भारतीय राज्य के खिलाफ छद्म युद्ध कांग्रेस का कल्चरल मार्क्सवाद

राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस अब पूरी तरह से कम्युनिस्ट पार्टी बन चुकी है। केवल पंजे की जगह हंसिया-हथौड़ा और झंडे का लाल रंग होना बाकी रह गया है। राहुल गांधी के आज के वक्तव्यों को कई लोग मजाक में ले रहे हैं और उन्हें मूर्ख या पागल कह रहे हैं। लेकिन यह भूलना खतरनाक है कि परसों योगेंद्र यादव ने कहा था कि दुनिया में कोई लोकतांत्रिक सरकार सफल नहीं हुई है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में मोदी और ट्रंप जैसे लोग चुनकर आ जाते हैं, इसलिए लोकतंत्र भारतीय समाज के लिए उचित नहीं है।

भारतीय राष्ट्र के खिलाफ युद्ध की बात नई नहीं है। इसी संदर्भ में कांग्रेस नेता और भारत के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा कि हमारी लड़ाई बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक से नहीं, बल्कि भारतीय राष्ट्र से है। राहुल गांधी ने पहले भी कहा था कि भारत कोई राष्ट्र नहीं, राज्यों का संघ है। यह विचार उनके जेएनयू छाप कम्युनिस्ट सलाहकारों के माध्यम से उनके मन में आता है। इसके पीछे एक और कांग्रेसी विचारधारा भी है, जो मानती है कि भारत का जन्म 1947 में हुआ है, इसके पूर्व भारत नामक कोई देश नहीं था और कांग्रेस ने इस देश को बनाया है। इसी कारण वे करोड़ों वर्षों की महान भारतीय संस्कृति और इतिहास को नकारने का प्रयास कर रहे हैं। भारत का इतिहास गलत लिखा गया और पौराणिक इतिहास को काल्पनिक सिद्ध कर दिया गया। यह कार्य जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने शिक्षा व्यवस्था कम्युनिस्टों के हवाले करके किया था। हालांकि, उस समय इस स्तर तक गिरकर नेहरू और इंदिरा गांधी ने भारतीय राष्ट्र के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह नहीं खड़ा किया था। जिस स्तर में गिरकर आज राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पूरी तरह कम्युनिस्ट हो चुकी है और कम्युनिस्ट विचारधारा को आगे बढ़ा रही है। इसी कारण राहुल गांधी बार-बार भारत विरोधी, सनातन धर्म विरोधी शक्तियों के साथ मिलकर भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को खतरे में डालने की कोशिश करते हैं। उन्हें लगता है कि देश को अराजकता की आग में झोंककर वे माहौल को नकारात्मक बना सकते हैं, जिससे लोग महसूस करें कि कांग्रेस आएगी तो सब ठीक कर देगी। इस सिद्धांत के तहत, कम्युनिस्ट क्रांति का नाम देकर लाखों लोगों की लाशों पर सत्ता हासिल करते हैं और फिर लोकतांत्रिक व्यवस्था का गला घोंट देते हैं। राहुल गांधी बार-बार कहते हैं कि भारत एक राष्ट्र नहीं, बल्कि राज्यों का संघ है। जो लोग भारत की संस्कृति और सभ्यता की बात करते हैं, उनकी तुलना राहुल गांधी ने बोको हराम जैसे मुस्लिम कट्टरपंथी संगठनों से की है। उनके सहयोगी शशि थरूर जैसे नेताओं ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को तालीबानी संगठन बताया है।

राहुल गांधी का भारत विरोधी शक्तियों से मिलकर भारतीय राष्ट्र के विरुद्ध युद्ध की योजना बना रहे हैं। देश में पिछले 5 से 6 वर्ष में हुई घटनाएं, चाहे भीमराव कोरेगांव गांव हिंसा हो, जिसमें जांच के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की हत्या की साजिश का खुलासा हुआ, या फिर कम्युनिस्ट नेताओं का पकड़ा जाना, उसके अलावा सीएए आंदोलन के शाहीन बाग कट्टरपंथी मुस्लिम जिहादियों द्वारा दिल्ली को बंधक बनाना हो, इसके बाद एक कम्युनिस्ट मुस्लिम पत्रकार का यह कहना कि "हमने रणनीति बदली है, विचारधारा नहीं", अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के दौरे के दौरान दिल्ली को हिंसा और आग में झोंक देना, जिसमें 53 लोग मारे गए, उसके बाद किसान आंदोलन के नाम पर पंजाब के कुछ कम्युनिस्ट किसान यूनियनों द्वारा दिल्ली घेरना हो, इसके बाद 26 जनवरी 2021 को लाल किले पर हमला और सुरक्षाबलों पर हमला करके सरकार को विवश करने की कोशिश की गई, लेकिन सरकार ने धैर्य का परिचय देते हुए उनकी साजिश को विफल कर दिया। इसके बाद राहुल गांधी का एक वक्तव्य आता है, "पेट्रोल छिड़का हुआ माचिस मारने की आवश्यकता है" इसके बाद हर महीने कुछ न कुछ टूल किट सक्रिय होती रहती है, कभी ट्रेन हादसों के नाम पर, कभी छात्र आंदोलनों के नाम पर, कभी विदेशी शॉर्ट सेलर्स द्वारा अडानी के खिलाफ फर्जी रिपोर्ट जारी करके अडानी के शेयर गिराने का प्रयास, कभी पर्यावरण के नाम पर इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को रोकने की कोशिश, कभी रेप के मामलों में वृद्धि होने लगती, कभी अवार्ड वापसी शुरू हो जाती, कभी मॉबलिंचिंग घटनाएँ बढ़ जाती हैं। इस तरह की टूलकिट पिछले सात से आठ वर्षों से लगातार हर महीने नई-नई टूलकिट सक्रिय होती रहती हैं। इन सभी टूलकिट के पीछे राहुल गांधी उनके लाल सलाम वाले सलाहकारों का हाथ होता है , यहां तक भारतीय संस्कृति और धर्म के विरुद्ध शक्तियों के साथ राहुल गांधी खड़े मिलते हैं। यह सिलसिला अनवरत चलता रहता है, उदाहरण के लिए जैसे डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म उन्मूलन के बयान का मौन समर्थन करना, रामलला के प्राण प्रतिष्ठा का बहिष्कार करना, या भारत विरोधी वामपंथी नेताओं का समर्थन करना, और जॉर्ज सोरोस और 'डीप स्टेट' की शक्तियों के साथ उनके संबंध की पुष्टि होती है।

वामपंथी विचारधारा, विशेषकर कल्चरल मार्क्सवाद, ने भारतीय समाज के सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक ताने-बाने को नष्ट करने की कोशिश की है। कल्चरल मार्क्सवाद के नारेटिव को कांग्रेस पार्टी आगे बढ़ा रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस घोषणापत्र को देखेंगे तो स्पष्ट हो जाएगा कि उसमें भारत की महान संस्कृति, सभ्यता और भारत के आर्थिक-सामाजिक रूप को नष्ट करना है, उसके ताने-बाने को ध्वस्त करना है। अल्ट्रा लेफ्ट के कल्चरल मार्क्सवाद, LGBTQ जैसे नारेटिव को आगे बढ़ाने के लिए LGBTQ को मान्यता देने की बात हो, जातिगत जनगणना कराकर देश में जातिगत हिंसा की आग में झोंकने की बात हो या आर्थिक रूप से कमजोर करने की बात हो, सबकुछ कांग्रेस के 2024 के घोषणा पत्र में था, जो नव वामपंथ के नारेटिव के अनुसार था। जो धर्म, संस्कृति, सभ्यता, परिवार, राष्ट्र और सभी संस्थाओं को खारिज करती है, उसे ध्वस्त करके नई व्यवस्था बनाने की बात करती है। उसी को राहुल गांधी आगे बढ़ा रहे हैं।

भारत राष्ट्र के विरुद्ध युद्ध के कम्युनिस्ट विचार का इतिहास बहुत पुराना है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी कम्युनिस्टों ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का विरोध किया। 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' में कम्युनिस्टों ने इसे "फासीवादी" आंदोलन कहा और अंग्रेजों का समर्थन किया। 1947 में भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले, कम्युनिस्टों ने ब्रिटिश वायसराय से यह प्रस्ताव दिया था कि भारत को 17 अलग-अलग राज्यों में विभाजित किया जाए, क्योंकि वे मानते थे कि भारत कभी एक राष्ट्र नहीं हो सकता।

वर्तमान स्थिति में, राहुल गांधी और अन्य वामपंथी नेता भारतीय राष्ट्र के खिलाफ युद्ध की बात कर रहे हैं। यह स्थिति भारत की एकता और अखंडता के लिए गंभीर खतरे की घंटी है। देश में करीब 35% लोग राहुल गांधी के साथ खड़े हैं, जिनमें 20% लक्ष्य आधारित मुस्लिम आबादी, 5% कन्वर्टेड हिंदू और 10% कांग्रेस समर्थित अर्द्ध म्लेच्छ हिंदू शामिल हैं। यह संख्या भारत के लिए गंभीर खतरे उत्पन्न कर सकती है, जैसा कि 1947 में हुआ था।

✍️ दीपक कुमार द्विवेदी

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