आसमानी किताब मजहब रिलिजन सह - अस्तित्व की भावना क्यो नही है?

आसमानी किताब को मानने वाले मजहब और रिलिजन किसी दूसरे विचार धर्म को सहन ही नहीं कर सकते इनके अनुसार से जो इनके मजहब रिलिजन पर विश्वास नही करता वह इनका शत्रु उसका इस दुनिया में रहने का कोई अधिकार ही नहीं है। जिन किताबी मजहब और रिलिजन में सह-अस्तित्व की भावना ही नहीं है उनसे हम अपेक्षा कैसे कर सकते हैं वो भारतीय संविधान महान सनातन हिन्दू धर्म और परंपराओं का सम्मान करेंगे । 

 जिनका अंतिम लक्ष्य यह है कि जब तक एक भी Non- Believer जीवित रहेगा तब तक कयामत और जजमेंट डे नहीं आएगा ऐसे मजहब रिलिजन के अनुयायियों से यह अपेक्षा कैसे कर सकते हैं? वो संविधान के आधार पर चलेंगे समावेशी सनातन हिन्दू परंपरा का सम्मान करेंगे यह असंभव है। इसलिए इस भारत भूमि और सनातन हिन्दू धर्म और सनातन धर्म की शाखाएं बौद्ध जैन सिख चार्वाक समेत अनेकों मतो पंथ संप्रदायो के अनुयायियों की भारत राष्ट्र की इन किताबी मजहब और रिलिजन के अनुयायियों से सुरक्षित रखना है तो वैचारिक रूप स्पष्ट होना पड़ेगा इसके अलावा अपनी राष्ट्रीय पहचान सनातन हिन्दू धर्म और हिन्दू धर्म की शाखाओं के आधार पर निर्धारित करना चाहिए ,हम चाहे बौद्ध जैन सिख चार्वाक शैव वैष्णव शाक्त किसी जाति मत पहचान को मानते हैं लेकिन हमारी एक पहचान होनी चाहिए कि हम सनातनी हिन्दू है और हमारा राष्ट्र धर्म सनातन हमारी अंतिम पहचान सनातनी हिंदू हैं हमारे राष्ट्रीय पहचान का आधार वेद उपनिषद पुराण स्मृति लोक परंपरा लोक संस्कृति हमारे नौ दर्शन है । जब राष्ट्र धर्म सनातन की रक्षा की बात आएगी तो हम एक होकर इन मानव सभ्यता के शत्रु किताबी आब्रहिमक मजहब और रिलिजन और कम्युनिस्ट , ग्लोबल मार्केट फोर्सेज , डीप स्टेट सनातन हिन्दू धर्म और भारत राष्ट्र की और मानव सभ्यता की रक्षा करेंगे ‌।

सनातनी हिन्दू पहचान के आधार को अपनी अंतिम पहचान न बनायें तो भविष्य में किताबी मजहब रिलिजन और कम्युनिस्ट ग्लोबल मार्केट फोर्सेज हमें निगल जाएंगी और पूरी मानव सभ्यता को खत्म कर देंगी है। इसलिए राष्ट्र धर्म और मानव सभ्यता को बचाना है तो हमारी एक ही पहचान सनातनी हिंदू होनी चाहिए। 


✍️दीपक कुमार द्विवेदी

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