गणित के पुरस्कर्ता : आर्यभट्ट



एक रिसर्च पेपर कोलंबिया विश्वविद्यालय में छपा था जिसका पहला पैरा ज्यों का त्यों साझा कर रहा हूं।

भारत की सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) रणनीति हजारों साल पहले शुरू हुई थी जब एक भारतीय वैज्ञानिक आर्यभट्ट ने शून्य अंक का आविष्कार किया था। दशमलव प्रणाली में स्थिति संकेतन के लिए इस अंक का उपयोग, शून्य के निरंतर उपयोग के साथ, एक महत्वपूर्ण कम्प्यूटेशनल कठिनाई का अंतिम समाधान साबित हुआ, और तब से दुनिया भर में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। अगर भारत ने इस खोज का कॉपीराइट ले लिया होता, तो कंप्यूटर उद्योग में लगभग 50 प्रतिशत आविष्कार भारतीय होते। हालाँकि, भारतीय दर्शन यह उपदेश देता है कि ज्ञान साझा करने से स्वयं का ज्ञान बढ़ता है। यह आज के ज्ञान-आधारित समाज में सच साबित हो रहा है। 

इस पैरा को पढ़ने के बाद आपको शून्य के आविष्कारक भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट के बारे में और जानना चाहिए जिनकी वजह से विश्व में लगभग पचास प्रतिशत कंप्यूटेशनल आविष्कार संभव हुए। आज सिनेमा, क्रिकेट राजनीति के ग्लैमर में असली नायक भुला दिए गए या किसी और कुंठा के चलते उन्हें साइड लाइन कर दिया गया।

आर्यभट्ट ने गणित के आविष्कारों और सिद्धांतों में कई योगदान दिए। गणित में उनके महत्वपूर्ण योगदान और उपलब्धि के कारण उन्हें भारतीय गणित का जनक भी कहा जाता है। उनकी महत्वपूर्ण पुस्तक आर्यभटीय है। गणित के क्षेत्र में उनके द्वारा की गई कुछ महत्वपूर्ण खोजें स्थानीय मान प्रणाली और शून्य, साइन कॉस, द्विघात समीकरण, पाई का मान, अनिश्चित समीकरण हैं। यह गणित के आधार हैं।

गणित के अलावा, आर्यभट्ट ने खगोल विज्ञान में भी कई प्रभावशाली खोजें और आविष्कार किए। आर्यभट्ट की खगोलीय प्रणाली को औद्यक प्रणाली के नाम से जाना जाता था। उनकी खोजों के आधार पर वैज्ञानिकों ने कई खोजें कीं जैसे कि सौरमंडल में ग्रह और चंद्रमा सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित होते हैं। उन्होंने यह सिद्धांत दिया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर ही घूमती है। खगोल विज्ञान में आर्यभट्ट के कुछ महत्वपूर्ण योगदान जैसे सौरमंडल गति, नाक्षत्र काल,ग्रहणों, सूर्य केन्द्रीयता शामिल हैं।

केवल भारत के ही नहीं, विश्व मनीषी आर्यभट्ट की आज जन्म जयंती है। आज सत्रह सौ साल पहले यह सूर्य विश्व के ज्ञानोदय के लिए उगा था।

कृतज्ञता 

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