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महाराष्ट्र की जीत की खुशी में हम झारखंड के चुनाव परिणामों की समीक्षा करना भूल रहे हैं। झारखंड, जो एक वनवासी बहुल क्षेत्र है, में पिछले 10-15 वर्षों में जनसांख्यिकीय बदलाव का प्रयास हुआ, जिसका असर इन चुनाव परिणामों में स्पष्ट रूप से दिखाई दिया है। यह भविष्य में और भी भयावह रूप ले सकता है। आज झारखंड के चुनाव परिणामों पर चर्चा के दौरान अखिलेश साहू जी ने एक महत्वपूर्ण बात कही। उन्होने ने कहा झारखंड में भी रणनीतिक तरीके से जनसांख्यिकीय बदलाव का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि झारखंड में भूमि खरीदना आसान नहीं है। भूमि खरीदने के लिए स्थानीय वनवासी लड़की से विवाह करना आवश्यक है।
बांग्लादेश और बंगाल से सटे मुस्लिम क्षेत्रों में घुसपैठ बढ़ रही है। मुस्लिम समुदाय बड़े पैमाने पर भोले-भाले वनवासी समाज को अपने जाल में फंसा रहे हैं। वे वनवासी लड़कियों से निकाह कर उनकी जमीन पर कब्जा करते हैं और इसके बाद अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करते हैं। धीरे-धीरे मतांतरण करके पूरी जनसांख्यिकी को बदल देते हैं। इस पर झारखंड हाईकोर्ट ने भी चिंता जताई है। आंकड़े भी इस बदलाव को स्पष्ट करते हैं। पिछले कुछ दशकों में संताल क्षेत्र के वनवासी समाज की जनसंख्या 44% से घटकर 28% रह गई है। बंगाल और बांग्लादेश से सटे सीमावर्ती क्षेत्रों में रणनीतिक तरीके से मदरसों का विस्तार किया गया है, जिससे जनसांख्यिकीय बदलाव तेजी से हो रहा है।
झारखंड में केवल इस्लामिक जिहादियों का हमला नहीं हो रहा है, बल्कि ईसाई मिशनरियों और वामपंथियों द्वारा भी वनवासी समाज को निशाना बनाया जा रहा है। कुछ सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं से मेरी झारखंड की वर्तमान परिस्थितियों पर चर्चा हो रही थी। उन्होंने मुझे बहुत दिलचस्प जानकारी दी। उन्होंने बताया कि ईसाई मिशनरियों द्वारा वनवासी समाज को यह समझाने का प्रयास किया जा रहा है कि वे हिंदू नहीं हैं। इस कार्य में ईसाई मिशनरियां वामपंथियों की मदद लेती हैं, और वामपंथी इस जहरीले "मूल निवासी विमर्श" को फैलाने का प्रयास कर रहे हैं। झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले अलग "सरना धर्म कोड" का प्रस्ताव केंद्र को भेजा गया था, ताकि वनवासी समाज को हिंदू समाज से अलग करने की रणनीति बनाई जा सके।
वामपंथी, इस्लामी और ईसाई संगठन मिलकर झारखंड में वनवासी समाज को हिंदू धर्म और राष्ट्र के खिलाफ अलगाववादी भावनाओं की ओर धकेल रहे हैं। यह भविष्य में एक बड़ी चुनौती बन सकती है।
झारखंड चुनाव के विश्लेषण में यह भी दिखता है कि हिंदू समाज ने रघुबर दास को सबक सिखाने के लिए उनके खिलाफ मतदान किया। समाज को यह लगा कि वे अहंकारी हैं और कार्यकर्ताओं से ठीक से पेश नहीं आते, जबकि उन्होंने मतांतरण के खिलाफ कानून बनाने जैसे बड़े कार्य किए थे। लेकिन हिंदू समाज ने अपने व्यक्तिगत अहं की तुष्टि के लिए एक बड़ा नुकसान कर लिया।जब मोदी जी ने 400 पार का नारा दिया था, लोग कहने लगे कि हमारे सांसद निकम्मे हैं। इसलिए, लोगों ने सांसदों को सबक सिखाने का मन बना लिया। यहां तक कि बहुत से लोग यह कहने लगे कि मोदी जी बहुत अहंकारी हैं, इसलिए इस बार उन्हें सबक सिखाना जरूरी है। सबक सिखा भी दिया, लेकिन यह नहीं सोचा कि अगर सांसद निकम्मे हैं और मोदी जी अहंकारी हैं, तो इसका हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
वास्तव में, यह भी विचार करना चाहिए कि चाहे कुछ भी हो, मोदी जी हिंदुत्व, राष्ट्र विमर्श, और राष्ट्र उत्थान के लिए कार्य तो कर रहे हैं। लेकिन हम लोग अक्सर इन बातों को नहीं समझते क्योंकि हम अपने आसपास की वास्तविकताओं को नजरअंदाज कर देते हैं। जैसे, लगातार बदलती हुई जनसांख्यिकी (डेमोग्राफी) पर शायद ही हमारा ध्यान जाता है।
जनसांख्यिकी में तेजी से हो रहे बदलावों को समझने के लिए 1999 की वोटर लिस्ट की तुलना 2024 की वोटर लिस्ट से करें। हर जगह हिंदू आबादी घट रही है और मुस्लिम आबादी बढ़ रही है। मोहल्लों में, जहां पहले 30 परिवार रहते थे, जिनमें 20 हिंदू परिवार और 10 मुस्लिम परिवार शामिल थे, आज वहाँ केवल 5 हिंदू परिवार बचे हैं। मुस्लिम परिवारों की संख्या 10 से बढ़कर 25 हो गई है। 15 हिंदू परिवार अपनी जमीन-जायदाद औने-पौने दामों में स्थानीय मुस्लिम समुदाय को बेचकर उस क्षेत्र को छोड़कर चले गए हैं। यही स्थिति हर शहर की बनती जा रही है।
मैं जब एक न्यूज़ चैनल में कंटेंट राइटर था, तो झारखंड में "लव जिहाद" की एक स्टोरी लिखी थी। एक घटना में वनवासी लड़की को बहला-फुसलाकर निकाह किया गया, फिर उसका शारीरिक शोषण किया गया, और अंत में उसके 100 टुकड़े कर सड़क पर फेंक दिए गए। यह लिखते समय मेरी हिम्मत जवाब दे गई थी। ऐसी ही एक और घटना में शाहरुख नाम के व्यक्ति ने अंकिता नाम की लड़की को जिंदा जला दिया था।
लेकिन हिंदू समाज को इन घटनाओं से फर्क नहीं पड़ता। वे मुफ्त बिजली और सरकारी योजनाओं की रकम से संतुष्ट हो जाते हैं। धर्म, संस्कृति और राष्ट्रहित उनके लिए प्राथमिकता नहीं है। यही कारण है कि 1947 में 9% मुस्लिम आबादी ने 40% भूभाग छीन लिया। आज भारत के नौ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं। अगर इस स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो आने वाले समय में भारत का बचा हुआ भू-भाग भी हम खो सकते है। झारखंड के परिणाम हिंदुओं के लिए चेतावनी हैं।
दीपक कुमार द्विवेदी
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