किसी भी समाज को गिराना हो तो आप उस समाज के नैतिकता के परिभाषा को बदल दीजिए।

किसी भी समाज को गिराना हो तो आप उस समाज के नैतिकता के परिभाषा को बदल दीजिए। समाज धीरे धीरे ख़ुद ही गिर जाएगा। हिंदू समाज में इसी तरह का पाप प्रयासपूर्वक किया गया जिसकी सजा आज तक यह समाज भुगत रहा है। 
कल मैंने एक कथित शंकराचार्य के विषय में लिखा कि वो कह रहा है कि अमुक समाज चूँकि विधवा विवाह करता था इसलिए वह समाज निम्न श्रेणी का है। अब जिसके पास भी थोड़ा सा कॉमन सेंस होगा वह तुरंत बता देगा कि इस लॉजिक में बहुत भारी गड़बड़ी है। क़ायदे से तो होना यह चाहिए कि जिस समाज में विधवा विवाह होता है, उसे अधिक अच्छा समझा जाना चाहिए। लेकिन किसी धूर्त ने समाज में विधवाओं के संबंध में श्रेष्ठ व्यवहार समुच्चय (नैतिकता) की परिभाषा बदल डाली और उनके साथ दुर्व्यवहार को ही अच्छा बता दिया। एक पुराण है जिसे आज भी मान्यता प्राप्त है, उसमें लिखा है कि अच्छा होगा कि विधवा अपने पति के साथ चिता में जलकर मर जाये लेकिन यदि नहीं मरती तो उसे घर में अलग थलग़ रहना चाहिए। उसे कम से कम भोजन करना चाहिए। हो सके तो वह सप्ताह दस दिन में एक बार भोजन करे लेकिन मन न माने तो दिन में एक बार तक भोजन कर ले। अब आप कल्पना करिए कि ऐसी बात लिखने वाला जूते खाने का अधिकारी है या ऋषि कहलाने का? निश्चित ही जिसके पास थोड़ी भी बुद्धि होगी कहेगा कि ऐसा घृणित व्यक्ति रोज़ चौराहे पर सौ जूते खाने का अधिकारी है। लेकिन इन मानसिक विक्षिप्तों के द्वारा संस्कृत में जो भी अंट शंट लिख दिया गया उसे शास्त्र प्रमाण बताकर मान लिया गया। 

इसी तरह इस देश के महान राजाओ और ऋषियों ने पूर्व दिशा में समुद्र के सारे देशों में हिंदुत्व का प्रचार प्रसार किया। आज भारत के पूर्व दिशा के प्रत्येक देश भारतीय संस्कृति से पूरी तरह प्रभावित हैं लेकिन किसी मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति ने लिख दिया कि समुद्र यात्रा करने से धर्म भ्रष्ट होता है। जिस देश की आधे से अधिक सीमा समुद्र से लगती है, जो देश दुनिया में व्यापार का केंद्र रहा हो, उस देश में कोई व्यक्ति लिख देता है कि समुद्र यात्रा से धर्म नष्ट होता और लोग उसे मान लेते हैं। सोचिए और समझने का प्रयास करिए कि ऐसे अव्वल दर्जे के मूर्खों ने इस देश और धर्म का कितना नाश किया होगा? और आज भी धूर्तों द्वारा मूर्ख बनाये गये लोग इसे किसी न किसी हद तक स्वीकार करते हैं। क़ायदे से जो व्यक्ति समुद्र की यात्रा करके सुदूर देशों में जा सकता था उसका सम्मान होना चाहिए था लेकिन पैमाना ही उल्टा कर दिया गया।

इसी प्रकार हर समाज में जो योग्य व्यक्ति होता है, उसका सम्मान होता है। योग्यता का अर्थ होता है कि कौन व्यक्ति समाज में अपनी सकारात्मक भूमिका अदा कर सकता है लेकिन न जाने किस धूर्त और लंपट ने लोगों को सिखा दिया कि कोई व्यक्ति पैदा होते ही उच्च होगा और कोई पैदा होते ही निम्न। जिसके पास थोड़ा सा भी दिमाग़ होगा वह समझ जाएगा कि यह सिद्धांत किसी फ्रॉड व्यक्ति द्वारा ही गढ़ा जा सकता है। कोई भी अच्छी बुद्धि का व्यक्ति इस तरह के फ्रॉड बातों को प्रसारित नहीं कर सकता लेकिन यह फ्रॉड सिद्धांत भारत के लोगों के नस नस में रचा हुआ है। ऐसा देश जिसमें रहने वाले लगभग प्रत्येक ख़ानदान में एकदम गोरे से एकदम काले तक सब प्रकार के दिखने वाले लोग मौजूद हैं, वह जाति नस्ल और वर्णसंकर की बात करते हैं। मतलब पूरा का पूरा सोचने समझने का तरीक़ा ही बिल्कुल फ्रॉड। एक दोगली सोच लेकर कई पीढ़ियों की ज़िंदगी कटती चली गई और आगे भी इस बीमारी का उपाय नहीं नज़र आ रहा। 

भारतीय समाज, हिंदू समाज के भीतर की जो आज समस्यायें हैं वह इन्हीं ग़लत और फ्रॉड परिभाषाओं की उपज हैं। जब तक नैतिकता की परिभाषा ठीक नहीं की जाएगी, जब तक ऐसे फ्रॉड शास्त्रों और ग्रंथों से मुक्ति नहीं पायी जाएगी, स्थितियाँ ठीक नहीं होंगी। हम सकारात्मक दिशा में हैं, धीरे धीरे आगे बढ़ रहे हैं लेकिन जब तक ऐसे ग्रंथ और धूर्तों की मान्यताएँ बची रहेंगी, हम फिर से कभी भी पीछे जा सकते हैं। अतः सबसे बड़ी आवश्यकता है, इन ग़लत परिभाषाओं को सुधारना और निडरता के साथ इसे स्वीकारना और सुधारना। 
Bhupendra Singh

टिप्पणियाँ