्येक गांव, प्रत्येक कस्बे,प्रत्येक शहरों और मोहल्ले में बन गई तो धीरे सनातनी इको सिस्टम विकसित हो लगेगा अपने आप प्राचीन व्यवस्थाएं फिर से खड़ी हो जाएगी है । फिर वो वो कहते ऐसा बिना संगठन सरकार सहयोग कर संभव है? आम आदमी पास कहां इतना समय कहा है? आम आदमी यह सब कैसे कर पाएगा उसके पास इतने संसाधन और व्यवस्था को कहां है ? इसलिए यह संभव नहीं है आप बहुत आदर्श व्यवस्था की बात कर रहे हैं सबकुछ सरकार संगठन कर सकती हैं समाज कुछ नहीं कर सकता है जब समाज को सब करना है तो सरकार संगठन की क्या आवश्यकता है। मैं ने कहा सरकार संगठन की एक सीमा होती इससे ज्यादा चाहकर कुछ नहीं कर सकते संगठन बहुत सारी मजबूरियां होती है खासकर सत्ताधारी संगठन सरकार बहुत कुछ ध्यान देना पड़ता है इसलिए यह संभव नहीं है सरकार संगठन सबकुछ कर पाये इसलिए इस स्थिति में परिवार समाज के छोटे छोटे समूहों का महत्व बढ़ जाता है क्योंकि छोटे छोटे समूहों के पास स्थानीय स्तर पर अपनी लीडरशिप होती है और किसी संगठन विचारधारा के लिए बंधे नहीं होते हैं इसलिए धर्म संस्कृति राष्ट्र कोई चुनौती आती है , स्थानीय स्तर पर कोई घटना घटती है स्थानीय स्तर छोटे समूह उन घटनाओं समय पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं यह तक त्वरित कार्यवाही भी कर सकते। इसलिए छोटे छोटे संगठनों बहुत भुमिका होती है इसलिए जो काम बड़े संगठन नहीं कर सकते वह काम मोहल्ले की छोटी साप्ताहिक हनुमान चालीसा का समूह कर सकता है और हिंदू परिवार व्यवस्था और रिस्टोर कर सकता है । जिससे हिन्दू समाज भविष्य खतरों को लेकर तैयार हो पाएगा । इसलिए आज के समय में बड़े संगठन से ज़्यादा प्रभावी छोटे सामूहिक मिलन समूह होंगे हिंदू समाज को संगठित करने में हिंदू समाज के अंदर स्वधर्म का बोध शत्रु बोध जाग्रति करने में  बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। 
✍️ दीपक कुमार द्विवेदी 

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