सुन्दरकाण्ड की पाठ विधि और पारायण क्रम हिन्दी में

सुन्दरकाण्ड की पाठ विधि और पारायण क्रम (हिन्दी में) - (गीता प्रैस की श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणस्य सुन्दरकाण्डम् पुस्तक से)

अथ श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणस्य सुन्दरकाण्डम् अनुष्ठान पाठविधि -

१. सुन्दरकाण्ड का पाठ किसी भी मास या समय में किया जा सकता है तब भी रामायण पाठ के लिए चैत्र, माघ या कार्तिक में रामसेवा ग्रन्थ में विशेष विधान है । सुन्दरकाण्ड के पाठ के लिए भी ये शुभ हैं ।

२. बृहद्धर्म पुराण के अनुसार सुन्दरकाण्ड का पाठ ज्येष्ठ मास नियम दिया गया है ।

३. पवित्र भूमि पर, तुलसीवन में या बेल वृक्ष के नीचे पवित्र तीर्थ में जैसे अयोध्या, चित्रकूट या श्रीराम, हनुमान मंदिर में, नदी के तट पर, पहाड़ की गुफा में सुन्दरकाण्ड का पारायण श्रेष्ठ है ।

४. पाठ के आरम्भ से पहले, भूमि का शोधन, मार्जन और लेपन कर लेना चाहिए । यथासम्भव स्वस्तिवाचन, शान्तिपाठ, गणपति पूजन, कलश स्थापना, लोकपाल-दिग्पाल-क्षेत्रपाल, बटुक-योगिनी-मातृका-नवग्रह-तुलसी इत्यादि का पूजन करके भगवान राम का हनुमान जी और पूरे परिकर के साथ पूजन करके, देश-काल-नाम-गोत्र का उच्चारण कर संकल्प करे - ॐ तत्सदद्य श्रीसीतारामहनुमत्प्रसादावाप्तिपूर्वकसकलकामनासिध्यर्थं श्रीसीतारामचन्द्रहनुमत्पूजनमहं करिष्ये ।

५. अब सबको नमस्कार करे - श्रीसीतारामाभ्यां नमः । श्रीमद्रामभक्ताय हनुमते नमः। श्रीभरताय नमः । श्रीलक्ष्मणाय नमः । श्रीशत्रुघ्नाय नमः । ध्यायामि आवाह्यामि पूजयामि ।
अर्घ्यं पाद्यमाचनीयं स्नानीयं वस्त्रोपवस्त्रे यज्ञोपवीतं गन्धं पुष्पं धूपं दीपं नैवेद्यं ताम्बूलं नीराजनं च समर्पयामि नमस्करोमि ।

६. इस प्रकार नमस्कार करके फिर पंचोपचार कर पुस्तक पूजन करे, नमस्कार करे -
वाल्मीकिगिरिसम्भूता रामाम्भोनिधिसङ्गता ।
श्रीमद्रामायणी गङ्गा पुनाति भुवनत्रयम् ॥
श्लोकसारसमाकीर्णं सर्गकल्लोलसंकुलम् ।
काण्डग्राहमहामीनं वन्दे रामायणार्णवम् ॥

७. अब विनियोग, ऋष्यादिन्यास, करन्यास, हृदयादिन्यास करके मङ्गलाचरण, श्रीहनुमन्नमस्कार, श्रीरामपरिकर वन्दना, श्रीरामायण वन्दना, श्रीसीताराम ध्यान और वन्दना करे । (गीता प्रैस की श्रीमद्वाल्मीकीयरामायणस्य सुन्दरकाण्डम् पुस्तक से)

८. पारायण का क्रम -
अ. यदि १ ही दिन में पारायण हो जाए तो विश्राम की आवश्यकता ही नहीं है ।

ब. यदि २ दिन में पारायण करना हो तो ४८वें सर्ग पर विश्राम करना चाहिए। दूसरे दिन शेष सर्ग पूर्ण करने चाहिए ।

स. एक और क्रम है, प्रत्येक दिन १-१ सर्ग बढ़ा कर -
पहले दिन पहला सर्ग, दूसरे दिन २-३ सर्ग, तीसरे दिन ४-५-६ सर्ग, चौथे दिन ७-१०वां सर्ग, पाँचवे दिन ११-१५वां सर्ग, छठे दिन १६-२१वां सर्ग, सातवें दिन २२-२८वां सर्ग, आठवें दिन २९-३६वां सर्ग, नौवें दिन ३७-४५वां सर्ग, दसवें दिन ४६-५५वां सर्ग, ग्यारहवें दिन ५६-६६वां सर्ग, बारहवें दिन ६७-६८वें सर्ग को समाप्त करके पुनः १-१०वां सर्ग, तेरहवें दिन ११-२३वां सर्ग, चौदहवें दिन २४-३७वां सर्ग, पंद्रहवें दिन ३८-५२वां सर्ग, सोलहवें दिन ५३-६८वां सर्ग करना चाहिए । सत्रहवें दिन १-१७वां सर्ग, अठारवें दिन १८-३५वां सर्ग, उन्नीसवें दिन ३६-५४वां सर्ग, बीसवें दिन ५५-६८वां सर्ग पूरा करना चाहिए । इस प्रकार तीन आवृत्ति के पाठ से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं ।

द. एक और क्रम है, प्रत्येक दिन ५ सर्ग पढ़ कर, चौदहवें दिन ६६-६८वां सर्ग पढ़ कर फिर प्रारंभ के १-२वां सर्ग पढ़े । इस से भी सभी कार्य सिद्ध होते हैं ।

ई. एक और क्रम है, आठ दिन तक प्रतिदिन ७ सर्ग पढ़े । नवमें दिन ५७-६८वां सर्ग पढ़ कर १२ सर्गों को पूर्ण करे । ये नवाह्न पाठ है ।

फ. एक और क्रम है, प्रतिदिन १, ३, ५ या ७ सर्गों का पाठ करके ६८ दिन पाठ चलाए । इस प्रकार १, ३, ५, ७ पारायण का अनुष्ठान पूरा होता है ।

-आचार्य Alankar Sharma

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