काफिर की हत्या वाजिब ए कत्ल, इस्लाम का चरित्र।


कुछ चमन बोल रहे हैं को हिंदू मुस्लिम के मध्य का विवाद नया है। तो इनसे पूछना चाहिए गांधी जी 1947 में बंगाल के नोआखली में अंडे छीलने गए थे क्या? 

पाकिस्तान का सबसे तीव्र समर्थन बांग्लादेश से हुआ। १९४६ से ही बंगलादेश में हिंदुओ का कत्लेआम शुरू कर दिया। आज के पाकिस्तान वालो ने कुछ बाद में शुरू किया। 

बहुत कम लोग जानते है की उत्तरप्रदेश और बिहार को 99% मुस्लिम आबादी ने पाकिस्तान के लिए वोट डाले थे। फिर जब बंटवारा हुआ तो यही बस गए। ताकि भविष्य में gajwa-e-hind कर सके। कौम का पहले दिन से लक्ष्य निश्चित है। ये भटकाव केवल हिंदुओ में ही है। पता ही नही है किसी को की उनको क्या चाहिए और उसके लिए क्या करना पड़ेगा। 

2020 के दिल्ली दंगे सबको याद होंगे। क्या ये कथित सेकुलर लोग बता पाएंगे की उस आईबी के अधिकारी अंकित शर्मा की क्या गलती थी, उसकी हत्या करने में इन लोग ने इतनी क्रूरता दिखाई थी, की क्रूर से क्रूर आदमी बेहोश हो जाए। उसके शरीर को 400 से अधिक बार चाकुओं से गोदा गया था। इतनी नफरत इनके दिलों में पहले से फल फूल रही है। 

अभी बहराइच में एक कपड़े के निर्जीव टुकड़े के लिए मासूम को मार दिया गया। मारने के बकायदा प्लानिग की गई थी। गोपाल मिश्र की हत्या में नृसंशता को तार तार किया गया। उसके शरीर से 35 छर्रे निकले है, शिर में धारदार हथियारों से वार के घाव हैं। पैरो के नाखून खींचे गए। नृशंस्ता की सभी सीमाओं को लांघ कर मारा गया है। 

ये नफरत नहीं तो और क्या है, हिंदू काफिर ही तो है। और कुरान कहता है काफिर वाजिब ए कत्ल है। काफिरों की हत्या करना जन्नत ले जायेगा। इस्लाम का चरित्र दिमग के जैसा है, हमे होश ही नहीं आयेगा और हम खत्म हो जाएंगे।

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